एक जंगल में शेर शेरनी शिकार के लिये दूर तक गये हुए थे, अपने बच्चों को अकेला छोडकर। वे जब बहुत देर तक नही लौटे तो बच्चे भूख से छटपटाने लगे।
उसी समय एक बकरी घास चरते हुए वहां आई, शेर के बच्चों को भूख से तड़पते देखकर उसे दया आ गई और उसने उन बच्चों को अपना दूध पिलाया और इसके बाद बच्चे पुनः मस्ती करने लगे।
तभी शेर शेरनी आये, बकरी को देख लाल पीले हो गये, शेर बकरी पर हमला करने ही जा रहा था कि...
उससे पहले ही बच्चों ने कहा, इसने हमें दूध पिलाकर बड़ा उपकार किया है, नही तो हम मर ही जाते।
अब शेर बहुत खुश हुआ और कृतज्ञता के भाव से बोला, हम तुम्हारा उपकार कभी नही भूलेंगे। जाओ अब आजादी के साथ जंगल मे घूमो फिरो और मौज करो।
अब बकरी जंगल में निर्भयता के साथ रहने लगी। यहाँ तक कि शेर के पीठ पर बैठकर भी कभी कभी पेड़ों के पत्ते खाती थी।
यह दृश्य एक चील ने देखा तो हैरान होकर बकरी से पूछा, तब उसे पता चला कि उपकार का कितना महत्व है।
चील ने यह सोचकर कि एक प्रयोग मैं भी करता हूँ। थोड़ी ही दूर पर चूहों के छोटे छोटे बच्चे दलदल मे फंसे थे। वे निकलने का प्रयास तो बहुत करते पर सारे प्रयास व्यर्थ हो जा रहे थे।
चील ने उनको पकड पकड कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया, बच्चे भीगे थे सर्दी से कांप रहे थे। तब चील ने उन्हें अपने पंखों में उन्हें छुपाया, इससे बच्चों को बहुत राहत मिली।
कुछ समय बाद जब चील उड़कर जाने लगी तो हैरान हो उठी क्योंकि चूहों के बच्चों ने तो उसके पंख ही कुतर डाले थे।
चील ने यह घटना जब बकरी को सुनाई कि तुमने भी उपकार किया और मैंने भी, फिर हमें उसका फल अलग अलग क्यों मिला?
बकरी हंसी फिर गंभीरता से कहा.... उपकार करो तो शेरों पर करो चूहों पर नही, क्योंकि कायर कभी उपकार को याद नही रखते और बहादुर कभी उपकार भूलते नहीं।
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि....
"सबका साथ तो करो पर सबका विश्वास तो भूलकर भी मत करना".....
।। मनेन्दु पहारिया।।
18/10/ 2022