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।।044।। बोधकथा। 🌺💐🏵 माँ का दायित्व 🏵💐🌺


वह,शहर के एक अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि के विद्यालय के बगीचे में तेज धूप और गर्मी की परवाह किए बिना बड़ी लगन से पेड़ पौधों की काट छांट में लगा था कि, तभी विद्यालय के चपरासी की आवाज सुनाई दी- गंगादास! तुझे प्रधानाचार्य जी तुरंत बुला रही हैं!

 गंगा दास को आखरी के 5 शब्दों में काफी तेजी महसूस हुई और उसे लगा कि कोई महत्वपूर्ण बात हुई है, जिसकी वजह से प्रधानाचार्य जी ने उसे तुरंत ही बुलाया है।


 वह अगले क्षण प्रधानाचार्य जी के सामने था। वह एक ईमानदार कर्मचारी था और अपना कार्य पूर्ण निष्ठा से करता था।

 मैडम क्या मैं अंदर आ जाऊं,आपने मुझे बुलाया था!

 हां आओ और देखो..... प्रधानाचार्य की आवाज में कड़की थी और उनकी उंगली एक पेपर पर इशारा कर रही थी।

पढ़ो इसे!

मैडम मैं तो अंग्रेजी पढ़ना नहीं जानता, गंगा दास ने घबराकर उत्तर दिया।

 मैं आपसे क्षमा चाहता हूं मैडम! यदि कोई गलती हो गई हो तो। मैं आपका और विद्यालय का पहले से ही बहुत ऋणी हूं, क्योंकि आपने मेरी बेटी को इस विद्यालय में निशुल्क पढ़ने की अनुमति दी है। मुझे कृपा कर एक मौका और दें, यदि मेरी कोई गलती हुई है तो मैं सुधारने का प्रयास करूंगा और सदैव आपका ऋणी रहूंगा।


 उसे प्रधानाचार्य ने टोका- तुम बिना वजह अनुमान लगा रहे हो। थोड़ा प्रतीक्षा करो, मैं तुम्हारी बेटी की कक्षा अध्यापिका को बुलाती हूं। 

वे पल जब तक उसकी बिटिया की कक्षा अध्यापिका प्रधानाचार्य के कार्यालय में पहुंची, बहुत लंबे हो गए थे गंगा दास के लिए। 

अध्यापिका के पहुंचते ही प्रधानाचार्य महोदय ने कहा हमने तुम्हारी बेटी की प्रतिभा को देखकर और परख कर ही उसे अपने विद्यालय में पढ़ने की अनुमति दी थी। अब यह मैडम इस पेपर में जो लिखा है उसे पढ़कर और हिंदी में तुम्हें सुनाएंगी,  गौर से सुनो। 


कक्षा अध्यापिका ने पढ़ना शुरू करने से पहले बताया- आज मातृ दिवस था और आज मैंने कक्षा में सभी बच्चों को अपनी अपनी माँ के बारे में लेख लिखने को कहा। 

तुम्हारी बेटी ने जो लिखा उसे सुनो?

 उसके बाद कक्षा अध्यापिका ने पेपर पढ़ना प्रारंभ किया।


 मैं एक गांव में रहती थी। एक ऐसा गांव जहां शिक्षा और चिकित्सा की सुविधाओं का आज भी अभाव है। चिकित्सक के अभाव में कितने ही मायें दम तोड़ देती हैं, बच्चों के जन्म के समय। मेरी मां भी उनमें से एक थी। 

उन्होंने मुझे छुआ भी नहीं था और चल बसी। मेरे पिता ही वे पहले व्यक्ति थे मेरे परिवार के, जिन्होंने मुझे गोद में लिया। पर सच कहूं तो मेरे परिवार के बीच अकेले व्यक्ति थे जिन्होंने मुझे गोद में उठाया था। बाकी की नजर में तो मैं अपनी माँ को खा गई थी।


 मेरे पिताजी ने मुझे माँ का प्यार दिया। 

मेरे दादा-दादी चाहते थे कि मेरे पिताजी फिर से विवाह करके एक पोते को जन्म दे, ताकि वंश आगे चल सके। किंतु मेरे पिताजी ने किसी की एक न सुनी और पुनः विवाह  करने से मना कर दिया। इस कारण मेरे दादा दादी ने उनको अपने से अलग कर दिया और पिताजी सब कुछ जमीन, खेती,घर, सुविधा आदि छोड़कर, मुझे साथ लेकर शहर चले आए और इस विद्यालय में माली का काम करने लगे।


 मुझे बहुत ही लाड प्यार से बड़ा करने लगे। मेरी जरूरतों पर माँ की तरह हर पल उनका ध्यान रहता है। मेरे पिता ने अपनी क्षमताओं में मेरी हर प्रकार की सुख सुविधाओं का ध्यान रखा है और मेरे विद्यालय ने उनको यह सबसे बड़ा पुरस्कार दिया जो मुझे यहां निशुल्क पढ़ने की अनुमति मिली। उस दिन मेरे पिता की खुशी का कोई ठिकाना ना था। 


"यदि माँ प्यार और देखभाल करने का नाम है, तो मेरी माँ मेरे पिताजी हैं।" 

"यदि दयाभाव माँ को परिभाषित करता है, तो वह मेरे पिताजी उस परिभाषा के हिसाब से पूरी तरह मेरी माँ है।"

 "यदि त्याग माँ को परिभाषित करता है, तो वह मेरे पिताजी इस वर्ग में भी सर्वोच्च स्थान पर हैं।"

 "यदि संक्षेप में कहूं कि, प्यार, देखभाल, दयाभाव, और त्याग, माँ की पहचान है, तो मेरे पिताजी उस पहचान पर खरे उतरते हैं, और मेरे पिताजी विश्व की सबसे अच्छी माँ है।"

 "आज मातृ दिवस पर मैं अपने पिताजी को शुभकामनाएं दूंगी और कहूंगी, कि आप संसार के सबसे अच्छे पालक हैं। बहुत गर्व से कहूंगी कि यह जो हमारे विद्यालय के परिसर में माली हैं, मेरे पिता है।"


 "मैं जानती हूं कि मैं आज की लेखन परीक्षा में असफल हो जाऊंगी! क्योंकि मुझे माँ पर लेख लिखना था और मैंने पिता पर लिखा। पर यह बहुत ही छोटी सी कीमत होगी, उस सबकी, जो मेरे पिता ने मेरे लिए किया।  धन्यवाद ।"

आखिरी शब्द पढ़ते-पढ़ते अध्यापिका का गला भर आया था और प्रधानाचार्य के कार्यालय में शांति छा गई थी। इस शांति में केवल गंगादास के सिसकना की आवाज सुनाई दे रही थी। बगीचे में धूप की गर्मी उसकी कमीज़ को गीला ना कर सकी,  पर उस पेपर पर बिटिया के लिखे शब्दों ने उस कमीज को पिता के आंसुओं से गीला कर दिया था और वह केवल हाथ जोड़कर वहां खड़ा था। उसने उस पेपर को अध्यापिका से लिया और अपने हृदय से लगाया और रो पड़ा।


 प्रधानाचार्य ने खड़े होकर उसे एक कुर्सी पर बैठाया और एक गिलास पानी दिया तथा कहा -गंगादास! तुम्हारी बिटिया को इस लेख के लिए पूरे 10 में से 10 नंबर दिए गए हैं। यह लेख मेरे अब तक के पूरे विद्यालय जीवन का सबसे अच्छा मातृ दिवस का लेख है।

 हम कल मातृ दिवस अपने विद्यालय में भव्य तरीके से मना रहे हैं। इस अवसर पर विद्यालय एक बहुत बड़ा कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है। विद्यालय की प्रबंधक कमेटी ने आपको इस कार्यक्रम का मुख्य अतिथि बनाने का निर्णय लिया है।  यह सम्मान होगा उस प्यार, देखभाल, दयाभाव, और त्याग का, जो एक आदमी अपने बच्चे के पालन के लिए कर सकता है।

 "यह सिद्ध करता है कि, आपको एक औरत होना आवश्यक नहीं है एक पालक बनने के लिए। साथ ही यह अनुशंसा करता है उस विश्वास का जो विश्वास आप की बेटी ने आप पर दिखाया है। हमें गर्व है कि संसार का सबसे अच्छा तथा हमारे विद्यालय में  पढ़ने वाली बच्ची का पिता है, जैसा कि आपकी बिटिया ने अपने लेख में लिखा। 


गंगादास! हमें गर्व है कि आप एक माली हैं,और सच्चे अर्थों में माली की तरह है। न केवल विद्यालय के बगीचे के फूलों की देखभाल की, बल्कि अपने इस घर के फूल को भी सदा खुशबूदार बनाकर रखा, जिसकी खुशबू से हमारा विद्यालय महक उठा। 

तो क्या आप हमारे विद्यालय के इस मातृ दिवस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बनेंगे?


रो पड़ा गंगादास और दौड़कर बिटिया की कक्षा के बाहर से आंसू भरी आंखों से निहारता रहा अपने प्यारी बिटिया को।


 संसार की समस्त प्यारी-प्यारी बेटियों के पालकों को समर्पित।


।। मनेन्दु पहारिया।।

 22/09/2022

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