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फ़रवरी, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

।।110।। बोधकथा। 💐भगवान को खोजने से पहले स्वयं को जान लो !💐

​खुद को जानने में ही वह जान लिया जाता है, जो परमात्मा है। एक संन्यासी सारी दुनिया की यात्रा करके भारत वापस लौटा था | एक छोटी सी रियासत में मेहमान हुआ |  उस रियासत के राजा ने जाकर संन्यासी को कहा :  स्वामी , एक प्रश्न बीस वर्षो से निरंतर पूछ रहा हूं | कोई उत्तर नहीं मिलता |  क्या आप मुझे उत्तर देंगे ?  स्वामी ने कहा : निश्चित दूंगा |  उस संन्यासी ने उस राजा से कहा : नहीं , आज तुम खाली नहीं लौटोगे | पूछो ! उस राजा ने कहा : मैं ईश्वर से मिलना चाहता हूं | ईश्वर को समझाने की कोशिश मत करना | मैं सीधा मिलना चाहता हूं | उस संन्यासी ने कहा : अभी मिलना चाहते हैं कि थोड़ी देर ठहर कर ? राजा ने कहा : माफ़ करिए , शायद आप समझे नहीं | मैं परम पिता परमात्मा की बात कर रहा हूं , आप यह तो नहीं समझे कि किसी ईश्वर नाम वाले आदमी की बात कर रहा हूं ; जो आप कहते हैं कि अभी मिलना है कि, थोड़ी देर रुक सकते हो ? उस संन्यासी ने कहा : महानुभाव , भूलने की कोई गुंजाइश नहीं है | मैं तो चौबीस घंटे परमात्मा से मिलाने का धंधा ही करता हूं | अभी मिलना है कि थोड़ी देर रुक सकते हैं , सीधा जवाब दें |  बीस साल से मिलने को उत्सुक हो

।।109।। बोध कथा।। 💐🏵भोगे बिना छुटकारा नहीं 🏵💐

दोनों सगे भाई थे। गुरु और माता-पिता के द्वारा शिक्षा पाई थी, पूजनीय आचार्यों से प्रोत्साहन पाया था, मित्रों द्वारा सलाह पाई थी।  उन्होंने वर्षों के अध्ययन, चिंतन, अन्वेषण, मनन, के पश्चात जाना था कि दुनिया में सबसे बड़ा काम जो मनुष्य के करने का है वह यह है कि, अपनी आत्मा का उद्धार करें।  मूर्ख ये नहीं जानते। के पत्तों को सींचते हैं तो पेड़ मुरझा जाता है।  वे दोनों भाई शंख और लिखित इस तत्व को भली प्रकार जान लेने के बाद, तपस्या करने लगे। पास पास ही दोनों के कुटीर थे। मधुर फलों के वृक्षों से वह स्थान और भी सुंदर और सुविधाजनक बन गया था। दोनों भाई अपनी-अपनी तपोभूमि में तप करते और यथा अवसर आपस में मिलते जुलते।  एक दिन लिखित भूखे थे। भाई के आश्रम में गए और वहां से कुछ फल तोड़ लाए। उन्हें खा ही रहे थे कि शंख वहां आ पहुंचे। उन्होंने पूछा- यह फल तुम कहां से लाए? लिखित ने उन्हें हंसकर उत्तर दिया- तुम्हारे आश्रम से।  शंख यह सुनकर बड़े दुखी हुए। फल  कोई बहुत मूल्यवान वस्तु ना थी। दोनों भाई आपस में फल लेते देते भी रहते थे, किंतु चोरी से बिना पूछे नहीं।  उन्होंने कहा भाई यह तुमने बुरा किया। किसी की वस