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हनुमान चालीसा में छिपे मैनेजमेंट के सूत्र...

कई लोगों की दिनचर्या हनुमान चालीसा पढ़ने से शुरू होती है। पर क्या आप जानते हैं कि श्री *हनुमान चालीसा* में 40 चौपाइयां हैं, ये उस क्रम में लिखी गई हैं जो एक आम आदमी की जिंदगी का क्रम होता है। माना जाता है तुलसीदास ने चालीसा की रचना मानस से पूर्व किया था। हनुमान को गुरु बनाकर उन्होंने राम को पाने की शुरुआत की। अगर आप सिर्फ हनुमान चालीसा पढ़ रहे हैं तो यह आपको भीतरी शक्ति तो दे रही है लेकिन अगर आप इसके अर्थ में छिपे जिंदगी के सूत्र समझ लें तो आपको जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिला सकते हैं। हनुमान चालीसा सनातन परंपरा में लिखी गई पहली चालीसा है शेष सभी चालीसाएं इसके बाद ही लिखी गई। हनुमान चालीसा की शुरुआत से अंत तक सफलता के कई सूत्र हैं। आइए जानते हैं हनुमान चालीसा से आप अपने जीवन में क्या-क्या बदलाव ला सकते हैं…. *शुरुआत गुरु से…* हनुमान चालीसा की शुरुआत *गुरु* से हुई है… श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि। *अर्थ* - अपने गुरु के चरणों की धूल से अपने मन के दर्पण को साफ करता हूं। गुरु का महत्व चालीसा की पहले दोहे की पहली लाइन में लिखा गया है। जीवन में गुरु नहीं है तो आपको कोई आगे

।।094।। बोधकथा।। 🌺💐🏵 प्रायश्चित 🏵💐🌺

एक प्राथमिक स्कूल मे अंजलि नाम की एक शिक्षिका थीं वह कक्षा 5 की क्लास टीचर थी, उसकी एक आदत थी कि वह कक्षा मे आते ही हमेशा "LOVE YOU ALL" बोला करतीं थी। मगर वह जानती थीं कि वह सच नहीं बोल रही ।  वह कक्षा के सभी बच्चों से एक जैसा प्यार नहीं करती थीं। कक्षा में एक ऐसा बच्चा था जो उनको फटी आंख भी नहीं भाता था। उसका नाम राजू था। राजू मैली कुचेली स्थिति में स्कूल आ जाया करता है। उसके बाल खराब होते, जूतों के बन्ध खुले, शर्ट के कॉलर पर मेल के निशान । पढ़ाई के दौरान भी उसका ध्यान कहीं और होता था। मेडम के डाँटने पर वह चौंक कर उन्हें देखता, मगर उसकी खाली खाली नज़रों से साफ पता लगता रहता.कि राजू शारीरिक रूप से कक्षा में उपस्थित होने के बावजूद भी मानसिक रूप से गायब है  (यानी प्रजेंट बाडी अफसेटं माइड) .धीरे धीरे मेडम को राजू से नफरत सी होने लगी। क्लास में घुसते ही राजू मेडम की आलोचना का निशाना बनने लगता। सब बुराई उदाहरण राजू के नाम पर किये जाते. बच्चे उस पर खिलखिला कर हंसते.और मेडम उसको अपमानित कर के संतोष प्राप्त करती।  राजू ने हालांकि किसी बात का कभी कोई जवाब नहीं दिया था मेडम को वह एक ब

।।093।। बोधकथा। 🌺💐🏵 प्रभु पर विश्वास 🏵💐🌺

हरिराम एक मेडिकल स्टोर का मालिक था। सारी दवाइयों की उसे अच्छी जानकारी थी, दस साल का अनुभव होने के कारण उसे अच्छी तरह पता था कि कौन सी दवाई  कहाँ रखी है।  वह इस व्यवसाय को बड़ी सावधानी और बहुत ही निष्ठा से करता था।   दिन भर उसकी दुकान में  भीड़ लगी रहती थी, वह ग्राहकों को वांछित दवाइयों  को सावधानी और समझदारी से देता था।   परन्तु उसे भगवान पर कोई भरोसा नहीं था । वह एक नास्तिक था,उसका मानना था की प्राणी मात्र की सेवा करना ही सबसे बड़ी पूजा है। और वह जरूरतमंद लोगों को दवा निशुल्क भी दे दिया करता था।   और समय मिलने पर वह मनोरंजन हेतु अपने दोस्तों के संग दुकान में लूडो खेलता था।  एक दिन अचानक बारिश  होने लगी,बारिश की वजह से दुकान में भी कोई नहीं था। बस फिर क्या, दोस्तों को बुला लिया और सब दोस्त मिलकर लूडो खेलने लगे।   तभी एक छोटा लड़का उसके दूकान में दवाई लेने पर्चा लेकर आया। उसका पूरा शरीर भीगा था।   हरिराम लूडो खेलने में इतना मशगूल था कि बारिश में आए हुए उस लड़के पर उसकी नजर नहीं पड़ी।    ठंड से ठिठुरते हुए उस बच्चे ने दवाई का पर्चा बढ़ाते हुए कहा- "साहब जी मुझे ये दवाइयाँ चाहिए, मेरी माँ

।।093।। बोधकथा। 🌺💐विजय विश्वास की ही होती है💐🌺

सुन्दर स्त्री बाद में शूर्पणखा निकली। सोने का हिरन बाद में मारीच निकला। भिक्षा माँगने वाला साधू बाद में रावण निकला। लंका में तो निशाचार लगातार रूप ही बदलते दिखते थे। हर जगह भ्रम, हर जगह अविश्वास, हर जगह शंका लेकिन बावजूद इसके जब लंका में अशोक वाटिका के नीचे सीता माँ को रामनाम की मुद्रिका मिलती है तो वो उस पर 'विश्वास' कर लेती हैं। वो मानती हैं और स्वीकार करती हैं कि इसे प्रभु श्री राम ने ही भेजा है। जीवन में कई लोग आपको ठगेंगे, कई आपको निराश करेंगे, कई बार आप भी सम्पूर्ण परिस्थितियों पर संदेह करेंगे लेकिन इस पूरे माहौल में जब आप रुक कर पुनः किसी व्यक्ति, प्रकृति या अपने ऊपर 'विश्वास' करेंगे तो रामायण के पात्र बन जाएंगे। राम और माँ सीता केवल आपको 'विश्वास करना' ही तो सिखाते हैं। माँ कठोर हुईं लेकिन माँ से विश्वास नहीं छूटा, परिस्थितियाँ विषम हुई लेकिन उसके बेहतर होने का विश्वास नहीं छूटा, भाई-भाई का युद्ध देखा लेकिन अपने भाइयों से विश्वास नहीं छूटा, लक्ष्मण को मरणासन्न देखा लेकिन जीवन से विश्वास नहीं छूटा, सागर को विस्तृत देखा लेकिन अपने पुरुषार्थ से विश्वास नहीं

।।092।। बोधकथा। *जीवन की सच्चाई पिता के प्रति प्रेम*

शर्मा जी सुबह सुबह अपने कार्यालय के लिए निकलने वाले थे । तभी अचानक क्षितिज ने एक पैकेट उनके सामने कर दिया.... पापा ! वापस करना है ये जैकेट।’ ‛क्यों?’ ‛फिट नहीं हो रहा...ज़्यादा टाइट है ।’ लंच बॉक्स देते हुए मां बोली...अरे शर्मा जी ! आप भी न..! बेटा बड़ा हो गया है औऱ पहले से ज़्यादा तगड़ा भी , अब थोड़ा बड़ा साइज का जैकेट ही पहनेगा ना ....क़भी कुछ ख़याल तो रहता नहीं आपको... ! फिर से आप उसके लिए पुराना साइज ले आएं होंगे । इतना महंगा वाला जैकेट लाने से पहले एक बार उससे साइज पूछ लिया होता। लेकिन अपनी पत्नी की बातों को बेहद गौर से सुनने के बाद भी शर्मा जी की आंखों में अपने लाड़ले के लिए अविश्वास दिखा.. क्षितिज ने बात ही ऐसी की थी...क्योंकि शर्मा जी ये भली भांति जानते थे कि उनका औऱ उनके बेटे का साइज़ एक ही है । ‛बेटा ! इस बार भी इंटरव्यू में वही पुराना जैकेट... बोलते-बोलते रूक गए शर्मा जी... शायद उनका गला भर आया था । ‛छोड़िए न पापा ! इंटरव्यू ही तो देना है , कोई फ़ैशन शो में थोड़े न जाना है मुझें । आख़िर क्या फर्क पड़ता है ! जीवन की राह नई है और मंजिल नई , जैकेट पुराना ही सही।’,, दरअसल क्षितिज की नज़र अपने प

।।091।। बोधकथा। *⭕मित्रता की परिभाषा⭕*

*एक बेटे के अनेक मित्र थे जिसका उसे बहुत घमंड था। पिता का एक ही मित्र था लेकिन था सच्चा ।* *एक दिन पिता ने बेटे को बोला कि तेरे बहुत सारे दोस्त है उनमें से आज रात तेरे सबसे अच्छे दोस्त की परीक्षा लेते है।* *बेटा सहर्ष तैयार हो गया। रात को 2 बजे दोनों बेटे के सबसे घनिष्ठ मित्र के घर पहुंचे, बेटे ने दरवाजा खटखटाया, दरवाजा नहीं खुला,बार-बार दरवाजा ठोकने के बाद अंदर से बेटे का दोस्त उसकी माताजी को कह रहा था माँ कह दे मैं घर पर नहीं हूँ।यह सुनकर बेटा उदास हो गया, अतः निराश होकर दोनों लौट आए।* *फिर पिता ने कहा कि बेटे आज तुझे मेरे दोस्त से मिलवाता हूँ। दोनों पिता के दोस्त के घर पहुंचे। पिता ने अपने मित्र को आवाज लगाई।*  *उधर से जवाब आया कि ठहरना मित्र, दो मिनट में दरवाजा खोलता हूँ। जब दरवाजा खुला तो पिता के दोस्त के एक हाथ में रुपये की थैली और दूसरे हाथ में तलवार थी। पिता ने पूछा, यह क्या है मित्र।*  *तब मित्र बोला....अगर मेरे मित्र ने दो बजे रात्रि को मेरा दरवाजा खटखटाया है, तो जरूर वह मुसीबत में होगा और अक्सर मुसीबत दो प्रकार की होती है,या तो रुपये पैसे की या किसी से विवाद हो गया हो। अगर त

।।090।।बोधकथा। 🌺💐🏵 *हृदय परिवर्तन* 🏵💐🌺

"अबे देख------ चिड़ियाघर में, अपने तीन साल के बच्चे के साथ घूम रही एक गांव की खूबसूरत नवयुवती को दिखा, वो पांच-सात कॉलेज के लड़के यही बातें कर रहे थे। वो उस खूबसूरत, अकेली देहाती युवती के पीछे हो लिए। युवती अपने बच्चे को कभी गोद में तो कभी उंगली पकड़े उसे बारी बारी से जानवरों को दिखा रही थी। पीछे लगे आवारा लड़कों से बिल्कुल बेखबर... "चलती है क्या नौ से बारह"  फिल्मी गाने गाते वो उसे कट मारकर अट्टहास करते आगे निकल गए। युवती ने उनपर ध्यान नहीं दिया। वो हिरन के बाड़े के पास अपने बच्चे को उन्हें दिखा रही थी। बच्चा चहकता हुआ उन्हें देख रहा था। आवारा लड़के उस युवती को घुर रहे थे। वो लड़के बगल में ही शेर के बाड़े के पास जोर से उसे देख फब्तियां कस रहे थे।  उनमें से एक लड़का पूरे जोश में था। बाड़े के ऊपर लगे ग्रिल पर बैठ भद्दे गाने गा रहा था। युवती बच्चे को लिए शेर को दिखाने बढ़ चली थी। युवती को देख ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उसे उन लड़कों से तनिक भी भय नहीं या वो उन्हें अनदेखा अनसुना कर रही है,युवक अतिउत्साहित हो उठा। सभी ठहाके लगा रहे थे। युवती बाड़े के पास पहुंच चुकी थी। तभी बाड़े के ऊपर चढ़ा ल

।।089।। बोधकथा। 🌺💐🏵 *मैं का भ्रम* 🏵💐🌺

*एक बार कागज का एक टुकड़ा हवा के वेग से उड़ा और पर्वत के शिखर पर जा पहुँचा...पर्वत ने उसका आत्मीय स्वागत किया और कहा भाई...*  *यहाँ कैसे पधारे...? कागज ने कहा-अपने दम पर...जैसे ही कागज ने अकड़ कर कहा अपने दम पर और तभी हवा का एक दूसरा झोंका आया और कागज को उड़ा ले गया* *अगले ही पल वह कागज नाली में गिरकर गल-सड़ गया...जो दशा एक कागज की है वही दशा हमारी है* *पुण्य की अनुकूल वायु का वेग आता है तो हमें शिखर पर पहुँचा देता है और पाप का झोंका आता है तो रसातल पर पहुँचा देता है...* *किसका मान...? किसका गुमान...? सन्त कहते हैं कि जीवन की सच्चाई को समझो संसार के सारे संयोग हमारे अधीन नहीं हैं.* *कर्म के अधीन हैं और कर्म कब कैसी करवट बदल ले...कोई भरोसा नहीं इसलिए कर्मों के अधीन परिस्थितियों का कैसा गुमान*  *बीज की यात्रा वृक्ष तक है.*   *नदी की यात्रा सागर तक है*   *और* *मनुष्य की यात्रा परमात्मा तक*  *संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है*   *हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं*  *इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि*  *मै न होता तो क्या होता* ।। मनेन्दु पहारिया।।    18/11/2022

।।088।। बोधकथा। 🌺💐*भगवान का मंगल विधान* 💐🌺

  *( सत्य घटना)* *पुरानी बात है - कलकत्ते में सर कैलाशचन्द्र वसु प्रसिद्ध डॉक्टर हो गये हैं। उनकी माता बीमार थीं। एक दिन श्रीवसु महोदय ने देखा—माता की बीमारी बढ़ गयी हैं, कब प्राण चले जायँ, कुछ पता नहीं। रात्रि का समय था। कैलाश बाबू ने बड़ी नम्रता के साथ माताजी से पूछा- 'माँ, तुम्हारे मन में किसी चीज की इच्छा हो तो बताओ, मैं उसे पूरी कर दूँ।' माता कुछ देर चुप रहकर बोलीं- 'बेटा! उस दिन मैंने बम्बई के अंजीर खाये थे। मेरी इच्छा है अंजीर मिल जायँ तो मैं खा लूँ।' उन दिनों कलकत्ते के बाजार में हरे अंजीर नहीं मिलते थे। बम्बई से मँगाने में समय अपेक्षित था । हवाई जहाज थे नहीं। रेल के मार्ग से भी आजकल की अपेक्षा अधिक समय लगता था। कैलाश बाबू बड़े दुखी हो गये - माँ ने अन्तिम समय में एक चीज माँगी और मैं माँ की उस माँग को पूरी नहीं कर सकता, इससे बढ़कर मेरे लिये दु:ख की बात और क्या होगी ? पर कुछ भी उपाय नहीं सूझा । रुपयों से मिलने वाली चीज होती तो कोई बात नहीं थी ।*  *कलकत्ते या बंगाल में कहीं अंजीर होते नहीं, बाजार में भी मिलते नहीं। बम्बई से आने में तीन दिन लगते हैं। टेलीफोन भी नहीं,

।।087।। बोध कथा। 🏵💐🌺 राजा परीक्षित 🌺💐🏵

कुरु वंश के एकमात्र वंशज सुभद्रा कुमार अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में आए परीक्षित को कौन नहीं जानता, जिसकी रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण स्वयं उत्तरा की पुकार पर उसके गर्भ में प्रवेश कर गए और गर्भस्थ शिशु को चतुर्भुज रूप में शंख, चक्र, गदा पद्म, के साथ दर्शन देते हुए अपनी गदा को गर्भ के चारों ओर तेजी से घुमाते हुए अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र को नष्ट करते रहे।  बड़े होने पर पांडवों ने राजा परीक्षित को राज्य सौंप कर हिमालय की ओर प्रस्थान किया।  राजा परीक्षित ने एक दिन दिग्विजय करते समय 'शूद्र कलि' को गोरूपी पृथ्वी देवी और धर्म स्वरूप वृषभ को प्रताड़ित करते हुए देखा। उन्होंने तलवार खींचकर उसे मारना चाहा, किंतु याचना करने पर उसे रहने के लिए जुआ, शराब,वैश्या, हिंसा, और स्वर्ण यह 5 स्थान दे दिए।  इन पांचों से प्रत्येक कल्याण कामी पुरुष को सावधान रहना चाहिए, अन्यथा उसका पतन हो सकता है।  एक दिन राजा परीक्षित आखेट करते हुए, भूख प्यास से व्याकुल, शमीक ऋषि के आश्रम पहुंचे और उनसे जल मांगा। ध्यान मग्न होने के कारण ऋषि ने कोई उत्तर नहीं दिया। परीक्षित स्वर्ण का मुकुट पहने हुए थे जिसमें

।।086।। बोधकथा। 🌺💐 “रामायण”क्या सिखाती है? 💐🌺

एक रात, माता कौशल्या को अपने महल की छत पर किसी के चलने की आहट सुनाई दी।  नींद खुल गई, पूछा कौन हैं ? मालूम पड़ा श्रुतकीर्ति जी (सबसे छोटी बहु, शत्रुघ्न जी की पत्नी)हैं । माता कौशल्या जी ने उन्हें नीचे बुलाया | श्रुतकीर्ति जी आईं, चरणों में प्रणाम कर खड़ी रह गईं माता कौशिल्या जी ने पूछा, श्रुति ! इतनी रात को अकेली छत पर क्या कर रही हो बेटी ?  क्या नींद नहीं आ रही ? शत्रुघ्न कहाँ है ? श्रुतिकीर्ति की आँखें भर आईं, माँ की छाती से चिपटी,  गोद में सिमट गईं, बोलीं, माँ उन्हें तो देखे हुए तेरह वर्ष हो गए । उफ !  कौशल्या जी का ह्रदय काँप कर झटपटा गया । तुरंत आवाज लगाई, सेवक दौड़े आए ।  आधी रात ही पालकी तैयार हुई, आज शत्रुघ्न जी की खोज होगी,  माँ चली । आपको मालूम है शत्रुघ्न जी कहाँ मिले ? अयोध्या जी के जिस दरवाजे के बाहर भरत जी नंदिग्राम में तपस्वी होकर रहते हैं, उसी दरवाजे के भीतर एक पत्थर की शिला हैं, उसी शिला पर, अपनी बाँह का तकिया बनाकर लेटे मिले !!  माँ सिराहने बैठ गईं,  बालों में हाथ फिराया तो शत्रुघ्न जी नेआँखें खोलीं,  माँ ! उठे, चरणों में गिरे, माँ ! आपने क्यों कष्ट किया ?  मुझे बुलवा

।।085।। बोधकथा। *💐💐 बदलाव 💐💐*

बूढ़े  दादा  जी  को  उदास  बैठे  देख  बच्चों  ने  पूछा , “क्या  हुआ  दादा  जी  , आज  आप  इतने  उदास  बैठे  क्या  सोच  रहे  हैं ?” “कुछ  नहीं  , बस  यूँही  अपनी  ज़िन्दगी  के  बारे  में  सोच  रहा  था !”, दादा  जी बोले । “जरा  हमें  भी  अपनी  लाइफ  के  बारे  में  बताइये  न …”, बच्चों  ने  ज़िद्द्द  की । दादा  जी कुछ देर सोचते रहे और फिर बोले , “ जब  मैं  छोटा  था  , मेरे  ऊपर  कोई  जिम्मेदारी  नहीं  थी , मेरी  कल्पनाओं  की  भी  कोई  सीमा  नहीं  थी …. मैं  दुनिया  बदलने  के  बारे  में  सोचा  करता  था … जब  मैं  थोड़ा  बड़ा  हुआ  …बुद्धि  कुछ  बढ़ी ….तो  सोचने  लगा  ये  दुनिया  बदलना  तो  बहुत  मुश्किल काम है …इसलिए  मैंने  अपना  लक्ष्य  थोड़ा  छोटा  कर  लिया … सोचा  दुनिया  न  सही  मैं  अपना  देश  तो  बदल  ही  सकता  हूँ . पर  जब  कुछ  और  समय  बीता , मैं  अधेड़  होने  को  आया  … तो  लगा  ये  देश  बदलना  भी  कोई  मामूली बात  नहीं  है …हर कोई ऐसा नहीं कर सकता है …चलो  मैं  बस  अपने  परिवार  और  करीबी  लोगों  को  बदलता  हूँ … पर  अफ़सोस  मैं  वो  भी  नहीं  कर  पाया . और  अब  जब  मैं  इस  दुनिया  में 

।।084।। बोधकथा। 🌺💐 पुण्य में दिखावा नहीं 💐🌺

एक दिन एक भिखारी एक सेठ की दुकान पर भीख मांगने पहुंचा। उस व्यक्ति ने 1 रुपये का सिक्का निकाल कर उसे दे दिया। भिखारी को प्यास भी लगी थी,वो बोला बाबूजी एक गिलास पानी भी पिलवा दो,गला सूखा जा रहा है। वह व्यक्ति गुस्से में बोला-तुम्हारे बाप के नौकर बैठे हैं क्या हम यहां,पहले पैसे,अब पानी,थोड़ी देर में रोटी मांगेगा,चल भाग यहां से। भिखारी बोला:- बाबूजी गुस्सा मत कीजिये मैं आगे कहीं पानी पी लूंगा।पर जहां तक मुझे याद है,कल इसी दुकान के बाहर मीठे पानी की छबील लगी थी और आप स्वयं लोगों को रोक रोक कर जबरदस्ती अपने हाथों से गिलास पकड़ा रहे थे,मुझे भी कल आपके हाथों से दो गिलास शर्बत पीने को मिला था।मैंने तो यही सोचा था,आप बड़े धर्मात्मा आदमी है,पर आज मेरा भरम टूट गया। कल की छबील तो शायद आपने लोगों को दिखाने के लिये लगाई थी। मुझे आज आपने कड़वे वचन बोलकर अपना कल का सारा पुण्य खो दिया। मुझे माफ़ करना अगर मैं कुछ ज्यादा बोल गया हूँ तो। उस व्यक्ति को बात दिल पर लगी, उसकी नजरों के सामने बीते दिन का प्रत्येक दृश्य घूम गया। उसे अपनी गलती का अहसास हो रहा था। वह स्वयं अपनी गद्दी से उठा और अपने हाथों से गिलास

।।083।। बोध कथा। "नरेंद्र" का "स्वामी विवेकानंद" होना ही पुरुषार्थ है।

 #पुरुषार्थ  1884 में 'नरेंद्रनाथ दत्त' के सर से पिता का साया उठ गया। उस समय वो बी०ए० पास करके बीo एलo की तैयारी कर रहे थे वो। बड़ा परिवार था तो उनके भरण पोषण की जिम्मेदारी नरेंद्र के कंधों पर आ गई। उधर बकायेदार अलग परेशान करने लगे। नरेंद्र फटे हुए वस्त्र और नंगे पांव कलकत्ता की गलियों में नौकरी की तलाश में भटकने लगे । सवेरे उठ जाते और नौकरी की तलाश में निकल जाते। बहुत भटकने के बाद किसी कार्यालय में एक अस्थायी नौकरी मिली पर नाकाफी था। यंत्रणा ने तोड़ दिया तो रामकृष्ण देव के पास पहुंच गये। रामकृष्ण परमहंस ने उन मां काली के पास भेजा तो तीन प्रयास के बाबजूद वो माँ से सिवाय ज्ञान और वैराग्य के कुछ माँग नहीं सके तो रामकृष्ण ने उनसे कहा, अब जाओ अर्थ के लिए तुम परेशान न हो। मैंने माँ से कह दिया है कि तेरे परिवार की चिंता अब वही करे। ऐसी ही विषम परिस्थितियों में इंसान का सर्वश्रेष्ठ निखर कर आता है। दुख ने उनकी परीक्षा ली और उसी दुःख ने नरेंद्र को स्वामी विवेकानंद में बदल दिया। इसी बीच अवसर मिला तो शिकागो जाने का मन बना लिया। 16 जुलाई, 1893 को कनाडा और फ़िर वहां से शिकागो पहुंचे। उस नगर म

।।081।। बोधकथा। 🌺 राम से प्रभावी है, राम का नाम 🌺

हनुमान जी जब पर्वत लेकर लौटते है तो भगवान से कहते है , प्रभु आपने मुझे संजीवनी बूटी लेने नहीं भेजा था। आपने तो मुझे मेरी मूर्छा दूर करने के लिए भेजा था। "सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू" हनुमान्‌जी ने पवित्र नाम का स्मरण करके श्री रामजी को अपने वश में कर रखा है। प्रभु आज मेरा ये भ्रम टूट गया कि मै ही सबसे बड़ा भक्त,राम नाम का जप करने वाला हूँ।  भगवान बोले कैसे ?  हनुमान जी बोले - वास्तव में तो भरत जी संत है और उन्होंने ही राम नाम जपा है। आपको पता है! जब लक्ष्मण जी को शक्ति लगी तो मै संजीवनी लेने गया, पर जब मुझे भरत जी ने बाण मारा और मै गिरा, तो भरत जी ने, न तो संजीवनी मंगाई, न वैध बुलाया. कितना भरोसा है उन्हें आपके नाम पर, आपको पता है उन्होंने क्या किया!उन्होंने आपका नाम लेकर कहा, "जौ मोरे मन बच अरू काया, प्रीति राम पद कमल अमाया" तौ कपि होउ बिगत श्रम सूला, जौ मो पर रघुपति अनुकूला सुनत बचन उठि बैठ कपीसा, कहि जय जयति कोसलाधीसा" यदि मन वचन और शरीर से श्री राम जी के चरण कमलों में मेरा निष्कपट प्रेम हो तो यदि रघुनाथ जी मुझ पर प्रसन्न हो तो यह वानर थका

।।082।। बोध कथा। 🏵🌺 वाणी से पता चलता है 🏵🌺

वन विहार के लिए आए हुए राजा का जहां पड़ाव था, उसी के पास एक कुएं पर, एक नेत्रहीन व्यक्ति यात्रियों को कुएं से निकालकर जल पिलाया करता था।  राजा को प्यास लगी। उसने सिपाही को पानी लाने भेजा।  सिपाही ने जाकर कहा- "ओ रे अंधे! एक लोटा जल शीघ्रता से भर दे।"  सूरदास ने कहा -"जा भाग जा! तुझ जैसे मूर्ख नौकर को पानी नहीं देता।"  सिपाही खींझकर वापस लौट गया।  अब प्रधान सेनापति स्वयं वहां पहुंचे और कहा- "अंधे भाई! एक लोटा जल शीघ्रता से दे दो।"  व्यक्ति ने उत्तर दिया- "कपटी मीठा बोलता है, लगता है पहले वाले का सरदार है।"  मेरे पास तेरे लिए जल नहीं।  दोनों ने राजा से शिकायत की- महाराज!बुड्ढा पानी नहीं देता।  राजा उन दोनों को साथ लेकर स्वयं वहां पहुंचा और नमस्कार कर कहा- "बाबाजी!प्यास से गला सूख रहा है, थोड़ा जल् दो, तो प्यास बुझाऊं!"  अंधे ने कहा- महाराज! बैठिए अभी जल पिलाता हूं।"  राजा ने पूछा- "महात्मन!  आपने चक्षुहीन होकर भी, यह कैसे जाना कि एक नौकर, दूसरा सरदार, और मैं राजा हूं?"  बुड्ढे ने हंसकर कहा- "महाराज! व्यक्ति का वजन वाणी

।।080।। बोधकथा। 🌺 परमात्मा प्राप्ति किसे होती हॆ ? 🌺

एक राजा था।वह बहुत न्याय प्रिय तथा प्रजा वत्सल एवं धार्मिक स्वभाव का था। वह नित्य अपने इष्ट देव की बडी श्रद्धा से पूजा-पाठ और याद करता था।  एक दिन इष्ट देव ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिये तथा कहा---"राजन् मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ। बोलो तुम्हारी कोई इछा हॆ?" प्रजा को चाहने वाला राजा बोला---"भगवन् मेरे पास आपका दिया सब कुछ हॆ।आपकी कृपा से राज्य मे सब प्रकार सुख-शान्ति हॆ। फिर भी मेरी एक ईच्छा है, कि जैसे आपने मुझे दर्शन देकर धन्य किया, वैसे ही मेरी सारी प्रजा को भी दर्शन दीजिये।" "यह तो सम्भव नहीं है ।" भगवान ने राजा को समझाया ।परन्तु प्रजा को चाहने वाला राजा भगवान् से जिद्द् करने लगा। आखिर भगवान को अपने साधक के सामने झुकना पडा ओर वे बोले,--"ठीक है, कल अपनी सारी प्रजा को उस पहाडी के पास लाना। मैं पहाडी के ऊपर से दर्शन दूँगा।" राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ और भगवान को धन्यवाद दिया। अगले दिन सारे नगर मे ढिंढोरा पिटवा दिया कि कल सभी पहाड के नीचे मेरे साथ पहुँचे,वहाँ भगवान् आप सबको दर्शन देगें।  दूसरे दिन राजा अपने समस्त प्रजा और स्वजनों को साथ लेकर पहाडी

।।079।। बोध कथा । सभी का शुभ हो मंगल हो !!

नदी के तट पर एक भिक्षु ने वहां बैठे एक वृद्ध से पूछा- यहां से नगर कितनी दूर है? सुना है, सूरज ढलते ही नगर का द्वार बंद हो जाता है। अब तो शाम होने ही वाली है। क्या मैं वहां पहुंच जाऊंगा? वृद्ध ने कहा-धीरे चलो तो पहुंच भी सकते हो। भिक्षु यह सुनकर हैरत में पड़ गया। वह सोचने लगा कि यह वृद्ध विक्षिप्त तो नहीं! यह धीरे चलने को क्यों कह रहा है। लोग कहते हैं कि जल्दी से जाओ पर यह तो उलटी ही बात कह रहा है। भिक्षु तेजी से भागा। लेकिन रास्ता ऊबड़-खाबड़ और पथरीला था। थोड़ी देर जाते ही भिक्षु लड़खड़ाकर गिर पड़ा। किसी तरह वह उठ तो गया लेकिन दर्द से परेशान था। उसे चलने में काफी दिक्कत हो रही थी। वह किसी तरह आगे बढ़ा लेकिन तब तक अंधेरा हो गया। उस समय वह नगर से थोड़ी ही दूर पर था। उसने देखा कि दरवाजा बंद हो रहा है। उसके ठीक पास से एक व्यक्ति गुजर रहा था। उसने भिक्षु को देखा तो हंसने लगा। भिक्षु ने नाराज होकर कहा- तुम हंस क्यों रहे हो? उस व्यक्ति ने कहा- आज आपकी जो हालत हुई है वह कभी मेरी भी हुई थी। आप भी उस बाबाजी की बात नहीं समझ पाए जो नदी किनारे रहते हैं। भिक्षु की उत्सुकता बढ़ गई। उसने पूछा- साफ-साफ

।।078।। बोधकथा। 🏵क्या परमात्मा हमारी बात सुनता है?🏵

अक्सर सभी के मन में यह प्रश्न रहता हैं की हम दिन-रात भगवान से प्रार्थना करते हैं लेकिन क्या भगवान हमारी पुकार/प्रार्थना सुनते हैं? जी हाँ , भगवान हमारी पुकार 100% सुनते है, लेकिन उस पुकार में प्रेम हो, करुणा हो, समर्पण हो और भगवान के लिए भाव हो। हम चाहे लाख बार राम कहे, चाहे करोड़ बार, लेकिन यदि एक बार ह्रदय से राम नाम कहा गया तो वो राम नाम लाख बार नाम लेने से कहीं अधिक होगा, क्योकि भगवान आपके मन की जानते है। भगवान को कोई ढोंग और दिखावा पसंद ही नहीं है। मीरा जी जब भगवान कृष्ण के लिए गाती थी तो भगवान बड़े ध्यान से सुनते थे। सूरदास जी जब पद गाते थे तब भी भगवान सुनते थे।  और कहाँ तक कहूँ कबीर जी ने तो यहाँ तक कह दिया:- चींटी के पग नूपुर बाजे वह भी साहब सुनता है। एक चींटी कितनी छोटी होती है अगर उसके पैरों में भी घुंघरू बाँध दे तो उसकी आवाज को भी भगवान सुनते है। यदि आपको लगता है की आपकी पुकार भगवान नहीं सुन रहे तो ये आपका वहम है या फिर आपने भगवान के स्वभाव को नहीं जाना। कभी प्रेम से उनको पुकारो तो सही, कभी उनकी याद में आंसू गिराओ तो सही। मैं तो यहाँ तक कह सकता हूँ की केवल भगवान ही है जो आपकी