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दिसंबर, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

।।107।। बोध कथा। 🏵💐🌺 त्यागा नहीं, पाया 🌺💐🏵

एक धार्मिक मुमुक्षु ने अपनी सारी धन-दौलत लोकोपयोगी कार्यों में लगाते हुए जीवन व्यतीत करना प्रारंभ कर दिया। उनके सदकार्यों की सर्वत्र चर्चा होने लगी।  जनता के कुछ प्रतिनिधियों ने उस मुमुक्षु के पास उपस्थित होकर निवेदन किया-"आपका त्याग प्रशंसनीय है। आपकी सेवाओं से समाज ऋणी है, हम सब सार्वजनिक रूप से आपका अभिनंदन कर, दानवीर तथा मानवरत्न के अलंकरण से आपको विभूषित करना चाहते हैं। कृपया हम सब की इस प्रार्थना को स्वीकार कीजिए।"  मुमुक्षु ने मुस्कुराते हुए कहा- "बंधु मैंने कोई त्याग नहीं किया है, वरन लाभ लिया है।  बैंक में रुपए जमा करना त्याग नहीं, वरन ब्याज का लाभ है। ग्राहक को वस्तु देकर दुकानदार किसी प्रकार के त्याग का परिचय नहीं देता, वह तो बदले में उसकी कीमत लेकर लाभ कमाता है। समुद्र के किनारे खड़े हुए व्यक्ति को जब मोती दिखाई दे, तो उन्हें समेट कर कौन झोली में नहीं भरना चाहेगा?  उस समय यदि उसकी झोली में शंख और सीपियां होंगी, तो उन्हें खाली कर मूल्यवान वस्तुएं भरना क्या त्याग की वृत्ति की परिचायक हैं ? उसी प्रकार क्रोध, लोभ, मोह, आदि को छोड़कर, अपने स्वभाव में अहिंसा, परोपक

।।106।। बोध कथा। 🏵💐🌺 दो पैसे की सिद्धि 🌺💐🏵

बिना नाव की सहायता के योगी ने जल पर चलकर नदी को पार किया। उसे अपनी सिद्धि पर बहुत गर्व हुआ और संतोष भी।  अहंकार से तने हुए उस योगी को एक बूढ़े मछुआरे ने देखा। उसने समीप जाकर साष्टांग प्रणाम करते हुए उनसे पूछा -भगवन! जल पर चलने की सिद्धि आपने कितने समय में प्राप्त की?  योगी ने अपना गर्वोन्नत मस्तक और भी ऊंचा उठाते हुए कहा- पूरे 20 वर्ष कठोर तपस्या करके मैंने यह सिद्धि प्राप्त की है।  बूढ़े ने खिन्न होकर कहा- "महाराज! आपका इतना लंबा समय व्यर्थ ही चला गया । जो काम नाँव वाले को दो पैसे देकर पूरा हो सकता था, उसके लिए इतना कष्ट उठाने की क्या जरूरत थी?"  ईश्वर साधना के मार्ग में सिद्धियां व्यवधान पैदा करती हैं, और जो व्यक्ति सिद्धियों से संतुष्ट होकर उसका सार्वजनिक प्रदर्शन करने लगता है,संभवतः ईश्वर से उसकी दूरी और भी अधिक हो जाती है। ।। मनेन्दु पहारिया।।   27/12/2022

।।105।। बोधकथा। 🌺🏵💐 मर्यादा पुरुष राम 💐🏵🌺

एक दिन श्री राम* से *भरत भैया* ने कहा , "एक बात पूछूँ" ? *भईया* !!       *माता कैकई* ने आपको वनवास दिलाने के लिए मँथरा के साथ मिल कर जो 'षड्यंत्र' किया था , *क्या वह राजद्रोह नहीं था ?*     उनके *'षड्यंत्र'* के कारण....एक ओर राज्य के *भावी महाराज* और *महारानी* को (14) चौदह वर्ष का वनवास झेलना पड़ा....तो दूसरी ओर *पिता महाराज* की दु:खद मृत्यु हुई ।  ऐसे 'षड्यंत्र' के लिए फिर आपने *माता कैकई* को *दण्ड* क्यों नहीं दिया ? *राम मुस्कुराए*…....बोले,  "जानते हो *भरत* !!  किसी कुल में एक *चरित्रवान और धर्मपरायण पुत्र* जन्म ले ले , तो उसका जीवन उसके *असँख्य पीढ़ी के पितरों के अपराधों* का प्रायश्चित कर देता है । जिस *"माँ"* ने तुम *जैसे - महात्मा* को जन्म दिया हो , उसे *दण्ड* कैसे दिया जा सकता है ..*भरत ?"* (भरत सन्तुष्ट नहीं हुए) कहा , "यह तो *मोह* है भईया ; और "राजा_ का_ दण्डविधान" *मोह* से मुक्त होता है । कृपया *एक राजा की तरह* उत्तर दीजिये कि आपने *माता* को *दण्ड* क्यों नहीं दिया ?.......समझिए कि आपसे यह *प्रश्न* आपका अनुज नह

।।104।। बोधकथा ।।कौरवों का अज्ञातवास,अर्थात? ।।

महाभारत में एक प्रसंग आता है जब धर्मराज युधिष्ठिर ने विराट के दरबार में पहुँचकर कहा-  “हे राजन! मैं व्याघ्रपाद गोत्र में उत्पन्न हुआ हूँ तथा मेरा नाम 'कंक' है। मैं द्यूत विद्या में निपुण हूँ। आपके पास आपकी सेवा करने की कामना लेकर उपस्थित हुआ हूँ।” द्यूत ......जुआ ......यानि वह खेल जिसमें धर्मराज अपना सर्वस्व हार बैठे थे। कंक बन कर वही खेल वह राजा विराट को सिखाने लगे। जिस बाहुबली के लिये रसोइये दिन रात भोजन परोसते रहते थे वह भीम बल्लभ का भेष धारण कर स्वयं रसोइया बन गया। नकुल और सहदेव पशुओं की देखरेख करने लगे। दासियों सी घिरी रहने वाली महारानी द्रौपदी .......स्वयं एक दासी सैरंध्री बन गयी। ......और वह धनुर्धर। उस युग का सबसे आकर्षक युवक, वह महाबली योद्धा। वह द्रोण का सबसे प्रिय शिष्य। वह पुरूष जिसके धनुष की प्रत्यंचा पर बाण चढ़ते ही युद्ध का निर्णय हो जाता था।वह अर्जुन पौरुष का प्रतीक अर्जुन। नायकों का महानायक अर्जुन।एक नपुंसक बन गया। एक नपुंसक ? उस युग में पौरुष को परिभाषित करने वाला अपना पौरुष त्याग कर होठों पर लाली लगा कर ,आंखों में काजल लगा कर  एक नपुंसक "बृह्नला" बन

।।103।। बोधकथा। 🌺🏵💐 *इस और राम उस और रावण* 🌺🏵💐

 तस्वीर दिल्ली के एक साधारण टैक्सी चालक देवेन्द्र की है. देवेन्द्र मूलतः बिहार के रहने वाले हैं। एक दिन देबेन्द्र की टैक्सी में काश्मीर का निवासी बैठा जिसे एयरपोर्ट से पहाड़गंज तक जाना था। देवेन्द्र ने उसको पहाड़गंज छोड़ा, अपना किराया वसूला और वापिस टैक्सी स्टैंड की ओर चल पड़े। इसी बीच उनकी नज़र गाड़ी में पड़े एक बैग पर गयी। बैग को देखकर देवेंद्र समझ गए कि यह उसी सवारी का बैग है, जिसे कुछ ही समय पहले वह पहाड़गंज छोड़ कर आये हैं। बैग को खोलकर देखा तो उसमें कुछ स्वर्ण आभूषण, एक एप्पल का लैपटॉप, एक कैमरा और कुछ नगद पैसे थे। सब कुछ मिला के लगभग 7 या 8 लाख का सामान था।। एकदम देबेन्द्र की आँखों के सामने अपनी टैक्सी के फाइनेन्सर की तस्वीर आ गयी। इतने आभूषण बेच कर तो उनकी टैक्सी का कर्ज आसानी से उतर सकता था। एक दम से प्रसन्न हो उठे। उनके मन में बैठा रावण जाग उठा। पराया माल अपना लगने लगा।परन्तु जीवन की यही तो विडम्बना है। मन में राम और रावण दोनों निवास करते हैं। कुछ ही दूर गये थे के मन में बैठे राम जाग उठे। देबेन्द्र को लगा के वह कैसा पाप करने जा रहे थे।नैतिकता आड़े आ गयी। बड़ी दुविधा थी। एक ओर आभूषण साम

।।102।। बोधकथा। 🌺🏵💐 *ब्रेक* 🌺🏵💐

एक बार भौतिक विज्ञान की कक्षा में शिक्षक ने विद्यार्थियों से पूछा:- कार में ब्रेक क्यों लगाते हैं...?                 एक छात्र ने उठकर उत्तर दिया:- सर, कार को रोकने के लिए।                    एक अन्य छात्र ने उत्तर दिया:-कार की गति को कम करने और नियंत्रित करने के लिए।           एक अन्य ने कहा:- टक्कर से बचने के लिए।            जल्द ही,जवाब दोहराए जाने लगे, इसलिए शिक्षक ने स्वयं प्रश्न का उत्तर देने का निर्णय लिया...            चेहरे पर एक मुस्कान के साथ उन्होंने कहा :- मैं आप सभी की सराहना करता हूं, कि आप इस सवाल का जवाब देने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि मेरा मानना ​​​​है कि यह सब व्यक्तिगत धारणा का विषय है। पर मैं इसे इस तरह से देखता हूं:- *कार में ब्रेक, हमें इसे और तेज चलाने में सक्षम बनाते हैं.....*          कक्षा में गहरा सन्नाटा छा गया! इस जवाब की किसी ने कल्पना नहीं की थी।               शिक्षक ने बात जारी रखते हुए कहा :- एक पल के लिए,मान लेते हैं कि हमारी कार में कोई ब्रेक नहीं है। अब हम अपनी कार को कितनी तेज चलाने के लिए तैयार होंगे ?        आगे उन्होंने कहा:- ये ब्रेक ही हैं ज

।।101।। बोधकथा। 🌺💐🏵 पिता की छाँव 🌺💐🏵

एक सज्जन रेलवे स्टेशन पर बैठे गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहे थे तभी जूते पॉलिश करने वाला एक लड़का आकर बोला~ ‘‘साहब! बूट पॉलिश ?’’ उसकी दयनीय सूरत देखकर उन्होंने अपने जूते आगे बढ़ा दिये, बोले- ‘‘लो, पर ठीक से चमकाना।’’ लड़के ने काम तो शुरू किया परंतु अन्य पॉलिशवालों की तरह उसमें स्फूर्ति नहीं थी। वे बोले~ ‘‘कैसे ढीले-ढीले काम करते हो? जल्दी-जल्दी हाथ चलाओ !’’ वह लड़का मौन रहा। इतने में दूसरा लड़का आया। उसने इस लड़के को तुरंत अलग कर दिया और स्वयं फटाफट काम में जुट गया। पहले वाला गूँगे की तरह एक ओर खड़ा रहा। दूसरे ने जूते चमका दिये। ‘पैसे किसे देने हैं?’ इस पर विचार करते हुए उन्होंने जेब में हाथ डाला। उन्हें लगा कि ‘अब इन दोनों में पैसों के लिए झगड़ा या मारपीट होगी।’ फिर उन्होंने सोचा, ‘जिसने काम किया, उसे ही दाम मिलना चाहिए।’ इसलिए उन्होंने बाद में आनेवाले लड़के को पैसे दे दिये। उसने पैसे ले तो लिये परंतु पहले वाले लड़के की हथेली पर रख दिये। प्रेम से उसकी पीठ थपथपायी और चल दिया। वह आदमी विस्मित नेत्रों से देखता रहा। उसने लड़के को तुरंत वापस बुलाया और पूछा~ ‘‘यह क्या चक्कर है?’’ लड़का बोला~ ‘‘साहब! यह तीन

Very inspired story: A Year to Live.

Anthony Burgess was forty when he learned he had a brain tumor that would kill him within a year. He had no money at the time and nothing to bequeath to his soon-to-be widow, Lynne. Burgess had never been a professional novelist in the past; but he was always aware that he had the talent to be a writer in him. So, just to be able to leave at least the copyrights to his wife, he put a piece of paper in the typewriter and began to write his first novel. It was not even certain that what he had written could be published; but he couldn’t think of anything else to do. “It was January 1960,” he said, “and according to the diagnosis, I had a winter, a spring, and a summer ahead of me. That year, when the leaves began to fall, I would have died too.” With that speed and haste, Burgess had managed to write five and a half novels before the year was out. E. M. Forster could only write so many in almost an entire lifetime; J. D. Salinger, one of America’s greatest writers, managed to write only

।।100।। बोधकथा। 🌺💐🏵 पिता की छाँव 🌺💐🏵

एक पाँच छ: साल का मासूम बच्चा अपनी छोटी बहन को लेकर गुरुद्वारे के एक तरफ कोने में बैठा हाथ जोड़कर भगवान से न जाने क्या मांग रहा था । कपड़े मैले थे, उसके नन्हे नन्हे से गाल आँसूओं से भीग चुके थे  बहुत लोग उसकी तरफ आकर्षित थे और वह बिल्कुल अनजान अपने भगवान से बातों में लगा हुआ था । जैसे ही वह उठा एक अजनबी ने बढ़ के उसका नन्हा सा हाथ पकड़ा और पूछा : - *क्या मांगा भगवान से*        उसने कहा: - *मेरे पापा मर गए हैं* *उनके लिए स्वर्ग मांगा* मेरी माँ रोती रहती है उनके लिए धीरज मांगा, और मेरी बहन माँ से कपडे, सामान मांगती है, उसके लिए पैसे मांगे"..  "तुम स्कूल जाते हो"..? अजनबी का सवाल स्वाभाविक सा सवाल था  हां जाता हूं, उसने कहा । किस क्लास में पढ़ते हो ?  *अजनबी ने पूछा* नहीं अंकल पढ़ने नहीं जाता, मां चने बना देती है, वह स्कूल के बच्चों को बेचता हूँ । बहुत सारे बच्चे मुझसे चने खरीदते हैं, हमारा यही काम धंधा है । बच्चे का एक एक शब्द मेरी रूह में उतर रहा था  *तुम्हारा कोई रिश्तेदार* न चाहते हुए भी अजनबी बच्चे से पूछ बैठा। पता नहीं, माँ कहती है गरीब का कोई रिश्तेदार नहीं होता, *मा

।।099।। बोधकथा। 🌺💐 मदद करना जारी रखें 💐🌺

 एक आदमी को एक नाव पेंट करने के लिए कहा गया। वह अपना पेंट और ब्रश लाया और नाव को चमकीले लाल रंग से रंगना शुरू किया, जैसा कि मालिक ने उससे कहा था। पेंटिंग करते समय, उसने पतवार में एक छोटा सा छेद देखा और चुपचाप उसकी मरम्मत की। जब उसने पेंटिंग पूरी की, तो उसने अपना पैसा लिया और चला गया। अगले दिन, नाव का मालिक पेंटर के पास आया और उसे एक अच्छा चेक भेंट किया, जो पेंटिंग के भुगतान से कहीं अधिक था। पेंटर को आश्चर्य हुआ और उसने कहा, "आपने मुझे नाव को पेंट करने के लिए पहले ही भुगतान कर दिया है सर!" "लेकिन यह पेंट जॉब के लिए नहीं है। यह नाव में छेद की मरम्मत के लिए है।” "आह! लेकिन यह इतनी छोटी सी सेवा थी... निश्चित रूप से यह मुझे इतनी छोटी सी चीज के लिए इतनी अधिक राशि देने के लायक नहीं है।" “मेरे प्यारे दोस्त, तुम नहीं समझे। आपको बताते हैं क्या हुआ था: “जब मैंने तुमसे नाव को पेंट करने के लिए कहा, तो मैं छेद का उल्लेख करना भूल गया। “जब नाव सूख गई, तो मेरे बच्चे नाव ले गए और मछली पकड़ने की यात्रा पर निकल गए। "वे नहीं जानते थे कि एक छेद था। मैं उस समय घर पर नहीं था। &qu

।।098।। बोधकथा। 🌺💐 शुभचिंतक की पहचान 💐🌺

*एक कुम्हार को मिट्टी खोदते हुए अचानक एक हीरा मिल गया, उसने उसे अपने गधे के गले में बांध दिया* *एक दिन एक बनिए की नजर गधे के गले में बंधे उस हीरे पर पड़ गई, उसने कुम्हार से उसका मूल्य पूछा* *कुम्हार ने कहा- सवा सेर गुड़*   *बनिए ने कुम्हार को सवा सेर गुड़ देकर वह हीरा खरीद लिया* *बनिए ने भी उस हीरे को एक चमकीला पत्थर समझा था, लेकिन अपनी तराजू की शोभा बढ़ाने के लिए उसकी डंडी से बांध दिया* *एक दिन एक जौहरी की नजर बनिए के उस तराजू पर पड़ गई, उसने बनिए से उसका दाम पूछा* *बनिए ने कहा- पांच रुपए* *जौहरी कंजूस व लालची था, हीरे का मूल्य केवल पांच रुपए सुन कर समझ गया कि बनिया इस कीमती हीरे को एक साधारण पत्थर का टुकड़ा समझ रहा है* *वह उससे भाव-ताव करने लगा-पांच नहीं,चार रुपए ले लो* *बनिये ने मना कर दिया क्योंकि उसने चार रुपए का सवा सेर गुड़ देकर खरीदा था* *जौहरी ने सोचा कि इतनी जल्दी भी क्या है ? कल आकर फिर कहूंगा, यदि नहीं मानेगा तो पांच रुपए देकर खरीद लूंगा* *संयोग से दो घंटे बाद एक दूसरा जौहरी कुछ जरूरी सामान खरीदने उसी बनिए की दुकान पर आया* *तराजू पर बंधे हीरे को देखकर वह चौंक गया, उसने सामान

।।097।। बोधकथा। 🌺💐 क्या थे हम!क्या हो गए हैं!और क्या होंगे अभी? 💐🌺

चश्मा साफ़ करते हुए उस बुज़ुर्ग ने अपनी पत्नी से कहा : हमारे ज़माने में_मोबाइल नहीं थे... पत्नी: पर ठीक 5 बजकर 55 मिनट पर_मैं पानी का ग्लास लेकर_ दरवाज़े पे आती और_आप आ पहुँचते..._ पति : मैंने तीस साल नौकरी की_पर आज तक मैं ये नहीं समझ पाया कि_मैं आता इसलिए तुम पानी लाती थी_या तुम पानी लेकर आती थी_ इसलिये मैं आता था... पत्नी: हाँ...और याद है...तुम्हारे रिटायर होने से पहले_जब तुम्हें डायबीटीज़ नहीं थी_और मैं तुम्हारी मनपसन्द खीर बनाती_ तब तुम कहते कि_आज दोपहर में ही ख़्याल आया_कि खीर खाने को मिल जाए तो मज़ा आ जाए... पति: हाँ... सच में...ऑफ़िस से निकलते वक़्त जो भी सोचता,घर पर आकर देखता_कि तुमने वही बनाया है..._ पत्नी : और तुम्हें याद है__जब पहली डिलीवरी के वक़्त_मैं मैके गई थी और_जब दर्द शुरु हुआ_मुझे लगा काश...तुम मेरे पास होते...और घंटे भर में तो...जैसे कोई ख़्वाब हो...तुम मेरे पास थे... पति : हाँ... उस दिन यूँ ही ख़्याल आया_कि ज़रा देख लूँ तुम्हें... पत्नी : और जब तुम_मेरी आँखों में आँखें डाल कर_कविता की दो लाइनें बोलते..._ पति*_ : हाँ और तुम_शरमा के पलकें झुका देती_और मैं उसे_कविता की

।।096।। बोधकथा। 🌺💐 भक्त के बस में है भगवान 💐🌺

एक नगर में दो वृद्ध स्त्रियाँ बिल्कुल पास-पास रहा करती थीं। उन दोनों में बहुत ज़्यादा घनिष्ठता थी।  उन दोनो का ही संसार में कोई नहीं था इसलिए एक दूसरे का सदा साथ देतीं और अपने सुख-दुःख आपस में बाँट लेती थीं।  एक स्त्री हिन्दू थी तथा दूसरी जैन धर्म को मानने वाली थी।  हिन्दू वृद्धा ने अपने घर में लड्डू गोपाल को विराजमान किया हुआ था।  वह प्रतिदिन बड़े प्रेम से लड्डू गोपाल की सेवा करा करती थी। प्रतिदिन उनको स्नान कराना, धुले वस्त्र पहनाना, दूध व फल आदि भोग अर्पित करना उसका नियम था।  वह स्त्री लड्डू गोपाल के भोजन का भी विशेष ध्यान रखती थी। सर्दी, गर्मी, बरसात हर मौसम का ध्यान उसको रहता था।  वह जब भी कभी बाहर जाती लड्डू गोपाल के लिए कोई ना कोई खाने की वस्तु, नए वस्त्र खिलोने आदि अवश्य लाती थी।  लड्डू गोपाल के प्रति उसके मन में आपार प्रेम और श्रद्धा का भाव था।  उधर जैन वृद्धा भी अपनी जैन परम्परा के अनुसार भगवान् के प्रति सेवा भाव में लगी रहती थी।  उन दोनो स्त्रियों के मध्य परस्पर बहुत प्रेम भाव था। दोनो ही एक दूसरे के भक्ति भाव और धर्म की प्रति पूर्ण सम्मान की भावना रखती थी।  जब किसी को कोई स

।।095।। बोधकथा। *!! स्वर्ग का मार्ग !!*

लक्ष्मी नारायण बहुत भोला लड़का था।वह प्रतिदिन रात में सोने से पहले अपनी दादी से कहानी सुनाने को कहता था। दादी उसे नागलोक,पाताल,गन्धर्व लोक,चन्द्रलोक,सूर्यलोक आदि की कहानियाँ सुनाया करती थी। एक दिन दादी ने उसे स्वर्ग का वर्णन सुनाया।स्वर्ग का वर्णन इतना सुन्दर था कि उसे सुनकर लक्ष्मी नारायण स्वर्ग देखने के लिये हठ करने लगा।दादी ने उसे बहुत समझाया कि मनुष्य स्वर्ग नहीं देख सकता,किन्तु लक्ष्मीनारायण रोने लगा। रोते-रोते ही वह सो गया। उसे स्वप्न में दिखायी पड़ा कि एक चम-चम चमकते देवता उसके पास खड़े होकर कह रहे हैं-‘‘बच्चे !स्वर्ग देखने के लिये मूल्य देना पड़ता है।तुम सरकस देखने जाते हो तो टिकट देते हो न ?स्वर्ग देखने के लिये भी तुम्हें उसी प्रकार रुपये देने पड़ेंगे।’’ स्वप्न में लक्ष्मीनारायण सोचने लगा कि मैं दादी से रुपये माँगूँगा।लेकिन देवता ने कहा-स्वर्ग में तुम्हारे रुपये नहीं चलते।यहाँ तो भलाई और पुण्यकर्मों का रुपया चलता है। देवता ने उसे एक डिबिया देते हुऐ कहां..! अच्छा काम करोगे तो एक रुपया इसमें आ जायगा और जब कोई बुरा काम करोगे तो एक रुपया इसमें से उड़ जायगा।जब यह डिबिया भर जायगी,तब तुम स