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अक्तूबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

।।077।। बोधकथा। ।रिश्तो की पूंजी ना हो,तो हम कंगाल ही हैं।

कुछ साल पहले जब मैंने पहली बार बीएमडब्लू कार खरीदी थी, तब मुझे पता चला था कि इसमें स्टेपनी नहीं होती। स्टेपनी नहीं होती? मतलब? मतलब इसकी डिक्की में वो अतिरिक्त पहिया नहीं होता, जो आम तौर पर सभी गाड़ियों में होता है। और इसके पीछे तर्क ये था कि इस गाड़ी में रन फ्लैट टायर लगे होते हैं। रन फ्लैट टायर का मतलब ऐसे टायर, जो पंचर हो जाने के बाद भी कुछ दूर चल सकते हैं।  भारत में जब बीएमडब्लू गाड़ियां लांच हुई थीं, तब कंपनी के लोगों ने यहां की सड़कों का ठीक से अध्ययन नहीं किया था। यूरोप और अमेरिका में ये गाड़ियां सफलता पूर्वक चल रही थीं, तो उसकी वज़ह ये थी कि वहां सड़कें काफी अच्छी होती हैं, और दूसरी बात ये कि जगह-जगह कंपनी के सर्विस सेंटर भी होते हैं। मैंने जब बीएमडब्लू कार खरीदी, तो मुझे बताया गया कि इसमें एक्स्ट्रा टायर की न ज़रूरत है, न जगह।  अब स्टेपनी नहीं होने का अर्थ ये तो नहीं था कि गाड़ी पंचर ही नहीं होगी। एक दिन गाड़ी पंचर हो गई। मैं गाड़ी चलाता रहा। कायदे से ये टायर पंचर होने के बाद पचास किलोमीटर तक चल सकते हैं, पर पचास किलोमीटर की दूरी पर बीएमडब्लू का सर्विस स्टेशन होना चाहिए। मेरी

।।076।। बोधकथा। 💐🌺 जो मिला है वही बहुत है 💐🌺

एक नेत्रहीन व्यक्ति भिक्षा मांग कर अपना जीवन निर्वाह करता था। जो कुछ मिल जाता उसी से अपनी गुजर-बसर करता था।  एक दिन एक धनी व्यक्ति उधर से निकला। उस अंधे के फटे हाल पर बहुत दया आई,और उसने ₹100 का एक नोट उसके हाथ पर रखकर आगे की राह ली।  भिक्षुक ने नोट को टटोल कर देखा और समझा कि किसी ने उसके साथ ठिठोली की है,और कागज का टुकड़ा थमा दिया है। तो खिन्न होकर उसे जमीन पर फेंक दिया।  एक सज्जन ने यह दृश्य देखा, तो नोट को उठाकर पुनः उस नेत्रहीन व्यक्ति को दिया और बताया- यह तो ₹100 का नोट है।  तब वह बहुत प्रसन्न हुआ और उसने अपनी आवश्यक वस्तुएं उस रुपये से खरीदी।  ज्ञान चक्षुओं के अभाव में, हम भी परमात्मा  के दिए अपार दान को देख और समझ नहीं पाते और सदा यही कहते रहते हैं कि, हमारे पास कुछ नहीं  हमें कुछ नहीं मिला है, हम साधन हीन हैं।  पर यदि हमें जो नहीं मिला है उसकी शिकायत करना छोड़ कर, जो मिला है उसी की महत्ता को समझे, तो मालूम होगा, कि जो कुछ मिला हुआ है, वह कम नहीं, अद्भुत है,अधिक है।   हम कितने कृतघ्न हैं! जो परमात्मा का धन्यवाद करने के स्थान पर, उससे निरंतर शिकायतें किया करते।  ।। मनेन्दु पहारिय

।।075।। बोधकथा। 💐🌺🏵 सत्य और असत्य 🏵🌺💐

प्रतिदिन सवेरे और शाम, छाया मनुष्य को टोकती- "लो देखो! तुम जितने थे उतने ही रहे, और मैं तुमसे कई गुनी बढ़ गई।"  एक दिन मानव मुस्कुराया, उसने कहा "सत्य और असत्य में यही तो अंतर है। सत्य जितना है उतना ही रहता है और असत्य पल-पल में घटता बढ़ता रहता है।"  छाया निरुत्तर हो गई। ।। मानेन्दु पहारिया।।  26/10/2022

।।074।। बोधकथा। 💐🌺🏵 मोक्ष 🏵🌺💐

आज सुबह "morning walk" पर एक व्यक्ति को देखा। मुझ से आधा "किलोमीटर" आगे था। अंदाज़ा लगाया कि, मुझ से थोड़ा "धीरे" ही भाग रहा था। एक अजीब सी "खुशी" मिली। मैं पकड़ लूंगा उसे, और  यकीन भी।  मैं तेज़ और तेज़ चलने लगा ,आगे बढ़ते हर कदम के साथ,मैं उसके "करीब" पहुंच रहा था.कुछ ही पलों में, मैं उससे बस सौ क़दम पीछे था. निर्णय ले लिया था कि मुझे उसे "पीछे" छोड़ना है। थोड़ी "गति" बढ़ाई। अंततः कर दिया। उसके पास पहुंच, उससे "आगे" निकल गया. "आंतरिक हर्ष" की "अनुभूति", कि मैंने उसे "हरा" दिया। बेशक उसे नहीं पता था, कि हम "दौड़" लगा रहे थे। मैं जब उससे "आगे" निकल गया  अनुभव  हुआ कि दिलो-दिमाग "प्रतिस्पर्धा" पर, इस कदर  केंद्रित था....... कि "घर का मोड़" छूट गया, मन का "सकून" खो गया, आस-पास की "खूबसूरती और हरियाली" नहीं देख पाया. अच्छे मौसम की "खुशी" को भूल गया और तब "समझ" में आया, यही तो होता है "जीवन" मे

।।073।। बोध कथा। 🏵🌺💐 भीख की झोली 🏵🌺💐

भिखारी दिनभर भीख मांगता-मांगता शाम को एक सराय में पहुंचा और भीतर की कोठरी में भीख की झोली रख कर सो गया।  थोड़ी देर बाद एक किसान आया, उसके पास रुपयों की एक थैली थी। किसान बैल खरीदने गया था। रात वह भी उसी सराय में रुका, जहां भिखारी था, और वह थैली सिरहाने रख कर सो गया।  भीख की झोली, रुपयों की थैली से बोली- बहन! हम तुम एक ही बिरादरी के हैं,फिर इतनी दूरी क्यों हैं? आओ हम तुम एक हो जाएं !  रुपयों की थैली ने हंसकर कहा -"बहन! क्षमा करो, यदि मैं तुमसे मिल गई, तो संसार में परिश्रम और पुरुषार्थ का मूल्य ही क्या रह जाएगा?  दीपावली प्रत्येक मानव के लिए पुरुषार्थ का आकलन करने का त्यौहार होता है।  विद्यार्थी को विद्या अर्जन का प्रण लेकर आगे बढ़ने का,  उद्यमी को पुरुषार्थ से लक्ष्मी को प्रसन्न करने का,  वानप्रस्थ को संसार की,  उसके द्वारा की गई भलाई का मूल्यांकन करने का,  और सन्यासी का इस लोक के साथ परलोक की यात्रा सुगम बनाने का।  और इसीलिए हम बही खातों का निर्धारण करते हैं,अर्थात- गत वर्ष क्या अच्छा किया, और क्या कमी रह गई, जिसे इस वर्ष पूरा करेंगे। बिना परिश्रम, मुफ्त कुछ पाने की आकांक्षा, पुरु

।।धर्म ग्रंथ केवल पढ़ने के लिए नहीं होते उन पर मनन भी आवश्यक है।।

जब हम हमारे धर्मग्रंथों को पढ़ते हैं तो हम पाते हैं कि हमारे सारे धर्मग्रंथ राक्षसों के वध से भरे पड़े हैं. राक्षस भी ऐसे ऐसे वरदानों से प्रोटेक्टेड थे कि दिमाग घूम जाए... किसी को वरदान प्राप्त था कि वो न दिन में मरेगा-न रात में, न आदमी से मरेगा-न जानवर से, न घर में मरेगा-न बाहर, न आकाश में मरेगा- न धरती पर... उसी तरह... दूसरे को वरदान था कि वे भगवान भोलेनाथ और विष्णु के संयोग से उत्पन्न पुत्र से ही मरेगा. तो, किसी को वरदान था कि... उसके खून की जितनी बूंदे जमीन पर गिरेगी.. उसकी उतनी प्रतिलिपि पैदा हो जाएगी. तो, कोई अपने नाभि में अमृत कलश छुपाए बैठा था. लेकिन... हर राक्षस का वध हुआ. हालाँकि... सभी राक्षसों का वध अलग अलग देवताओं ने अलग अलग कालखंड एवं अलग अलग प्रदेशों में किया... लेकिन... सभी वध में एक चीज कॉमन रहा कि... किसी भी राक्षस का वध उसका स्पेशल स्टेटस हटाकर अर्थात उसके वरदान को कैंसिल कर के नहीं किया गया... कि, तुम इतना उत्पात मचा रहे हो इसीलिए, हम तुम्हारा वरदान कैंसिल कर रहे हैं.. और, फिर उसका वध कर दिया. बल्कि... हुआ ये कि... देवताओं को उन राक्षसों को निपटाने के लिए उसी वरदान मे

।।072।। बोधकथा। 🏵🌺💐 छोटी दीवाली 💐🌺🏵

हमारा देश पुरातन काल से ही उत्सव प्रधान रहा है। प्रत्येक दिन कोई न कोई उत्सव होता है । आज के इस दिन को 'नरक चौदस', 'रूप चौदस', 'काली चौदस', आदि नामों से जाना जाता है। इस संबंध में विभिन्न कथाएं प्रचलित है।  इसी दिन शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्योहार है। दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस, फिर नरक चतुर्दशी, या छोटी दीपावली। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात को।     क्या है इसकी कथा-    आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी, दुर्दांत असुर, नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष्य में दीयों की बारात सजाई जाती है।   इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक दूसरी कथा यह है कि रंति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पा

।।071।। बोधकथा। 🌺💐 समुद्र मंथन का आशय 💐🌺

विष्णुपुराण में समुद्र मंथन का उल्लेख मिलता हैl इसमें उल्लेखित कहानी के अनुसार एक बार महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण स्वर्ग श्रीहीन (ऐश्वर्य, धन, वैभव आदि) हो गयाl तब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गएl भगवान विष्णु ने उन्हें असुरों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करने का उपाय बताया और ये भी बताया कि समुद्र मंथन से अमृत निकलेगा, जिसे ग्रहण कर तुम अमर हो जाओगेl  यह बात जब देवताओं ने असुरों के राजा बलि को बताई, तो वे भी समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गएl वासुकि नाग की नेती बनाई गई और मंदराचल पर्वत की सहायता से समुद्र को मथा गयाl समुद्र मंथन से उच्चैश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, लक्ष्मी, भगवान धन्वन्तरि सहित 14 रत्न निकलेl 🏵  कालकूट विष। 🏵 समुद्र मंथन से सबसे पहले कालकूट विष निकला, जिसे भगवान शिव ने ग्रहण कर लियाl इससे तात्पर्य है कि अमृत (परमात्मा) हर इंसान के मन में स्थित हैl अगर हमें अमृत की इच्छा है तो सबसे पहले हमें अपने मन को मथना पड़ेगाl जब हम अपने मन को मथेंगे तो सबसे पहले बुरे विचार ही बाहर निकलेंगेl यही बुरे विचार विष हैl हमें इन बुरे विचारों को परमात्मा को समर्पित कर देना चाहिए और इनसे मुक्

।।070।। बोधकथा। 🌺💐🏵 रावण 🏵💐🌺

कुबेर व रावण दोनों ऋषि विश्रवा की संतान थे और दोनों सौतेले भाई थे. ऋषि विश्रवा ने सोने की लंका का राज्‍य कुबेर को दिया था लेकिन किसी कारणवश अपने पिता के कहने पर वे लंका का त्याग कर हिमाचल चले गए. कुबेर के चले जाने से दशानन बहुत प्रसन्न हुआ। दशानन लंका का राजा बन गया। लंका का राज्‍य प्राप्‍त करते ही धीरे-धीरे वह इतना अहंकारी हो गया कि उसने साधुजनों पर अनेक प्रकार के अत्याचार करने शुरू कर दिए. जब दशानन के इन अत्‍याचारों की ख़बर कुबेर को लगी तो उन्होंने अपने भाई को समझाने के लिए एक दूत भेजा... जिसने, कुबेर के कहे अनुसार दशानन को सत्य पथ पर चलने की सलाह दी. कुबेर की सलाह सुनकर दशानन को इतना क्रोध आया कि उसने दूत को बंदी बना लिया  और क्रोध में तुरन्‍त तलवार से उसकी हत्‍या कर दी. कुबेर की सलाह से दशानन इतना क्रोधित हुआ कि दूत की हत्‍या के साथ ही अपनी सेना लेकर कुबेर की नगरी अलकापुरी को जीतने निकल पड़ा। कुबेर की नगरी को तहस-नहस करने के बाद अपने भाई कुबेर पर गदा का प्रहार कर उसे भी घायल कर दिया.... लेकिन, कुबेर के सेनापतियों ने किसी तरह से कुबेर को नंदन वन पहुँचा दिया, जहाँ वैद्यों ने उसका इला

।।069।। बोधकथा। 🌺💐🏵किस पर विश्वास करें 🏵💐🌺

एक जंगल में शेर शेरनी शिकार के लिये दूर तक गये हुए थे, अपने बच्चों को अकेला छोडकर। वे जब बहुत देर तक नही लौटे तो बच्चे भूख से छटपटाने लगे। उसी समय एक बकरी घास चरते हुए वहां आई, शेर के बच्चों को भूख से तड़पते देखकर उसे दया आ गई और उसने उन बच्चों को अपना दूध पिलाया और इसके बाद बच्चे पुनः मस्ती करने लगे। तभी शेर शेरनी आये, बकरी को देख लाल पीले हो गये, शेर बकरी पर हमला करने ही जा रहा था कि... उससे पहले ही बच्चों ने कहा, इसने हमें दूध पिलाकर बड़ा उपकार किया है, नही तो हम मर ही जाते। अब शेर बहुत खुश हुआ और कृतज्ञता के भाव से बोला, हम तुम्हारा उपकार कभी नही भूलेंगे। जाओ अब आजादी के साथ जंगल मे घूमो फिरो और मौज करो। अब बकरी जंगल में निर्भयता के साथ रहने लगी। यहाँ तक कि शेर के पीठ पर बैठकर भी कभी कभी पेड़ों के पत्ते खाती थी। यह दृश्य एक चील ने देखा तो हैरान होकर बकरी से पूछा, तब उसे पता चला कि उपकार का कितना महत्व है। चील ने यह सोचकर कि एक प्रयोग मैं भी करता हूँ। थोड़ी ही दूर पर चूहों के छोटे छोटे बच्चे दलदल मे फंसे थे। वे निकलने का प्रयास तो बहुत करते पर सारे प्रयास व्यर्थ हो जा रहे थे। चील ने

।।068।। बोधकथा। 🌺💐🏵 अहंकार की पराजय 🏵💐🌺

मरुतदेव क्रुद्ध होकर बोले- ओसकणो तुम्हें हमारा प्रतिरोध करते भय नहीं लगा? नष्ट करके रख देंगे तुम्हें! नहीं तो रास्ता छोड़कर अलग हो जाओ।  ओसकण हाथ जोड़कर बोले- महापुरुष!जब तक आप हैं, तब तक हम नष्ट कैसे हो सकते हैं? हमारा तो जन्म ही आपसे हुआ है।  इतना कहने पर भी मरुत देव का क्रोध ना गया। बात कुछ नहीं थी, अहंकार मात्र था, तो ऐसे शांत कहां होता?   मरुत देव चले, वेग से आक्रमण किया। ओसकंण झरकर भूमि में जा गिरे, पर वायु देव की अंतःशीलता को छूकर दूर्वादलों में अन्य ओसकण छलकने लगे। मरुत ने पीछे मुड़कर देखा तो उसे अपनी पराजय पर लज्जा आई। उमड़ घुमड़ कर सब तरफ से प्रयत्न किया उसने, पर ओसकण कम ना हुए।  आकाश ने यह  देखकर कहा- व्यर्थ क्यों खींझते हो पवन देव! बलिदान की शक्ति ही कुछ ऐसी है, कि एक नष्ट होता है तो पीछे हजार तैयार हो जाते हैं। ऐसा ना होता, तो संसार में नेकी, धर्म, और भलाई, जिंदा कैसे रह पाते?  मरुत ने हार मान ली और तब से ओसकणों को नीचा दिखाना बंद कर दिया। ।। मनेन्दु पहारिया।।   16/10/2022

।।067।। बोधकथा। 🌺💐 रघुकुल का सौभाग्य 💐🌺

एक बार युद्ध में राजा दशरथ का मुकाबला बाली से हो गया। राजा दशरथ की तीनों रानियों में से कैकेयी अस्त्र-शस्त्र और रथ चालन में पारंगत थीं। इसलिए कई बार युद्ध में वह दशरथ जी के साथ होती थीं। जब बाली और राजा दशरथ की भिड़ंत हुई उस समय भी संयोग वश कैकेई साथ ही थीं। बाली को तो वरदान था कि जिस पर उसकी दृष्टि पड़ जाए, उसका आधा बल उसे प्राप्त हो जाता था। स्वाभाविक है कि दशरथ परास्त हो गए। बाली ने दशरथ के सामने शर्त रखी कि पराजय के मोल स्वरूप या तो अपनी रानी कैकेयी छोड़ जाओ या फिर रघुकुल की शान अपना मुकुट छोड़ जाओ। दशरथ जी ने मुकुट बाली के पास रख छोड़ा और कैकेयी को लेकर चले गए। कैकेयी कुशल योद्धा थीं। किसी भी वीर योद्धा को यह कैसे सुहाता कि राजा को अपना मुकुट छोड़कर आना पड़े। कैकेयी को बहुत दुख था कि रघुकुल का मुकुट उनके बदले रख छोड़ा गया है। वह राज मुकुट की वापसी की चिंता में रहतीं थीं। जब श्री राम जी के राजतिलक का समय आया तब दशरथ जी व कैकयी को मुकुट को लेकर चर्चा हुई। यह बात तो केवल यही दोनों जानते थे। कैकेयी ने रघुकुल की आन को वापस लाने के लिए श्री राम के वनवास का कलंक अपने ऊपर ले लिया और श्री राम

।।066।। बोध कथा। 🌺💐🏵 संकीर्णता हटाओ 🏵💐🌺

कुँवे ने शिकायत करते हुए समुद्र से कहा- "पिता! सभी नदी,नाले आपके घर में जगह पाते हैं, आप प्रेम पूर्वक उन्हें अपने घर में स्थान देते हैं, मुझसे ही पक्षपात क्यों?पिता के लिए तो सभी बेटे-बेटी एक से होते हैं।"           समुद्र ने उत्तर दिया- "वत्स!अपने चारों और दीवार बनाकर बैठने पर ही, तुम्हें अपने जन्म सिद्ध अधिकार से वंचित रहना पड़ा है। असीम और अनंत प्यार पाने के लिए स्वयं को भी असीम बनना पड़ता है। अपनी सीमाओं का त्याग करके उन्मुक्त रूप से अपने आप को व्यक्त करो, अपनी दीवारों को हटा दो। धरती को हरी-भरी तृप्त करती हुई तुम्हारी धारा, जब बंधन मुक्त हो उठेगी, तब तुम सहज ही मुझ में आ समाओगे ।"          मानव भी अपने चारों ओर, मेरे-तेरे की दीवारें खड़ी किए हुए हैं,और उस परमात्मा को दोष देता है, कि क्यों वह मुझे अपने में समाहित नहीं करता!  चलो तो सही, व्यष्टि से समष्टि की ओर। परमात्मा तो तुम्हारी प्रतीक्षा ही कर रहा है अपनी गोदी में लेने के लिए। ।। मनेन्दु पहारिया।। 15/10/2022

।।065।। बोधकथा। 🌺💐🏵 ईर्ष्या बनाम विष 🏵💐🌺

समुद्र मंथन हुआ तो उसमें से कालकूट विष भी निकला और रत्न भी निकले। रत्न तो अन्य देवताओं ने ले लिए, पर कालकूट जहर लेने को कोई तैयार ना हुआ।           अंत में विश्व कल्याण के लिए शिवजी को विष पान करना पड़ा।  कालकूट जहर पीते समय कुछ बूंदें मिट्टी पर गिर गईं। संयोगवश वह मिट्टी वहीं थी, जिसे लेकर ब्रह्माजी, मनुष्यों की देह बनाया करते थे।          ब्रह्मा भूल में पड़े रहे।  उन्होंने उस विष की बूंदों को हटाया नहीं और उस विषैली मिट्टी से ही मनुष्यों की देहें बनाते रहे।            विष की बूंदें ईर्ष्या की अग्नि बनकर मनुष्यों को जलाने लगी। दूसरों को बढ़ता देखकर प्रसन्न होने के स्थान पर अकारण जलने और अपनी विषपान जैसी हानि करते, मनुष्य तभी से चले आ रहे हैं।  ।। मनेन्दु पहारिया।। 14/10/2022

।।064।। बोधकथा। 🌺💐 जैसा बोओगे,वैसा काटोगे 💐🌺

एक किसान को बहुत दिनों पश्चात संतान हुई, उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा। नाम रखा 'देवदत्त'  पुत्र क्रमशः बढ़ने लगा, परंतु देवदत्त के दादा उसे अपने प्राणों से भी अधिक चाहते थे। तो पोता देवदत्त भी अपने दादा पर जान छिड़कता था। वह दादा का हर प्रकार से ध्यान रखता था।  देवदत्त की मां इस बात से ईर्ष्या करने लगी, और अंततः एक दिन नाराज होकर देवदत्त के पिता से बोली -इस घर में रहो तुम और तुम्हारा बाप, तथा बेटा।  मैं तो कल सवेरे अपने पीहर चली जाऊंगी।  लेकिन किस लिए? पति ने पूछा।  जिसको श्मसान जाना चाहिए, वह वहां नहीं जाता और व्यर्थ में मुझे उसकी बेगार करना पड़ती है, इतना ही नहीं, मेरे बेटे पर भी उसने जादू कर दिया है कि, वह किसी तरह बुड्ढे को छोड़ता ही नहीं! इसलिए जा रहे हैं।  पति ने कहा- अरे! तू तो एकदम पागल है। जो विधाता के हाथ की बात है, उसमें हम कैसे दखल दे सकते हैं? किसी की मृत्यु हमारी इच्छा से तो नहीं हो सकती ना?  हां हमारी इच्छा से हो सकती है,पत्नी ने कहा।  यह सुनकर पति चौक उठा। बोला कैसे?  जिस प्रकार कैकेई के कान भरने में मंथरा ने कोई कसर ना रखी थी, उसी प्रकार स्त्री ने भी अपने पति के

।।063।। बोधकथा। 🌺 अधूरी साधना का अपूर्ण फल 🌺

देवसेना का संचालन एक मनुष्य को सौंपकर हमें अपयश का पात्र ना बनाएं देवराज! क्या संपूर्ण देवलोक में एक भी देवता ऐसा नहीं रहा, जो देव सेना का संचालन कर सके? क्या हमें एक मनुष्य की अधीनता स्वीकार करनी ही पड़ेगी?  देवराज इंद्र के समक्ष खड़े सहस्त्रों देवताओं ने एक स्वर में प्रश्न किया और लज्जा बस अपने शीश नीचे झुका लिए।  हम विवश हैं देवताओं! इन्द्र आहत स्वर में बोले, प्रजापति ब्रह्मा की ऐसी ही इच्छा है। उनका कथन है कि संयम में डूबे देवगण जब अपनी सामर्थ्य नष्ट कर डालते हैं, तब उनकी रक्षा भी कोई मनुष्य ही करता है।  महाराज मुचकुंद यद्यपि मनुष्य हैं, पर संयम और पराक्रम में उन्होंने देवताओं को भी पीछे छोड़ दिया है। इसलिए आज संपूर्ण पृथ्वी और देवलोक में उनके समान प्रतापी एवं बलशाली और कोई दूसरा नहीं रहा।  प्रजापति का कथन है कि संयमी और सदाचारी व्यक्ति, मनुष्य तो क्या देव दनुज सभी को परास्त कर सकता है। अतः हम विवश हैं उनकी आज्ञा शिरोधार्य करने के अतिरिक्त कोई चारा भी तो नहीं रहा।  दूसरे दिन युद्ध के लिए देव सेना चली, तब उनका संचालन महाराज मुचकुंद कर रहे थे। संयम और तप का अपूर्व तेज उनके मुख मंडल प

।।062।। बोध कथा। 🌺💐 विभूति का दुरुपयोग ना हो 💐🌺

धर्म निष्ठा और तप साधना के प्रतिदान के फलस्वरूप महाराज युधिष्ठिर को अक्षय पात्र मिल गया। अक्षय पात्र की विशेषता यह थी कि उससे जब भी मांगा जाता, वह स्वादिष्ट और मधुर व्यंजन प्रदान करता।  परीक्षा हेतु उसी दिन हस्तिनापुर की समग्र जनता को मनपसंद व्यंजन और पकवान ग्रहण करने का सार्वजनिक निमंत्रण दिया गया।  हर किसी को इस अक्षय पात्र से लाभ उठाने की छूट थी। अक्षय पात्र अपने ढंग से प्रयुक्त होता रहा था। और तो सब ठीक ढंग से चल रहा था, लेकिन युधिष्ठिर को अनुभव होने लगा कि, मुझ जैसा कोई दानी नहीं है।  इस दंभ को पुष्ट करता रहा आश्रित जनों का जयगान।  एक व्यक्ति ही किसी की प्रशंसा करने लगे तो मनुष्य का भाल गर्व से उन्नत होने लगता है। फिर वहां तो 16000 समाज के प्रबुद्ध व्यक्ति युधिष्ठिर का यशोगान करते थे।  यह ठीक है कि युधिष्ठिर ने अपने जीवन का एक बड़ा भाग कठोर तप साधनाओं में गुजारा था, परंतु कुछ कमजोरियां अभी भी शेष थी, जिन्हें विजित करना, और उनमें से एक था वह सात्विक अभिमान।  भगवान कृष्ण ने जब यह देखा कि,  धर्मराज अभिमान के मद में चूर होते जा रहे हैं तो उन्हें अच्छा न लगा। भगवान प्रणत जनों की सब ओर

।।061।। बोध कथा।। 🌺💐 पहले स्वयं को जीतो 💐🌺

आप की विजय सराहनीय है महाराज! आप सचमुच वीर हैं। ऐसा ना होता तो आप मालव नरेश को 3 दिन में ही कैसे जीत लेते!राजपुरोहित पर्णिक ने महाराज सिंधुराज की ओर किंचित मुस्कुराते हुए कहा।  बात को आगे बढ़ाते हुए वे बोले- "लेकिन  सेना की विजय से भी बढ़कर विजय, मन की है, जो काम, क्रोध, लोभ और मोह जैसी सांसारिक ऐषणाओं को जीत लेता है, वही सच्चा शूरवीर है। उस विजय के आगे यह रक्तपात वाली, हिंसा वाली, शक्ति वाली, विजय नगण्य सी लगती है।" महाराज सिंधु राज ने कवच परिचारक को देते हुए कहा- आचार्य प्रवर! हम वैसी विजय भी करके दिखला सकते हैं। लगता है आपने हमारे पराक्रम का मूल्यांकन नहीं किया। सम्राट के स्वर में अहंकार मिश्रित रूखापन था।   राजपुरोहित की सूक्ष्म दृष्टि महाराज के उस मनोविकार को ताड़ गई, इसीलिए वे निःशंक बोले -"आपके पराक्रम को कौन नहीं जानता आर्य श्रेष्ठ! अभी एक दशक ही तो बीता है आपको सिंहासन पर बैठे, किंतु इस बीच आप ने कलिंग, सौराष्ट्र, मालव, विंध्य, पंचनद,  सभी प्रांत जीत डालें, क्या यह सब पराक्रमी होने का प्रमाण नहीं? किंतु यदि आप एक बार महर्षि बेन के दर्शन करके आते, तो पता चलता, कि

।।060।। बोधकथा। (चीजों का उपयोग करना, लेकिन उनके मोह में न पड़ना, सफलता का यही रहस्‍य है)

एक बहुत ही प्रसिद्ध महात्‍मा थे। उनके पास रोज ही बड़ी संख्‍या में लोग उनसे मिलने आते थे। एक बार एक बहुत ही अमीर व्‍यापारी उनसे मिलने पहुंचा। व्‍यापारी ने सुन रखा था कि महात्‍मा बड़े ही सुफीयाना तरीके से रहते है। जब वह व्‍यापारी महात्‍मा के दरबार में पहुंचा तो उसने देखा, कि कहने को तो वह महात्‍मा है, लेकिन वे जिस आसन पर बैठे है, वह तो सोने का बना है, चारों ओर सुगंध है, जरीदार पर्दे टंगे है, सेवक है जो महात्‍माजी की सेवा में लगे है। व्‍यापारी यह देखकर भौंच्‍चका रह गया कि हर तरफ विलास और वैभव का साम्राज्‍य है। ये कैसे महात्‍मा है? महात्‍मा उसके बारे में कुछ कहते, इसके पहले ही व्‍यापारी ने कहा, “महात्‍माजी आपकी ख्‍याति सुनकर आपके दर्शन करने आया था, लेकिन यहाँ देखता हूँ, आप तो भौतिक सपंदा के बीच मजे से रह रहे हैं,आप में साधु के कोई गुण नजर नही आ रहे है।“ महात्‍मा ने व्‍यापारी से कहा, “भाई… तुम्‍हें ऐतराज है तो मैं इसी पल यह सब वैभव छोड़कर तुम्‍हारे साथ चल देता हूँ।“ व्‍यापारी ने कहा, “हे महात्‍मा, क्‍या आप इस विलास पूर्ण जीवन को छोड़ पाएंगे?“ महात्‍माजी कुछ न बोले और उस व्‍यापारी के साथ चल

।।बोध कथा।।वास्तविक जीत हमारे इरादे , हौंसले और प्रयास में ही होती हैं.

अमेरिका की बात हैं. एक युवक को व्यापार में बहुत नुकसान उठाना पड़ा. उसपर बहुत कर्ज चढ़ गया, तमाम जमीन जायदाद गिरवी रखना पड़ी . दोस्तों ने भी मुंह फेर लिया, जाहिर हैं वह बहुत हताश था. कही से कोई राह नहीं सूझ रही थी. आशा की कोई किरण दिखाई न देती थी. एक दिन वह एक park में बैठा अपनी परिस्थितियो पर चिंता कर रहा था. तभी एक बुजुर्ग वहां पहुंचे. कपड़ो से और चेहरे से वे काफी अमीर लग रहे थे. बुजुर्ग ने चिंता का कारण पूछा तो उसने अपनी सारी कहानी बता दी. बुजुर्ग बोले -” चिंता मत करो. मेरा नाम John D. Rockefeller है. मैं तुम्हे नहीं जानता,पर तुम मुझे सच्चे और ईमानदार लग रहे हो. इसलिए मैं तुम्हे दस लाख डॉलर का कर्ज देने को तैयार हूँ.” फिर जेब से checkbook निकाल कर उन्होंने रकम दर्ज की और उस व्यक्ति को देते हुए बोले, “नौजवान, आज से ठीक एक साल बाद हम ठीक इसी जगह मिलेंगे. तब तुम मेरा कर्ज चुका देना.” इतना कहकर वो चले गए. युवक shocked था. Rockefeller तब america के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक थे. युवक को तो भरोसा ही नहीं हो रहा था की उसकी लगभग सारी मुश्किल हल हो गयी. उसके पैरो को पंख लग गये. घर पहुंचकर

।।059।। बोधकथा। � 🌺 दसवीं कक्षा का रजिस्टर 🌺

डिप्रेशन ग्रस्त एक सज्जन जब पचास साल की उम्र से ज्यादा के हुए तो उनकी पत्नी ने एक काउंसलर का अपॉइंटमेंट लिया जो ज्योतिषी भी थे। पत्नी बोली:- "ये भयंकर डिप्रेशन में हैं, कुंडली भी देखिए इनकी।" और बताया कि इन सब के कारण मैं भी ठीक नही हूँ। ज्योतिषी ने कुंडली देखी सब सही पाया। अब उन्होंने काउंसलिंग शुरू की, कुछ पर्सनल बातें भी पूछी और सज्जन की पत्नी को बाहर बैठने को कहा। सज्जन बोलते गए... बहुत परेशान हूं... चिंताओं से दब गया हूं... नौकरी का प्रेशर... बच्चों के एजूकेशन और जॉब की टेंशन... घर का लोन, कार का लोन... कुछ मन नही करता... दुनिया मुझे तोप समझती है... पर मेरे पास कारतूस जितना भी सामान नही.... मैं डिप्रेशन में हूं... कहते हुए पूरे जीवन की किताब खोल दी। तब विद्वान काउंसलर ने कुछ सोचा और पूछा, "दसवीं में किस स्कूल में पढ़ते थे?" सज्जन ने उन्हें स्कूल का नाम बता दिया। काउंसलर ने कहा:- "आपको उस स्कूल में जाना होगा। आप वहां से आपकी दसवीं क्लास का रजिस्टर लेकर आना, अपने साथियों के नाम देखना और उन्हें ढूंढकर उनके वर्तमान हालचाल की जानकारी लेने की कोशिश करना। सारी जा

।।058।। बोधकथा। 🌺💐🏵 अकेलेपन की मौत 🏵💐🌺

मेरी पत्नी ने कुछ दिनों पहले घर की छत पर कुछ गमले रखवा दिए और एक छोटा सा गार्डन बना लिया।  पिछले दिनों मैं छत पर गया तो ये देख कर हैरान रह गया कि कई गमलों में फूल खिल गए हैं, नींबू के पौधे में दो नींबू  🍋🍋भी लटके हुए हैं और दो चार हरी मिर्च भी लटकी हुई नज़र आई। मैंने देखा कि पिछले हफ्ते उसने बांस 🎋का जो पौधा गमले में लगाया था, उस गमले को घसीट कर दूसरे गमले के पास कर रही थी। मैंने कहा तुम इस भारी गमले को क्यों घसीट रही हो? पत्नी ने मुझसे कहा कि यहां ये बांस का पौधा सूख रहा है, इसे खिसका कर इस पौधे के पास कर देते हैं। मैं हंस पड़ा और कहा अरे पौधा सूख रहा है तो खाद डालो, पानी डालो। 💦 इसे खिसका कर किसी और पौधे के पास कर देने से क्या होगा?" 😕 _*पत्नी ने मुस्कुराते हुए कहा ये पौधा यहां अकेला है इसलिए मुर्झा रहा है।* इसे इस पौधे के पास कर देंगे तो ये फिर लहलहा उठेगा। ☺ पौधे अकेले में सूख जाते हैं, लेकिन उन्हें अगर किसी और पौधे का साथ मिल जाए तो जी उठते हैं।" यह बहुत अजीब सी बात थी। एक-एक कर कई तस्वीरें आखों के आगे बनती चली गईं। मां की मौत के बाद पिताजी कैसे एक ही रात में बूढ़े,

।।057।। बोधकथा। 🏵💐🌺 न दैन्यं न पलायनम् 🏵💐🌺

एक बार महाराणा प्रताप पुंगा की पहाड़ी बस्ती में रुके हुए थे । बस्ती के भील बारी-बारी से प्रतिदिन राणा प्रताप के लिए भोजन पहुँचाया करते थे। इसी कड़ी में आज दुद्धा की बारी थी। लेकिन उसके घर में अन्न का दाना भी नहीं था। दुद्धा की मांँ पड़ोस से आटा मांँगकर ले आई और रोटियाँ बनाकर दुद्धा को देते हुए बोली, "ले! यह पोटली महाराणा को दे आ ।" दुद्धा ने खुशी-खुशी पोटली उठाई और पहाड़ी पर दौड़ते-भागते रास्ता नापने लगा ।  घेराबंदी किए बैठे अकबर के सैनिकों को दुद्धा को देखकर शंका हुई। एक ने आवाज लगाकर पूछा: "क्यों रे ! इतनी जल्दी-जल्दी कहाँ भागा जा रहा है ?" दुद्धा ने बिना कोई जवाब दिये, अपनी चाल बढ़ा दी। मुगल सैनिक उसे पकड़ने के लिये उसके पीछे भागने लगा, लेकिन उस चपल बालक का पीछा वह जिरह-बख्तर में कसा सैनिक नहीं कर पा रहा था ।  दौड़ते-दौड़ते वह एक चट्टान से टकराया और गिर पड़ा, इस क्रोध में उसने अपनी तलवार चला दी तलवार के वार से बालक की नन्हीं कलाई कटकर गिर गई । खून फूट कर बह निकला, लेकिन उस बालक का जिगर देखिये, नीचे गिर पड़ी रोटी की पोटली उसने दूसरे हाथ से उठाई और फिर सरपट दौड़ने

।।056।। बोध कथा। 🌺💐 देहि मे सुखदां कन्याम 💐🌺

अत्रि का कोमल गात 25 वर्ष तक गुरुकुल में ब्रह्मचर्य पूर्वक विद्या अध्ययन करने के साथ निखर पड़ा। सुघड़ देहयष्टि,उन्नत वक्ष स्थल, और देदीप्यमान ललाट। अत्रि तब तक ऋषि नहीं बने थे, पर 25 वर्ष की संयमित जीवन साधना और तपस्या के फलस्वरूप उनके मुख्य मंडल पर अपूर्व कांति खिल उठी थी।  यह तब की बात है, जब शिक्षा का स्वरूप आज जैसा नहीं था। छोटी आयु में ही बालक योग्य और चरित्रनिष्ठ कुलपतियों के आश्रम में पहुंचा दिए जाते थे। यहां उन्हें अक्षर ज्ञान से लेकर वेदांग तक का शिक्षण दिया जाता था, जिससे वहां से निकलने से पूर्व, स्नातकों के मन और विचार परिपक्व हो जाते थे। कठोर संयम और सफल जीवन के कारण उनका स्वास्थ्य और आरोग्य तो अपने आप बुलंद हो जाता था। इस तरह शरीर और मन दोनों से स्वस्थ होकर जब भी गृहस्थ में प्रवेश करते थे तब का पारिवारिक आनंद ही कुछ और होता था।  नियमानुसार अत्रि ने आचार्य को प्रणाम कर विदा मांगी। आचार्य ने तिलक करते हुए कहा- "वत्स! अब तुम गृहस्थाश्रम में प्रवेश कर स्वस्थ और तेजस्वी संतान को जन्म दो, जिससे अपने पितामह ऋषियों द्वारा प्रणीत, वर्णाश्रम संस्कृति अविच्छिन्न रूप से चलती रहे।

#4_अक्तूबर #जयमंगल_पांडे_और_नादिर_अली_का_बलिदानदिवस

1857 के स्वाधीनता संग्राम की ज्योति को अपने बलिदान से जलाने वाले मंगल पाण्डे को तो सब जानते हैं; पर उनके नाम से काफी मिलते-जुलते बिहार निवासी जयमंगल पाण्डे का नाम कम ही प्रचलित है। बैरकपुर छावनी में हुए विद्रोह के बाद देश की अन्य छावनियों में भी क्रान्ति-ज्वाल सुलगने लगी। बिहार में सैनिक क्रोध से जल रहे थे।13 जुलाई को दानापुर छावनी में सैनिकों ने क्रान्ति का बिगुल बजाया, तो 30 जुलाई को रामगढ़ बटालियन की आठवीं नेटिव इन्फैण्ट्री के जवानों ने हथियार उठा लिये। भारत माता को दासता की जंजीरों से मुक्त करने की चाहत हर जवान के दिल में घर कर चुकी थी। बस, सब अवसर की तलाश में थे। सूबेदार जयमंगल पाण्डे उन दिनों रामगढ़ छावनी में तैनात थे। उन्होंने अपने साथी नादिर अली को तैयार किया और फिर वे दोनों150 सैनिकों को साथ लेकर राँची की ओर कूच कर गये। वयोवृद्ध बाबू कुँवरसिंह जगदीशपुर में अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे। इस अवस्था में भी उनका जीवट देखकर सब क्रान्तिकारियों ने उन्हें अपना नेता मान लिया था। जयमंगल पाण्डे और नादिर अली भी उनके दर्शन को व्याकुल थे। 11 सितम्बर, 1857 को ये दोनों अपने जवानों के साथ जगदीशप

#4_अक्तुबर #सागरपार_भारतीय_क्रान्ति_के_दूत_श्यामजी_कृष्ण_वर्मा_जी_के_जन्मदिवस

भारत के स्वाधीनता संग्राम में जिन महापुरुषों ने विदेश में रहकर क्रान्ति की मशाल जलाये रखी, उनमें श्यामजी कृष्ण वर्मा का नाम अग्रणी है। चार अक्तूबर, 1857 को कच्छ (गुजरात) के मांडवी नगर में जन्मे श्यामजी पढ़ने में बहुत तेज थे। इनके पिता श्रीकृष्ण वर्मा की आर्थिक स्थिति अच्छी न थी; पर मुम्बई के सेठ मथुरादास ने इन्हें छात्रवृत्ति देकर विल्सन हाईस्कूल में भर्ती करा दिया। वहाँ वे नियमित अध्ययन के साथ पंडित विश्वनाथ शास्त्री की वेदशाला में संस्कृत का अध्ययन भी करने लगे। मुम्बई में एक बार महर्षि दयानन्द सरस्वती आये। उनके विचारों से प्रभावित होकर श्यामजी ने भारत में संस्कृत भाषा एवं वैदिक विचारों के प्रचार का संकल्प लिया। ब्रिटिश विद्वान प्रोफेसर विलियम्स उन दिनों संस्कृत-अंग्रेजी शब्दकोष बना रहे थे। श्यामजी ने उनकी बहुत सहायता की। इससे प्रभावित होकर प्रोफेसर विलियम्स ने उन्हें ब्रिटेन आने का निमन्त्रण दिया। वहाँ श्यामजी ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में संस्कृत के अध्यापक नियुक्त हुए; पर स्वतन्त्र रूप से उन्होंने वेदों का प्रचार भी जारी रखा। कुछ समय बाद वे भारत लौट आये। उन्होंने मुम्बई में वकालत की