।।075।। बोधकथा। 💐🌺🏵 सत्य और असत्य 🏵🌺💐


प्रतिदिन सवेरे और शाम, छाया मनुष्य को टोकती- "लो देखो! तुम जितने थे उतने ही रहे, और मैं तुमसे कई गुनी बढ़ गई।"

 एक दिन मानव मुस्कुराया, उसने कहा "सत्य और असत्य में यही तो अंतर है। सत्य जितना है उतना ही रहता है और असत्य पल-पल में घटता बढ़ता रहता है।"


 छाया निरुत्तर हो गई।


।। मानेन्दु पहारिया।।

 26/10/2022

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