समुद्र मंथन हुआ तो उसमें से कालकूट विष भी निकला और रत्न भी निकले। रत्न तो अन्य देवताओं ने ले लिए, पर कालकूट जहर लेने को कोई तैयार ना हुआ।
अंत में विश्व कल्याण के लिए शिवजी को विष पान करना पड़ा।
कालकूट जहर पीते समय कुछ बूंदें मिट्टी पर गिर गईं। संयोगवश वह मिट्टी वहीं थी, जिसे लेकर ब्रह्माजी, मनुष्यों की देह बनाया करते थे।
ब्रह्मा भूल में पड़े रहे। उन्होंने उस विष की बूंदों को हटाया नहीं और उस विषैली मिट्टी से ही मनुष्यों की देहें बनाते रहे।
विष की बूंदें ईर्ष्या की अग्नि बनकर मनुष्यों को जलाने लगी। दूसरों को बढ़ता देखकर प्रसन्न होने के स्थान पर अकारण जलने और अपनी विषपान जैसी हानि करते, मनुष्य तभी से चले आ रहे हैं।
।। मनेन्दु पहारिया।।
14/10/2022