पंडित दीनानाथ,ठाकुर शमशेर सिंह, सेठ गोपीचंद,और मोची रामबहोर में,ना केवल जिगरी दोस्ती थी, उनके विचार भी समान थे। हर काम,आना -जाना,घूमना-फिरना,सब साथ साथ किया करते थे। सभी लोग उनकी मित्रता की प्रशंसा करते थे। और बुरे लोग उन से डरते भी थे।
एक दिन चारों घूम कर घर वापस आ रहे थे कि,बगीचे में पके आम देखने पर जी ललचा गया।चारों ने बगीचे के मालिक से पूछ कर आम तोड़ लिए, खूब जी भर कर खाए। बगीचा मालिक चारों की दोस्ती के डर से कुछ नहीं बोला, लेकिन उसने मन मैं कुछ तय कर लिया था।
जब चारों मित्र कुछ दूर चले गए, तो बगीचे का मालिक दौड़ता हुआ आया, उसके थैले में कुछ आम थे। उसने हाथ जोड़कर पंडित जी को प्रणाम किया, कहा !आप हमारे मार्गदर्शक हैं,और ठाकुर साहब हमारे रक्षक हैं,सेठ जी हमारे अन्नदाता हैं। कुछ आम आप लोग अपने घर भी ले जाइए। लेकिन आपके साथ यह जो सफाई कर्मचारी है, बहुत हरामखोर है, इसने मुफ्त में आम खाए! इसको जरा भी शर्म नहींआई?साला आप लोगों की बराबरी करता है ।ऐसा कहकर उसने रामबहोर को पीट कर भगा दिया ।
तीनों मित्र कुछ नहीं बोले, तब उसने फिर पंडित जी के पैर छूकर कहा, गुरु जी आपका ही बगीचा है, आप और ठाकुर साहब जब मन में आए तब चले आइएगा, लेकिन यह सूदखोर बनिया! सब को ठगता है।मुफ्त का खाकर आप जैसे लोगों की बराबरी करने चला है। चोर कहीं का!
और उसने सेठ जी को भी जूते लगाए। दोनों मित्र फिर कुछ नहीं बोले।
बनिया रुष्ट होकर चला गया ।तो बगीचा मालिक फिर बोला, पंडित जी! ठहरो मेरे खेत में गन्ने भी लगे हैं थोड़े से घर ले जाइए।लेकिन इस ठाकुर को जो मुफ्तखोर है, बड़ा क्षत्रिय बनता है।आप जैसे विद्वान पंडित की दोस्ती के काबिल नहीं है। लात खाने योग्य है ।और उसने उसको भी पीट कर के भगा दिया।
और अंत में पंडित जी को खूब सूंटते हुए कहा,साले पंडित! जो अपने मित्रों का ना हो सका, वह किसका होगा?क्या तेरे बाप का बगीचा था जो मुफ्त में आम खाए ।
यह कहानी मिथक नहीं है ।हिंदू समाज की इसी तरह दुर्गति हुई है। सब एक-एक कर पिटते रहे, किसी ने एक दूसरे की सहायता नहीं की।यह कहानी आज भी दुहराई जा रही है।अब भी समय है चेतिये!
आप जानते हैं कि वह बगीचे का मालिक कौन था?मुझे बताइये। समझने वाले समझ गए हैं, ना समझे वो अनाड़ी है।। जय जय।।
।। मनेन्दु पहारिया।।
08/09/2022
टिप्पणियाँ