सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

।।043।। बोधकथा। ।बच्चों से प्यार- संस्कारों की कीमत पर नहीं।


एक पिता अपने एकलौती बेटी को इतना प्यार करता था कि, जो उसकी इच्छा हो वह तुरंत हाजिर की जाती थी।

 लड़की जिद्दी हो गई। 8:00 बजे सो कर उठती, किसी की बात नहीं मानती, कोई काम नहीं करती, घर में कोई कुछ कहता, तो बाप कहता- कोई बात नहीं अपने घर (ससुराल) जाएगी तो सब कुछ करेंगी। 


 जब वह बड़ी हो गई तो एक संपन्न परिवार में विवाह कर दिया।

 बेटी को गए हुए 8 दिन भी नहीं हुए कि फोन आया, पिताजी मैं यहां मर रही हूं, मुझे तुरंत आकर ले जाओ। पिता हैरान कि, 8 दिन क्या हो गया?

 लेकिन बेटी के प्यार ने उसे मजबूर कर दिया और वह बेटी को लेने पहुंच गया। ससुराल जब पहुंचा, तो उसे किसी ने आदर भाव प्रकट नहीं किया, पानी के लिए भी नहीं पूछा, समधी बगल से निकल गए, देवर बाजू से चला गया।

 उसने सोचा कि भाई इतने कम दिनों में यह कैसा माहौल हो गया!

 वह अपनी बेटी के कमरे में गया। बेटी यह कैसे हुआ? बेटी ऊँची आवाज में बोली -कुछ मत पूछो, मुझे यहां 1 मिनट भी नहीं रहना, तुरंत ले चलो।


 बाप बोला बेटी रुको, जरा चलो तुम्हारी सास से पूछ लूँ!

वह हाथ जोड़कर समधिन से बोला- बहन जी मैं बेटी को ले जाने आया हूं।

 सास बोली, अभी ले जाओ। कैसी बेटी भेजी है तुमने, 8 दिन में ही पूरे परिवार का जीना हराम कर रखा है। कैसे संस्कार दिए हैं बेटी को, 8:00 बजे उठती है, कोई काम नहीं करती, बैठे-बैठे टाइम पर खाना चाहिए, कोई कुछ कहे, तो एक का चार सुनाया करती है, ले जाओ अपना पैसा वापस, ले जाओ अपना दहेज, नहीं चाहिए हमें आपकी बेटी।

 पिता का सर झुक गया। चलते-चलते समधन से हाथ जोड़कर बोला- बहन! 10-15 दिन में भेज दूंगा इसे समझा-बुझाकर। 

वे बोली, बिल्कुल नहीं, इसके लिए दरवाजे हमेशा के लिए बंद है।


 पिता समझ गया जरूर कुछ गड़बड़ है। बेटी को लेकर घर पहुंचा, पर रास्ते में बेटी से पूछा -बेटी! ऐसा माहौल कैसे बना?

 बेटी बोली, पिताजी कैसी जगह ले जाकर पटक दिया है मुझे। एकदम नरक।

अच्छा सास कैसी है? बोली, एकदम डायन।

ससुर कैसे हैं? 

पूरे राक्षस। 

जेठ कैसे हैं ?

एक नंबर का धूर्त।

देवर कैसा है? बोली आवारा।

ननंद कैसी है?

एक नंबर की चुगल खोर।

 और पति कैसा है?

 वह तो साक्षात यमराज है।

 अच्छा पड़ोसी तो ठीक होंगे?

बोली,  पड़ोसी तो एकदम लुच्चे, लफंगे,बदमाश है।

 पिता को समझते देर नहीं लगी, ऐसा कैसे हो सकता है! घर तो घर, पड़ोस भी खराब हो?


 पिता ने भांप लिया गड़बड़ी कहां है। 

बेटी ने कहा अब मैं कभी वापस नहीं जाऊंगी।

 पिता ने कहा, बेटी कोई बात नहीं, तू आराम से रह।

 भाभी बोली,अच्छा तू यही रहेगी, तो ध्यान से सुन ले, रोज सवेरे उठकर भोजन बनाना,सफाई करना! बैठे-बिठाए खाने को नहीं मिलेगा।


 एक दो महीना बीते कि पड़ोसी पूछने लगे, क्या हुआ, दामाद लेने नहीं आ रहे।

 सखियां पूछती, इतने दिन हो गए जीजा जी तुझे लेनी नहीं आ रहे? 

 अब बेटी जहां कहीं शादी समारोह में जाती तो सब पूछते, ससुराल क्यों नहीं जा रही?  मेहमान, रिश्तेदार सभी पूछते।

 एक दिन बेटी उदास अकेली बैठी थी। 

पिता बोला, क्या बात है, किस बात की कमी है?

 बेटी बोली,  क्या करूं, ससुराल नरक है, और पीहर में लोग जीने नहीं देते। मैं तो कहीं आ जा भी नहीं सकती! हर तरफ ताने मिलते हैं।

 पिता ने कहा बेटी में भी तेरे साथ हो रहे व्यवहार से चिंतित हूं। देख  नगर में एक पहुंचे हुए संत आए हैं, मैंने उनसे तेरी समस्या की चर्चा की, उन्होंने मुझे एक मंत्र दिया है, बताया कि 6 महीने का जाप है।

 पर पिताजी मुझसे जाप आप नहीं होगा।

 कोई बात नहीं बेटा, जप मैं कर लूंगा, साधना तुम कर लेना, फिर ससुराल तेरी मुट्ठी में।

 क्या करना होगा मुझे?

 बेटी यह साधना तुझे ससुराल में रहकर ही करनी होगी। मैं यहां से मंत्र जपता रहूंगा। 


बेटी तैयार हो गई ससुराल जाने को। जब ससुराल बाप बेटी पहुंचे, तो बहू को देखते ही ससुराल वाले बोले, तू फिर आ गई हमारा सुख चैन छीनने। 

बेटी पिता की ओर देखती है तो, पिता इशारा करता है, बेटी साधना!

 बेटी अपने कमरे में जाती है। पिता फिर समझाता है,बेटी साधना पर ध्यान रखना, किसी को जवाब नहीं देना, समय पर नाश्ता, भोजन, सास की सेवा, फिर देखना यह तेरे इशारे पर नाचेंगे!

बेटी बोली ठीक है पिताजी, इन्हें उंगलियों पर नचाने के लिए मैं कुछ भी करने को तैयार हूं। बस 6 महीने की ही तो बात है। 

बाप समधी समधन से हाथ जोड़कर विनती करता है,एक मौका और दीजिए। 

समधी समझदार थे, बाप की मजबूरी समझ गए, बोले कोई बात नहीं, एक मौका और ।


 अब बेटी रात में सोती है, सुबह 6:00 बजे उठती है, पहले अपनी सास के पैर छूती, सांस चौंक जाती है, क्या हो गया बहू को! 

 नित्य क्रिया से निवृत्त होकर रसोई में जाती है, सुबह का नाश्ता, चाय बनाती। घर के लोग सोचते क्या हो गया बहू को!

 सास के लिए नाश्ता ले कर जाती है, सास सोचती, कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही हूं!

वह पूछती, बेटी तू हमारी ही बहू है? तेरी कोई जुड़वा बहन तो नहीं है ना?

 बहू बोली, नहीं मां जी, मैं वही हूं, पर मन मैं कह रही थी, रुक बुढि़या, बस 6 महीने की बात है  फिर मैं बताऊंगी कि मैं कौन हूं?

 घर में सभी को बहू के बदले व्यवहार को देख आश्चर्य हो रहा था। सभी उसकी तारीफ करते थकते नहीं थे। 

महीना बीता, सास ने बहू को अपने पास बुलाया, कहा -यह घर की चाबी, आज मैं तुझे सौंपती हूं, घर का सारा लेन-देन तेरे हाथ में रहेगा, अब यह बोझ में नहीं हो सकती।

 बहू ने झट से चाबी लेते हुए सोचा कि, बुड़िया! इसी का तो मुझे इंतजार था। 5 महीने की बात और है।

 धीरे धीरे 2 महीने बीते। रक्षाबंधन आया, भाई, बहन को लेने ससुराल पहुंचा। कहां चल बहन रक्षाबंधन का त्यौहार है।

 वह बोली, नहीं पहले सास ससुर से मुझे अनुमति लेना होगी।

 भाई ने सोचा कि मेरी बहन में इतना परिवर्तन !

सास ने कहा, बेटा! हमारी बहू को जल्दी वापस ले आना, इसके बिना तो घर मैं किसी का मन नहीं लगेगा, यह तो हमारे घर की साक्षात लक्ष्मी है । इसके बिना घर आंगन सूना लगेगा।


बेटी घर पहुंची, अपना रूप, स्वरूप और व्यवहार लेकर त्यौहार आनंद से बीता। दो-तीन दिन बाद पिता से बोली, अब मुझे ससुराल भेज दो।

 बाप ने कहा कुछ दिन और रुको ।

बेटी ने कहा, नहीं पिताजी मेरे बिना मेरे सास- ससुर अकेले पड़ गए होंगे, उनका भी मन नहीं लग रहा होगा और मैं भी शरीर से तो यहां हूं पर मन तो मेरा ससुराल में ही अटका है।


 पिता भी इस परिवर्तन से आवाक था।

 ध्यान रहे- बेटी वही, ससुराल वही, सब कुछ पहले वाला है,पर नहीं रहा तो पहले वाली आदत, व्यवहार, जिद्दीपना। 

अपने औलाद के अंदर पारिवारिक संस्कार जरूर डालें, जिससे छोटे बड़े का कर्तव्य और फर्ज तथा परिवार के प्रति सच्ची श्रद्धा, निष्ठा, प्यार- दुलार और पारदर्शिता बनी रहे, जिससे परिवार खुशहाल रहे।


।। मनेन्दु पहारिया।।

21/09/2022

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Global Impact Of Urbanization Threatening World's Biodiversity And Natural Resources

“As a species we have lived in wild nature for hundreds of thousands of years, and now suddenly most of us live in cities—the ultimate escape from nature,” says Peter Kareiva, chief scientist at The Nature Conservancy and co-author of the report. “If we do not learn to build, expand and design our cities with a respect for nature, we will have no nature left anywhere.” The study, “The implications of current and future urbanization for global protected areas and biodiversity conservation,” was published in the current issue of Biological Conservation and is the first-ever global analysis of how urbanization will affect rare species, natural resources and protected areas in proximity to cities. In 2007, the United Nations revealed that at least 50 percent of the world’s population is living in cities. By 2030, that number will jump to 60 percent, with nearly 2 billion new city residents, many migrating from rural areas. According to the report, humans are building the equivalent of a

।।113।।बोधकथा। (श्रीराम नवमी पर) ...........!! *श्रीराम: शरण मम*।। ........... ।।श्रीरामकिंकर वचनामृत।।

 °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°     *देहाभिमान रूपी शरीर ही समुद्र है।*      *जब शरीर का समुद्र पार करें, तब*          *तो भगवान्‌ की शरण में जायँँ,*       *नहीं तो यह शरीर ही ऐसा केन्द्र है,*    *जो भगवान्‌ के पास जाने से रोकता है।*    °" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "° कृपया मेरे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब अवश्य करें। https://youtube.com/@janpathdarshannews      अपने आपको केवल शरीर मान करके शरीर के धर्म का ही पालन करना, यह तो अपूर्णता है। विभीषणजी के सामने यह समस्या है । इसका बड़ा व्यंग्यात्मक संकेत उस समय आता है, जब भगवान्‌ समुद्र के इस पार अपनी बानर सेना के साथ विराजमान हैं, रावण के द्वारा चरण प्रहार से अपमानित होकर वे भगवान्‌ की शरण में तो आ गये, पर अभी भी पूर्व संस्कारों से मुक्त न हो पाने के कारण उन्होंने संयोगवश अपना परिचय दशानन के भाई के रुप में दिया , विभीषण जी के इसी भूल को यदि सुग्रीव चाहते

।।112।। बोध कथा। 🌺💐 क्रोध पर करुणा की विजय 💐🌺

जुए में हारने पर शर्त के अनुसार पांडवों ने  12 वर्ष का वनवास तथा 1 वर्ष का अज्ञातवास पूरा किया। किंतु कौरवों ने उनका राज वापस करना तो दूर 5 गांव देना भी स्वीकार नहीं किया।  कृपया मेरे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब अवश्य करें। https://youtube.com/@janpathdarshannews युद्ध ना हो इसलिए भगवान श्री कृष्ण शांति हेतु संधि प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर जाना चाहते थे, पर द्रोपदी ने विरोध किया -'केशव!मेरे यह केस दु:शासन के रक्त से सिंचित होने पर ही बधेंगे। यदि मेरे पति सक्षम नहीं है, तो मेरे अपमान का प्रतिशोध अभिमन्यु सहित मेरे 5 महाबली पुत्र लेंगे। संधि तथा धर्म की बातें अब सहन नहीं होती कहते-कहते द्रोपदी फूट-फूट कर रोने लगी।"  श्री कृष्ण ने गंभीर स्वर में कहा- कृष्णे वही होगा जो तुम चाहती हो, मेरी बात मिथ्या नहीं होगी।  कृष्ण शांति दूत बनकर हस्तिनापुर पहुंचे परंतु संधि वार्ता निष्फल रही। युद्ध अनिवार्य हो गया। और महाभारत युद्ध हुआ।  युद्ध के अंतिम 18 वे दिन, भीमसेन ने गदा प्रहार से दुर्योधन की जंघा तोड़ दी। इस पर भी भीमसेन का क्रोध शांत नहीं हुआ और वे उसे कपटी कहकर बार-बार उसका सिर अपने पैर स