भिखारी दिनभर भीख मांगता-मांगता शाम को एक सराय में पहुंचा और भीतर की कोठरी में भीख की झोली रख कर सो गया।
थोड़ी देर बाद एक किसान आया, उसके पास रुपयों की एक थैली थी। किसान बैल खरीदने गया था। रात वह भी उसी सराय में रुका, जहां भिखारी था, और वह थैली सिरहाने रख कर सो गया।
भीख की झोली, रुपयों की थैली से बोली- बहन! हम तुम एक ही बिरादरी के हैं,फिर इतनी दूरी क्यों हैं? आओ हम तुम एक हो जाएं !
रुपयों की थैली ने हंसकर कहा -"बहन! क्षमा करो, यदि मैं तुमसे मिल गई, तो संसार में परिश्रम और पुरुषार्थ का मूल्य ही क्या रह जाएगा?
दीपावली प्रत्येक मानव के लिए पुरुषार्थ का आकलन करने का त्यौहार होता है।
विद्यार्थी को विद्या अर्जन का प्रण लेकर आगे बढ़ने का,
उद्यमी को पुरुषार्थ से लक्ष्मी को प्रसन्न करने का,
वानप्रस्थ को संसार की, उसके द्वारा की गई भलाई का मूल्यांकन करने का,
और सन्यासी का इस लोक के साथ परलोक की यात्रा सुगम बनाने का।
और इसीलिए हम बही खातों का निर्धारण करते हैं,अर्थात- गत वर्ष क्या अच्छा किया, और क्या कमी रह गई, जिसे इस वर्ष पूरा करेंगे। बिना परिश्रम, मुफ्त कुछ पाने की आकांक्षा, पुरुषार्थ को कुंठित करती है, हमें अकर्मण्य बनाती है। काश शासक यह सोच पाते!
आप सभी आत्मीय जनों को पांच दिवसीय दीपोत्सव की अनंत-अनंत शुभकामनाएं। 🙏🙏🙏
।। मनेन्दु पहारिया।।
24/10/2022