देखो यह कैसा शोर हो रहा है! दोनों पति पत्नी उस तरफ दौड़े तो देखा, एक बच्चा नदी की अपार जलधारा में बहा जा रहा है। बच्चे के मां-बाप, सगे संबंधी, चीत्कार कर रहे हैं।
यह दोनों पति-पत्नी कुछ ही दिन पहले भारत से यहां आए थे। ऑक्सफोर्ड में उच्च शिक्षा के सारे प्रबंध करने के बाद,पास के ही इस स्थान पर मन बहलाने आए थे।
ऑक्सफोर्ड से कुछ दूरी पर बह रही इस नदी के आसपास का दृश्य मनोरम था। नदी की तेज जलधार के दोनों ओर मनोरम दृश्य, किसी को भी अपनी और आकर्षित करने के लिए काफी थे।
भीड़ तो वहां अच्छी खासी थी, पर कोई नदी में कूदकर बच्चे को बचाने का प्रयास नहीं कर रहा था। कोई भी इस पुण्य को करते हुए ,अपने को डुबाना नहीं चाहता था। हालांकि बहाव से संघर्ष कर रहे बच्चे को, ऐसा करो, वैसा करो, सुझाव तो प्रायः सभी दे रहे थे। परंतु सहायता कोई नहीं कर रहा था।
सुझाव और सहायता मैं बहुत अंतर है, जिसे भरने के लिए चाहिए, संवेदनशील हृदय तथा शरीर की तत्परता पूर्ण सक्रियता।
युवक ने तुरंत निर्णय लिया। कपड़े खोलकर कूदने को उद्यत हो गया। लोगों ने कहा -अरे!अरे! क्यों नदी में कूदकर अपनी जान देना चाहते हो!
"मैं बच्चे को छटपटाते देखकर पीड़ा अनुभव कर रहा हूं, जो बच्चे को बचा लेने पर शांत होगी, या बचाते हुए मर जाने पर ।"युवक का उत्तर था।
किसी ने व्यंग किया- हीरो बन रहा है!
किसी ने कहा, हिम्मतवाला है!
किसी ने कहा -अरे मैडम! तुम अपने पति को इस मृत्यु की धारा में कूदने से रोकती क्यों नहीं?
इसी बीच वह युवक, शिथिल पड़ चुके बच्चे के करीब छलांग लगा चुका था,और जैसे तैसे बच्चे को धकेल कर किनारे पर ला दिया, जहां लोगों ने उसे पकड़ कर खींच लिया।
युवक भी बाहर आने को था ही कि, पानी का तेज बहाव आया और वह दूर जा पड़ा। इस अप्रत्याशित स्थिति में ऐसा लगा कि वह डूब गया। पत्नी अपलक अपने सर्वस्व की यह दशा निहार रही थी। पर संघर्ष के कौशल ने उसे मौत के मुंह से बाहर खींच लिया।
जन समुदाय ने पूछा- अगर मर जाते तो?
"तो, संवेदना का अर्थ मौत को गले लगाना है! पूछने वाले के स्वर में व्यंग था।
युवक ने कहा- "नहीं, संवेदना का अर्थ है "सम-वेदना" अर्थात बराबर की पीड़ा।"
"दुख दैन्य से ग्रसित व्यक्ति जैसी पीड़ा ही, जब हृदय अनुभव करने लगे, तब समझना चाहिए की संवेदना जगी। इसी अनुभूति का नाम मनुष्यत्व है।"
उसके अधरों पर एक गौरवमई मुस्कान खिल गई । मनुष्यत्व की सहज अनुभूति करने वाले यह भारतीय दंपत्ति थे, प्रसिद्ध क्रांतिकारी "लाला हरदयाल और उनकी सहधर्मिणी सुंदर रानी।"
उन जैसी अनुभूति ही जीवन की सार्थकता है।
।। मनेन्दु पहारिया।।
15/08/2022
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