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#24_सितम्बर #आत्मबलिदानी_प्रीतिलता_वादेदार_जी_का_बलिदानदिवस


 युवा क्रांतिकारी प्रीतिलता का जन्म 1911 में गोलपाड़ा (चटगांव, वर्तमान बांग्लादेश) के एक ऐसे परिवार में हुआ था, जहां लड़कियों की शिक्षा को महत्व नहीं दिया जाता था। उसके भाइयों को पढ़ाने के लिए घर में एक शिक्षक प्रतिदिन आते थे। प्रीतिलता भी जिदपूर्वक वहां बैठने लगी। कुछ ही समय में घर वालों के ध्यान में यह आ गया कि प्रीतिलता पढ़ने में अपने भाइयों से अधिक तेज है। तब जाकर उसकी पढ़ाई का विधिवत प्रबन्ध किया गया।


अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार ने उनके मन में स्वाधीनता की आग सुलगा दी। कोलकाता में स्नातक की पढ़ाई करते समय उन्होंने ‘छात्र संघ’ तथा ‘दीपाली संघ’ नामक दो क्रांतिकारी दलों की सदस्यता लेकर तलवार, भाला तथा पिस्तौल चलाना सीखा। स्नातक कशक्षा पूर्ण कर वे चटगांव के नंदन कानन हाई स्कूल में अध्यापक और फिर प्रधानाध्यापक हो गयीं। उन दिनों विद्यालय में प्रार्थना के समय बच्चे ब्रिटिश सम्राट के प्रति निष्ठा की शपथ लेते थे; पर प्रीतिलता उन्हें भारत माता के प्रति निष्ठा की शपथ दिलवाने लगीं।


चटगांव में उनका सम्पर्क क्रांतिवीर मास्टर सूर्यसेन से हुआ। उनके आग्रह पर प्रीतिलता नौकरी छोड़कर ‘इंडियन रिपब्लिक आर्मी’ के महिला विभाग की सैनिक बन गयी। अब वह पूरा समय क्रांतिकारी गतिविधियों में लगाने लगीं। मास्टर सूर्यसेन के आदेश पर कई बार वह वेश बदलकर जेल जाती थीं और वहां बंद क्रांतिकारियों से संदेशों का आदान-प्रदान करती थीं।


जब रामकृष्ण विश्वास को फांसी घोषित हो गयी, तो प्रीतिलता उनकी रिश्तेदार बन कर कई बार जेल में उनसे मिल कर आयीं। 12 जून, 1932 को सावित्री देवी के मकान में पुलिस ने उनके दल को घेर लिया। प्रीतिलता ने साहसपूर्वक गोली चलाते हुए स्वयं को तथा अपने नेता को भी बचा लिया। 14 सितम्बर, 1932 को घलघाट में हुई मुठभेड़ में क्रांतिवीर निर्मल सेन और अपूर्व सेन मारे गये; पर प्रीतिलता और मास्टर सूर्यसेन फिर बच गये।


प्रीतिलता बचाव की अपेक्षा आक्रमण को अधिक अच्छा मानती थीं। एक बार क्रांतिकारियों ने पहारताली के यूरोपियन क्लब पर हमलेे की योजना बनाई। अंग्र्रेज अधिकारी वहां एकत्र होकर खाते, पीते और मौजमस्ती करते हुए भारतीयों के दमन के षड्यन्त्र रचते थे। मास्टर सूर्यसेन ने शैलेश्वर चक्रवर्ती को इस हमले की जिम्मेदारी दी; पर किसी कारणवश यह अभियान हो नहीं सका। इस पर प्रीतिलता ने स्वयं आगे बढ़कर इस काम की जिम्मेदारी ली। 


24 सितम्बर, 1932 की रात में यूरोपियन क्लब में एकत्र हुए अंग्रेज अधिकारी आमोद-प्रमोद में व्यस्त थे। अचानक सैनिक वेशभूषा में आये क्रांतिकारी दल ने वहां हमला बोल दिया। क्रमशः वहां तीन बम फेंके गये। उनके विस्फोट से आतंकित होकर लोग इधर-उधर भागने लगे। जिसे जहां जगह मिली, वह वहीं छिपने लगा। तभी क्रांतिकारी दल ने गोलीवर्षा प्रारम्भ कर दी। अनेक अंग्रेज अधिकारियों तथा क्लब की सुरक्षा टुकड़ी के पास भी शस्त्र थे। इस युद्ध में एक वृद्ध अंग्रेज की तत्काल मृत्यु हो गयी तथा कई बुरी तरह घायल हो गये।


इस अभियान में कई क्रांतिकारी भी घायल हुए। अभियान की नेता प्रीतिलता को सबसे अधिक गोलियां लगी थीं। जब प्रीतिलता ने देखा कि उनका बचना असंभव है तथा उनके कारण क्रांतिकारी दल पर संकट आ सकता है, तो उन्होंने सभी साथियों को लौट जाने का आदेश दिया तथा अपनी जेब में रखी साइनाइड की गोली मुंह में रखकर आत्मोसर्ग के पथ पर चल पड़ीं।

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