।।025।। बोध कथा। ।। कर्म ही भाग्य पर भारी है।।


  मालव नरेश यशोवर्मा के साथ भ्रमण करते हुए महामंत्री भानुमित्र ने निवेदन किया- महाराज! हूंण सेनापति मिहिरकुल, आंधी तूफान की तरह सर्वनाश करते हुए,मथुरा तक पहुंच गया है । संपूर्ण देश को पदाक्रांत कर दिया है। अब सबकी निगाहें केवल और केवल आपकी और हैं।

  तभी राज ज्योतिषी,भास्कर मुनि ने कहा- इस समय शनि की दृष्टि वक्री है, और राहु द्वारा सीधे चंद्र स्थान को देखे जाने के कारण, मारक स्थिति बनी हुई है,और आप युद्ध की सलाह दे रहे हैं! 

महामंत्री को ज्योतिष के प्रति राजा के अंधविश्वास पर बहुत क्रोध हुआ। 

 तभी एक किसान कंधे पर हल लिए गुजरा।  स्वभाव के अनुसार ज्योतिषी ने किसान से कहा -मित्र तुम्हारे खेत की दिशा में आज दिशाशूल है।

दिशाशूल क्या होता है? 

ज्योतिषी ने दिशाशूल का अर्थ समझाया,तो उसने कहा-मुझे आज तक कोई अपशकुन नहीं हुआ, मैं हमेशा काम पर जाता हूं ।आपके हिसाब से,यदि प्रति सप्ताह दिशाशूल होता है, तो मुझे तो बर्बाद हो जाना चाहिए था!

  जरूर तुम्हारी किस्मत अच्छी है मित्र!जरा अपना हाथ दिखाओ। 

किसान ने ज्योतिषी की ओर दोनों हाथ बढ़ाएं। ज्योतिषी ने कहा-हथेलियां ऊपर की ओर रख मूर्ख! इतना भी नहीं जानता।

किसान ने हंसकर कहा- महाराज! हथेली की रेखाएं वे लोग दिखाते हैं, जो किसी के सामने हाथ फैलाते हैं। मैं मालव हूं,भगवान महाकाल का सेवक। हथेली की रेखाओं की क्या मजाल जो मेरे काम में आड़े आवें। इन कामचोर रेखाओं को दिखाने से क्या लाभ?

स्तंब्ध महाराज को सुनाते हुए महामंत्री बोल उठे- देखा महाराज! अपने महाकाल के अनुचर को, जो जड़ ग्रह पिंडों की कृपा, करुणा, गति, स्थिति, की अपेक्षा नहीं किया करते । देवभूमि आज पुकार रही है।  सिंह कभी नहीं गिनता कि, गीदड़ों की संख्या कितनी है!

  ठीक कहते हो महामंत्री! सम्राट का सम्मोहन टूट चुका था। लेकिन पुनः ज्योतिषी बोले-राम को,युधिस्टर को, राजा नल को भी,शनि ने नहीं छोड़ा, कुछ तो समझो महाराज! 

  महामंत्री ने गरज कर कहा-जिनके नाम तुम ले रहे हो ज्योतिषी! 'राम-ग्रहों के कारण नहीं, निशचर हीन करों महि, की कठोर प्रतिज्ञा के कारण वन गए। नल और  युधिस्टर वन गमन के पीछे जुंए का व्यसन था।' ज्योतिषी निरुत्तर थे ।

  जय महाकाल के घोष के साथ,महाराज सर पर केसरिया पगड़ी बांध, हजारो  अश्व रोहियों के साथ, हूंण सेनापति की आहुति देने के लिए चल पड़े ।और अंततः मिहिरकुल का वध करने के पश्चात, मालव सम्राट ने हूंणों को  भारत से खदेड़ दिया।

  कर्म ने, पुरुषार्थ ने, विजय प्राप्त की । आज फिर वही क्षण है, भरतपुत्रो!जागो,माँ भारती का संकट हमें ही दूर करना है।


।। मनेन्दु पहारिया।। 

07/09/2022

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