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।।113।।बोधकथा। (श्रीराम नवमी पर) ...........!! *श्रीराम: शरण मम*।। ........... ।।श्रीरामकिंकर वचनामृत।।

 °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°     *देहाभिमान रूपी शरीर ही समुद्र है।*      *जब शरीर का समुद्र पार करें, तब*          *तो भगवान्‌ की शरण में जायँँ,*       *नहीं तो यह शरीर ही ऐसा केन्द्र है,*    *जो भगवान्‌ के पास जाने से रोकता है।*    °" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "° कृपया मेरे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब अवश्य करें। https://youtube.com/@janpathdarshannews      अपने आपको केवल शरीर मान करके शरीर के धर्म का ही पालन करना, यह तो अपूर्णता है। विभीषणजी के सामने यह समस्या है । इसका बड़ा व्यंग्यात्मक संकेत उस समय आता है, जब भगवान्‌ समुद्र के इस पार अपनी बानर सेना के साथ विराजमान हैं, रावण के द्वारा चरण प्रहार से अपमानित होकर वे भगवान्‌ की शरण में तो आ गये, पर अभी भी पूर्व संस्कारों से मुक्त न हो पाने के कारण उन्होंने संयोगवश अपना परिचय दशानन के भाई के रुप में दिया , विभीषण जी के इसी भूल को यदि सुग्रीव चाहते

।।112।। बोध कथा। 🌺💐 क्रोध पर करुणा की विजय 💐🌺

जुए में हारने पर शर्त के अनुसार पांडवों ने  12 वर्ष का वनवास तथा 1 वर्ष का अज्ञातवास पूरा किया। किंतु कौरवों ने उनका राज वापस करना तो दूर 5 गांव देना भी स्वीकार नहीं किया।  कृपया मेरे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब अवश्य करें। https://youtube.com/@janpathdarshannews युद्ध ना हो इसलिए भगवान श्री कृष्ण शांति हेतु संधि प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर जाना चाहते थे, पर द्रोपदी ने विरोध किया -'केशव!मेरे यह केस दु:शासन के रक्त से सिंचित होने पर ही बधेंगे। यदि मेरे पति सक्षम नहीं है, तो मेरे अपमान का प्रतिशोध अभिमन्यु सहित मेरे 5 महाबली पुत्र लेंगे। संधि तथा धर्म की बातें अब सहन नहीं होती कहते-कहते द्रोपदी फूट-फूट कर रोने लगी।"  श्री कृष्ण ने गंभीर स्वर में कहा- कृष्णे वही होगा जो तुम चाहती हो, मेरी बात मिथ्या नहीं होगी।  कृष्ण शांति दूत बनकर हस्तिनापुर पहुंचे परंतु संधि वार्ता निष्फल रही। युद्ध अनिवार्य हो गया। और महाभारत युद्ध हुआ।  युद्ध के अंतिम 18 वे दिन, भीमसेन ने गदा प्रहार से दुर्योधन की जंघा तोड़ दी। इस पर भी भीमसेन का क्रोध शांत नहीं हुआ और वे उसे कपटी कहकर बार-बार उसका सिर अपने पैर स

।।111।। बोधकथा। 🌺💐🏵 *खाली पीपे* 🏵💐🌺

एक बहुत बड़ा सौदागर नौका लेकर दूर-दूर के देशों में लाखों-करोड़ों रुपए कमाने के लिए जाता रहता था।               एक दिन उसके मित्रों ने उससे कहा- तुम नौका में घूमते रहते हो। तुम्हारी नौका पुराने ज़माने की है, तूफान आते हैं, खतरे होते हैं और नौकाएँ डूब जाती हैं, तुम तैरना तो सीख लो।                सौदागर ने कहा- तैरना सीखने के लिए मेरे पास समय कहाँ है?          मित्रों ने कहा- ज्यादा समय की जरूरत नहीं है। गाँव में एक कुशल तैराक है, जो कहता है कि तीन दिनों में ही वो तैरना सिखा देगा।              सौदागर ने कहा- वो जो कहता है ठीक ही कहता होगा, लेकिन मेरे पास तीन दिन कहां हैं? तीन दिनों में तो मैं लाखों का कारोबार कर लेता हूँ। तीन दिनों में तो लाखों रूपए यहाँ से वहाँ हो जाते हैं। कभी फुर्सत मिलेगी, तो जरूर सीख लूंगा।                फिर भी उसके मित्रों ने कहा- खतरा बहुत बड़ा है। तुम्हारा जीवन निरंतर नौका पर है, किसी भी दिन खतरा हो सकता है और तुम तो तैरना भी नहीं जानते हो।          सौदागर ने कहा- कोई और सस्ती तरकीब हो तो बताओ, इतना समय तो मेरे पास नहीं है।               तो उसके मित्रों ने कहा- क

*जनपथ दर्शन : बागेश्वर बाबा फिर आए चर्चाओं में, जाने वजह?*

 *जनपथ दर्शन : बागेश्वर बाबा फिर आए चर्चाओं में, जाने वजह?* *https://youtu.be/1T-KoOtiG9k* *वीडियो हुआ वायरल* *मनेन्दु पहारिया चैनल हेड की रिपोर्ट* *चैनल को लाइक, सब्सक्राइब कर न्यूज पर कमेंट्स अवश्य करें*
 *जनपथ दर्शन : Live: A to Z किशोर सागर में टूटती दुकानें* *ग्राउंड जीरो से रिपोर्ट* * https://youtube.com/live/lR_cFTmIBcc?feature=share * *मनेन्दु पहारिया चैनल हेड, अनूप तिवारी, हरिओम अग्रवाल, विनोद यादव, केशव शर्मा की ग्राउंड रिपोर्ट* *चैनल को लाइक, सब्सक्राइब कर न्यूज पर कमेंट्स अवश्य करें*

।।110।। बोधकथा। 💐भगवान को खोजने से पहले स्वयं को जान लो !💐

​खुद को जानने में ही वह जान लिया जाता है, जो परमात्मा है। एक संन्यासी सारी दुनिया की यात्रा करके भारत वापस लौटा था | एक छोटी सी रियासत में मेहमान हुआ |  उस रियासत के राजा ने जाकर संन्यासी को कहा :  स्वामी , एक प्रश्न बीस वर्षो से निरंतर पूछ रहा हूं | कोई उत्तर नहीं मिलता |  क्या आप मुझे उत्तर देंगे ?  स्वामी ने कहा : निश्चित दूंगा |  उस संन्यासी ने उस राजा से कहा : नहीं , आज तुम खाली नहीं लौटोगे | पूछो ! उस राजा ने कहा : मैं ईश्वर से मिलना चाहता हूं | ईश्वर को समझाने की कोशिश मत करना | मैं सीधा मिलना चाहता हूं | उस संन्यासी ने कहा : अभी मिलना चाहते हैं कि थोड़ी देर ठहर कर ? राजा ने कहा : माफ़ करिए , शायद आप समझे नहीं | मैं परम पिता परमात्मा की बात कर रहा हूं , आप यह तो नहीं समझे कि किसी ईश्वर नाम वाले आदमी की बात कर रहा हूं ; जो आप कहते हैं कि अभी मिलना है कि, थोड़ी देर रुक सकते हो ? उस संन्यासी ने कहा : महानुभाव , भूलने की कोई गुंजाइश नहीं है | मैं तो चौबीस घंटे परमात्मा से मिलाने का धंधा ही करता हूं | अभी मिलना है कि थोड़ी देर रुक सकते हैं , सीधा जवाब दें |  बीस साल से मिलने को उत्सुक हो

।।109।। बोध कथा।। 💐🏵भोगे बिना छुटकारा नहीं 🏵💐

दोनों सगे भाई थे। गुरु और माता-पिता के द्वारा शिक्षा पाई थी, पूजनीय आचार्यों से प्रोत्साहन पाया था, मित्रों द्वारा सलाह पाई थी।  उन्होंने वर्षों के अध्ययन, चिंतन, अन्वेषण, मनन, के पश्चात जाना था कि दुनिया में सबसे बड़ा काम जो मनुष्य के करने का है वह यह है कि, अपनी आत्मा का उद्धार करें।  मूर्ख ये नहीं जानते। के पत्तों को सींचते हैं तो पेड़ मुरझा जाता है।  वे दोनों भाई शंख और लिखित इस तत्व को भली प्रकार जान लेने के बाद, तपस्या करने लगे। पास पास ही दोनों के कुटीर थे। मधुर फलों के वृक्षों से वह स्थान और भी सुंदर और सुविधाजनक बन गया था। दोनों भाई अपनी-अपनी तपोभूमि में तप करते और यथा अवसर आपस में मिलते जुलते।  एक दिन लिखित भूखे थे। भाई के आश्रम में गए और वहां से कुछ फल तोड़ लाए। उन्हें खा ही रहे थे कि शंख वहां आ पहुंचे। उन्होंने पूछा- यह फल तुम कहां से लाए? लिखित ने उन्हें हंसकर उत्तर दिया- तुम्हारे आश्रम से।  शंख यह सुनकर बड़े दुखी हुए। फल  कोई बहुत मूल्यवान वस्तु ना थी। दोनों भाई आपस में फल लेते देते भी रहते थे, किंतु चोरी से बिना पूछे नहीं।  उन्होंने कहा भाई यह तुमने बुरा किया। किसी की वस

।।1017।। बोध कथा। 🌺🏵 अथातो ब्रह्म जिज्ञासा 🏵🌺

"अथातो ब्रह्म जिज्ञासा" तात! जिसकी ब्रह्म दर्शन की जिज्ञासा जितनी प्रबल होती है वह उतनी ही शीघ्रता से नारायण का दर्शन करता है। ब्रह्म ही क्यों, वत्स! जिज्ञासा तो मनुष्य को किसी भी कला, किसी भी विद्या, में पारंगत बना देती है।  हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है, तुम आश्रम में रहो और तप करो, एक दिन तुम्हें निश्चित ही भगवान का साक्षात्कार होगा।  यह कहकर महर्षि ऐलूष ने राजकुमार नीरव्रत की पीठ पर हाथ फेरा और उन्हें सामान्य शिक्षार्थियों की तरह, छात्रावास के एक सामान्य कक्ष में रहने का प्रबंध कर दिया। नीरव्रत ने पहली बार अपना सामान अपने हाथों से उठाया।  प्रथम बार एक ऐसे निवास में ठहरे जिस निवास में दास दासी  नही थे। नीरव्रत ने उस दिन सादा भोजन लिया।   सायंकाल होने में विलंब लगा होगा, पर जीवन की इन प्रारंभिक विपरीत दिशाओं ने मस्तिष्क में क्रांति, विचार मंथन, प्रारंभ कर दिया। इतना शुष्क जीवन नीरव्रत ने पहले कभी नहीं देखा था, इसलिए उससे अरुचि होना स्वाभाविक ही था।  शयन में जाने से पूर्व उन्होंने एक अन्य स्नातक को बुलाकर पूछा -तात आप कहां से आए हैं ?आपके पिता क्या करते हैं? आश्रम में निवास