राजस्थान में जन्म लेकर कोलकाता को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले श्री जुगल किशोर जैथलिया का जन्म दो अक्तूबर, 1937 को छोटीखाटू (जिला नागौर) में हुआ था। उनके पिता श्री कन्हैया लाल एवं माता श्रीमती पुष्पादेवी थीं। अकेले पुत्र होने के कारण 15 वर्ष में ही उनका विवाह कर दिया गया।
1953 में वे कोलकाता आ गये, जहां उनके पिताजी एक राजस्थानी फर्म में काम करते थे। जुगलजी ने यहां काम के साथ पढ़ाई जारी रखी और कानून और एम.काॅम की उपाधि प्राप्त की। इसी दौरान वे एक वकील के पास बैठने लगे और फिर अलग से आयकर सलाहकार के रूप में काम शुरू कर दिया।
जुगलजी का रुझान साहित्यिक गतिविधियों की ओर विशेष था। कोलकाता आकर भी वे अपनी जन्मभूमि से जुड़े रहे। उन्होंने अपने मित्रों के साथ 1958 में ‘श्री छोटीखाटू हिन्दी पुस्तकालय’ की स्थापना की। यहां पत्र-पत्रिकाओं के अध्ययन के साथ विचार गोष्ठियां भी होती थीं, जिसमें वे सामाजिक, साहित्यिक और राजनीतिक जगत की बड़ी हस्तियों को बुलाते थे।
पुस्तकालय के भवन का उद्घाटन उन्होंने प्रख्यात साहित्यकार वैद्य गुरुदत्त से कराया। इससे उस गांव की पहचान पूरे प्रदेश में हो गयी। इसके बाद ‘पंडित दीनदयाल साहित्य सम्मान’ तथा ‘महाकवि कन्हैयालाल सेठिया मायड़ भाषा सम्मान’ प्रारम्भ किये। कई स्मारिकाएं भी प्रकाशित की गयीं। गांव में टेलीफोन, पेयजल, अस्पताल जैसे लोक कल्याण के कामों में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
कोलकाता में राजस्थान परिषद, सेठ सूरजमल जालान पुस्तकालय, बड़ाबाजार लाइब्रेरी आदि के उन्नयन में उनकी भूमिका सदा याद की जाएगी। 1973 में उन्होंने ‘श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय’ का काम संभाला और उसे राष्ट्रीय प्रतिष्ठा दिलाई। इसमें श्री विष्णुकांत शास्त्री का भी विशेष योगदान रहा।
उनके संयोजन में आपातकाल के दौरान हल्दीघाटी चतुःशती समारोह एवं कवि सम्मेलन हुआ। 1994 में अटल बिहारी वाजपेयी का एकल काव्यपाठ तो अद्भुत था। आज अटलजी की जो कविताएं उनके स्वर में उपलब्ध हैं, वे उसी कार्यक्रम की देन हैं। संस्था द्वारा 1986 से ‘स्वामी विवेकानंद सेवा सम्मान’ तथा 1990 से ‘डा. हेडगेवार प्रज्ञा सम्मान’ भी दिया जा रहा है।
जुगलजी स्मारिकाओं के प्रकाशन पर विशेष जोर देते थे। इससे जहां संस्था की आर्थिक स्थिति सुधरती थी, वहां उस विषय पर अधिकृत जानकारी भी पाठकों को उपलब्ध होती थी। गद्य एवं पद्य के कई ग्रंथों का सम्पादन उन्होंने स्वयं किया। 65 वर्ष के होने पर उन्होंने वकालत छोड़ दी और पूरा समय सामाजिक कामों में लगाने लगे।
वे कोलकाता की कई संस्थाओं के सदस्य थे। उनके प्रयास से कोलकाता में महाराणा प्रताप की स्मृति में एक पार्क तथा सड़क का नामकरण हुआ तथा एक बड़ी कांस्य प्रतिमा स्थापित हुई। वे भारत सरकार द्वारा संचालित ‘नेशनल बुक ट्रस्ट’ के निदेशक एवं न्यासी भी थे। उनके प्रयास से इस संस्था ने राजस्थानी भाषा में भी पुस्तकें प्रकाशित कीं।
जुगलजी 1946 में अपने गांव में शाखा जाने लगे थे। कोलकाता में वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और फिर संघ में सक्रिय रहे। उन पर महानगर बौद्धिक प्रमुख और फिर प्रांत के सह बौद्धिक प्रमुख की जिम्मेदारी रही। 1982 में वे भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर जोड़ाबागान विधानसभा से चुनाव लड़े। वे बंगाल भा.ज.पा. के कोषाध्यक्ष तथा वरिष्ठ उपाध्यक्ष भी रहे।
कोलकाता में बड़ी संख्या में राजस्थानी व्यापारी रहते हैं। अपने मूल स्थानों के अनुसार उनकी संस्थाएं भी हैं। उन्हें एक साथ लाने और संघ से जोड़ने में जुगलजी की भूमिका बड़े महत्व की रही। वे पृष्ठभूमि में रहकर सभी शैक्षिक, साहित्यिक और सांस्कृतिक संस्थाओं का सहयोग करते थे। अनेक सम्मानों से विभूषित जुगल किशोर जैथलिया का एक जून, 2016 को कोलकाता में ही निधन हुआ।
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