।।072।। बोधकथा। 🏵🌺💐 छोटी दीवाली 💐🌺🏵


हमारा देश पुरातन काल से ही उत्सव प्रधान रहा है। प्रत्येक दिन कोई न कोई उत्सव होता है । आज के इस दिन को 'नरक चौदस', 'रूप चौदस', 'काली चौदस', आदि नामों से जाना जाता है। इस संबंध में विभिन्न कथाएं प्रचलित है।


 इसी दिन शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है। यह पांच पर्वों की श्रृंखला के मध्य में रहने वाला त्योहार है। दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस, फिर नरक चतुर्दशी, या छोटी दीपावली। इसे छोटी दीपावली इसलिए कहा जाता है क्योंकि दीपावली से एक दिन पहले रात के वक्त उसी प्रकार दीए की रोशनी से रात के तिमिर को प्रकाश पुंज से दूर भगा दिया जाता है जैसे दीपावली की रात को।  

 

क्या है इसकी कथा- 


  आज के दिन ही भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी और दुराचारी, दुर्दांत असुर, नरकासुर का वध किया था और सोलह हजार एक सौ कन्याओं को नरकासुर के बंदी गृह से मुक्त कर उन्हें सम्मान प्रदान किया था। इस उपलक्ष्य में दीयों की बारात सजाई जाती है। 


 इस दिन के व्रत और पूजा के संदर्भ में एक दूसरी कथा यह है कि रंति देव नामक एक पुण्यात्मा और धर्मात्मा राजा थे। उन्होंने अनजाने में भी कोई पाप नहीं किया था, लेकिन जब मृत्यु का समय आया तो उनके समक्ष यमदूत आ खड़े हुए।   


यमदूत को सामने देख राजा अचंभित हुए और बोले मैंने तो कभी कोई पाप कर्म नहीं किया फिर आप लोग मुझे लेने क्यों आए हो क्योंकि आपके यहां आने का मतलब है कि मुझे नर्क जाना होगा। आप मुझ पर कृपा करें और बताएं कि मेरे किस अपराध के कारण मुझे नरक जाना पड़ रहा है।


 यह सुनकर यमदूत ने कहा कि हे राजन् एक बार आपके द्वार से एक बार एक भूखा लौट गया था, यह उसी पापकर्म का फल है। इसके बाद राजा ने यमदूत से एक वर्ष समय मांगा। तब यमदूतों ने राजा को एक वर्ष की मोहलत दे दी। राजा अपनी परेशानी लेकर ऋषियों के पास पहुंचे और उन्हें अपनी सारी कहानी सुनाकर उनसे इस पाप से मुक्ति का क्या उपाय पूछा। 

 

तब ऋषि ने उन्हें बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत करें और ब्राह्मणों को भोजन करवा कर उनके प्रति हुए अपने अपराधों के लिए क्षमा याचना करें। राजा ने वैसा ही किया जैसा ऋषियों ने उन्हें बताया। इस प्रकार राजा पाप मुक्त हुए और उन्हें विष्णु लोक में स्थान प्राप्त हुआ। उस दिन से पाप और नर्क से मुक्ति हेतु भूलोक में कार्तिक चतुर्दशी के दिन का व्रत प्रचलित है। 


घर परिवार में किसी की अकाल मृत्यु ना हो, इसलिए यमराज को प्रसन्न करने के लिए आज दिन की पूजा का विधान है। विशेष तौर से आज यम के नाम का चौमुखा दीपक रखा जाता है। देश के किसी किसी भाग में, घर का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति एक दीपक जला कर, पूरे घर में घुमा कर, उसे घर से दूर स्थान पर रखकर आता है, और उस दीपक को घर के अन्य लोग नहीं देखते। मान्यता है कि इससे परिवार में अकाल मृत्यु नहीं होती


बंगाल में आज के दिन को काली चौदस के रूप में मनाया जाता है। ऐसी लोक मान्यता है कि, आज ही मां काली का प्राकट्य हुआ था। 

जिन लोगों को तंत्र मार्ग में विश्वास है, वे आज मंत्र सिद्धि के लिए साधना प्रारंभ कर,दीपावली की रात्रि तक उसे पूर्ण करते हैं।


संपूर्ण वर्ष में जितनी भी तिथियां होती हैं, कहा जाता है आज का दिन, हनुमान साधना के लिए सबसे उपयुक्त होता है।

 

इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर, तेल लगाकर,और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर, उससे स्नान करने करके, विष्णु मंदिर और कृष्ण मंदिर में भगवान का दर्शन करना करना चाहिए। इससे पाप कटता है और रूप सौन्दर्य की प्राप्ति होती है।


पूर्व समय में,और कहीं-कहीं आज भी, ग्रामीण क्षेत्रों में दीपावली से लगभग 1 माह पूर्व ही, घर की सभी महिलाएं घरों को लीपना,पोतना,और जिनके घर मिट्टी के होते हैं वे उनका पुनर्निर्माण करती हैं,फलतः वे अपने ऊपर कम ध्यान दे पाती हैं। 

 मान्यता है कि इससे उनके स्वास्थ्य पर कुछ विपरीत असर होता है,अतः आज का दिन महिलाएं स्वतः अपने ऊपर ध्यान देकर, अपने को श्रंगारित करें। तेल,उबटन,अभ्यंग लगाकर स्नान करें, क्योंकि वे घर की लक्ष्मी रूप होती हैं, जिसकी पूजा दीपावली में हम करते हैं। अतः वे स्वस्थ और सुंदर रहे, इसलिए आज का दिन रूप चौदस भी कहा जाता है।


।। मनेन्दु पहारिया।।

  23/10/2022

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