कुबेर व रावण दोनों ऋषि विश्रवा की संतान थे और दोनों सौतेले भाई थे.
ऋषि विश्रवा ने सोने की लंका का राज्य कुबेर को दिया था लेकिन किसी कारणवश अपने पिता के कहने पर वे लंका का त्याग कर हिमाचल चले गए.
कुबेर के चले जाने से दशानन बहुत प्रसन्न हुआ। दशानन लंका का राजा बन गया। लंका का राज्य प्राप्त करते ही धीरे-धीरे वह इतना अहंकारी हो गया कि उसने साधुजनों पर अनेक प्रकार के अत्याचार करने शुरू कर दिए.
जब दशानन के इन अत्याचारों की ख़बर कुबेर को लगी तो उन्होंने अपने भाई को समझाने के लिए एक दूत भेजा... जिसने, कुबेर के कहे अनुसार दशानन को सत्य पथ पर चलने की सलाह दी.
कुबेर की सलाह सुनकर दशानन को इतना क्रोध आया कि उसने दूत को बंदी बना लिया और क्रोध में तुरन्त तलवार से उसकी हत्या कर दी.
कुबेर की सलाह से दशानन इतना क्रोधित हुआ कि दूत की हत्या के साथ ही अपनी सेना लेकर कुबेर की नगरी अलकापुरी को जीतने निकल पड़ा। कुबेर की नगरी को तहस-नहस करने के बाद अपने भाई कुबेर पर गदा का प्रहार कर उसे भी घायल कर दिया.... लेकिन, कुबेर के सेनापतियों ने किसी तरह से कुबेर को नंदन वन पहुँचा दिया, जहाँ वैद्यों ने उसका इलाज कर उसे ठीक किया.
दशानन ने कुबेर की नगरी व उसके पुष्पक विमान पर भी अपना अधिकार कर लिया...
एक दिन पुष्पक विमान में सवार होकर वह शारवन की तरफ चल पड़ा.
एक पर्वत के पास से गुजरते हुए उसके पुष्पक विमान की गति स्वयं ही धीमी हो गई.
चूंकि पुष्पक विमान की ये विशेषता थी कि वह चालक की इच्छानुसार चलता था, उसकी गति मन की गति से भी तेज थी...
इसलिए, जब पुष्पक विमान की गति मंद हो गई तो दशानन को बड़ा आश्चर्य हुआ.
तभी उसकी दृष्टि सामने खड़े विशाल
और काले शरीर वाले नंदीश्वर पर पड़ी.
नंदीश्वर ने दशानन को चेतावनी देते हुए कहा-
यहाँ भगवान शंकर ध्यान मग्न हैं...
इसलिए, तुम लौट जाओ.
लेकिन दशानन कुबेर पर विजय पाकर इतना दंभी हो गया था कि वह किसी की कुछ सुनने तक को तैयार नहीं था.
उसी अभिमान में दशानन ने कहा कि-
कौन है... ये शंकर ??
और, किस अधिकार से वह यहाँ क्रीड़ा करता है ?
मैं उस पर्वत का नामो-निशान ही मिटा दूँगा.. जिसने, मेरे विमान की गति अवरुद्ध की है.
इतना कहते हुए उसने पर्वत की नींव में
हाथ लगाकर उसे उठाना चाहा.
अचानक इस विघ्न से शंकर भगवान विचलित हुए और वहीं बैठे-बैठे अपने पाँव के अंगूठे से उस पर्वत को दबा दिया, ताकि वह स्थिर हो जाए.
लेकिन, भगवान शंकर के ऐसा करने से दशानन की बाँहें उस पर्वत के नीचे दब गईं.
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फलस्वरूप क्रोध और जबरदस्त पीड़ा के कारण दशानन भीषण चीत्कार कर उठा... जिससे ऐसा लगने लगा कि मानो प्रलय हो जाएगा.
तब दशानन के मंत्रियों ने उसे शिव स्तुति करने की सलाह दी, ताकि उसका हाथ उस पर्वत से मुक्त हो सके.
दशानन ने बिना देरी किए शिव के सभी स्तोत्रों का गान करना शुरू कर दिया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने दशानन को क्षमा करते हुए उसकी बाँहों को मुक्त किया.
दशानन द्वारा भगवान शिव की स्तुति के लिए जो स्त्रोत गाया गया था... वह दशानन ने भयंकर दर्द व क्रोध के कारण भीषण चीत्कार से गाया था। इसी भीषण चीत्कार को संस्कृत भाषा में "राव: सुशरूण:" कहा जाता है.
जब भगवान शिव... दशानन की स्तुति से प्रसन्न हुए और उसके हाथों को पर्वत के नीचे से मुक्त किया....
तो, उसी प्रसन्नता में उन्होंने दशानन का नाम "रावण" यानि ‘भीषण चीत्कार करने पर विवश शत्रु’ रखा... क्योंकि, भगवान शिव ने रावण को भीषण चीत्कार करने पर विवश कर दिया था और तभी से दशानन काे "रावण" कहा जाने लगा.
शिव की स्तुति के लिए रचा गया वह स्त्रोत... जिसे रावण ने गाया था... को आज भी रावण-स्त्रोत व शिव तांडव स्त्रोत के नाम से जाना जाता है...
।। मनेन्दु पहारिया।।
21💐 10💐 2022