कुँवे ने शिकायत करते हुए समुद्र से कहा- "पिता! सभी नदी,नाले आपके घर में जगह पाते हैं, आप प्रेम पूर्वक उन्हें अपने घर में स्थान देते हैं, मुझसे ही पक्षपात क्यों?पिता के लिए तो सभी बेटे-बेटी एक से होते हैं।"
समुद्र ने उत्तर दिया- "वत्स!अपने चारों और दीवार बनाकर बैठने पर ही, तुम्हें अपने जन्म सिद्ध अधिकार से वंचित रहना पड़ा है। असीम और अनंत प्यार पाने के लिए स्वयं को भी असीम बनना पड़ता है। अपनी सीमाओं का त्याग करके उन्मुक्त रूप से अपने आप को व्यक्त करो, अपनी दीवारों को हटा दो। धरती को हरी-भरी तृप्त करती हुई तुम्हारी धारा, जब बंधन मुक्त हो उठेगी, तब तुम सहज ही मुझ में आ समाओगे ।"
मानव भी अपने चारों ओर, मेरे-तेरे की दीवारें खड़ी किए हुए हैं,और उस परमात्मा को दोष देता है, कि क्यों वह मुझे अपने में समाहित नहीं करता!
चलो तो सही, व्यष्टि से समष्टि की ओर। परमात्मा तो तुम्हारी प्रतीक्षा ही कर रहा है अपनी गोदी में लेने के लिए।
।। मनेन्दु पहारिया।।
15/10/2022