प्रयाग उच्च न्यायालय से अपने विरुद्ध आये निर्णय से बौखलाकर 26 जून, 1975 की रात में इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल थोप दिया। राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद तथा मंत्रिमंडल के सभी सदस्य इंदिरा गांधी से डरते थे। उन सबने बिना चूं-चपड़ किये इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कर दिये। विपक्ष के सभी प्रमुख नेताओं को रात में ही घरों से उठाकर जेलों में ठूंस दिया गया। सारे देश में दहशत फैल गयी। पत्र-पत्रिकाओं पर सेंसर थोप दिया गया।
इसके विरुद्ध संघ के नेतृत्व में देश भर में लोकतंत्र प्रेमियों ने सत्याग्रह किया और चुनाव में इंदिरा गांधी को हराकर फिर से लोकतंत्र की स्थापना की। इस दौर में 10अगस्त, 1976 की एक घटना से डा.सुब्रह्मण्यम स्वामी ने देश और विदेश में ख्याति पाई। उन दिनों वे जनसंघ की ओर से राज्यसभा के सदस्य थे। उनके विरुद्ध भी गिरफ्तारी का वारंट था; पर वे एक सिख युवक के वेश में चेन्नई और वहां से श्रीलंका होते हुए अमरीका चले गये। अमरीका में वे हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अध्यापक बन गये।
इधर राज्यसभा में लगातार अनुपस्थिति के कारण उनकी सदस्यता समाप्त होने का खतरा था। ऐसे में 10 अगस्त, 1976 को वे अचानक संसद में प्रस्तुत हो गये। राज्यसभा के सभापति श्री बी.डी.जत्ती श्रद्धांजलि वक्तव्य पढ़ रहे थे। इसी बीच खड़े होकर सुब्रह्मण्यम स्वामी ने कहा,‘‘मान्यवर आपने लोकतंत्र को श्रद्धांजलि नहीं दी। उसकी भी तो मृत्यु हो चुकी है।’’
सुब्रह्मण्यम स्वामी को देखते ही वहां हड़कम्प मच गया। कई सांसद तो डर के मारे कुर्सियों की नीचे छिप गये। श्री जत्ती ने सबसे दो मिनट मौन रखने को कहा। इस बीच श्री स्वामी संसद भवन से निकलकर अपनी कार से बिड़ला मंदिर आ गये। यहां उन्होंने अपनी कार खड़ी कर दी। उस समय संजय गांधी की जनसभा के बाद एक जुलूस निकल रहा था। वे कपड़े बदल कर उसमें शामिल होकर रेलवे स्टेशन आ गये। वहां से मथुरा, नागपुर,मुंबई, नेपाल और फिर अमरीका पहुंच गये। भारत सरकार हाथ मलती रह गयी।
संसद में प्रस्तुत होने के दो दिन बाद बी.बी.सी लंदन से उनका एक वक्तव्य प्रसारित हुआ। इससे भारत सरकार के मुंह पर कालिख पुत गयी; पर सच यह था कि तब तक वे भारत में ही थे। जो वक्तव्य लंदन से प्रसारित हुआ, उसे वे पहले ही रिकार्ड करा कर भारत आये थे। इसमें पूरी दुनिया में फैले संघ के स्वयंसेवकों तथा कई विदेशी सरकारों ने उनका सहयोग किया। इससे श्री स्वामी पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गये। जैसे छत्रपति शिवाजी औरंगजेब की जेल से निकल भागे थे, वैसा ही चमत्कार उन्होंने किया था।
15 सितम्बर, 1939 को मायलापुर (चेन्नई) में श्री सीताराम सुब्रह्मण्यम के घर जन्मे डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी राजनीति में भी सक्रिय हैं। वे आई.आई.टी, दिल्ली में प्राध्यापक, चंद्रशेखर मंत्रिमंडल में केन्द्रीय वित्त मंत्री तथा योजना आयोग के सदस्य रहे हैं। प्रखर हिन्दुत्ववादी श्री स्वामी ने अनेक पुस्तकें लिखी हैं। श्री रामसेतु आंदोलन को परिणति तक पहुंचाने का श्रेय उन्हें ही है।
वे कानून के भी अच्छे ज्ञाता हैं। अतः न्यायालय में अपने मुकदमे स्वयं लड़ते हैं। शासकीय भ्रष्टाचार के विरुद्ध चलाये जा रहे उनके अभियान से कई घोटालों से परदा उठा है तथा कई बड़े लोगों को जेल जाना पड़ा है।
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