श्री अमल कुमार बसु का जन्म म.प्र. के धार नगर में 1926 में हुआ था। उनके पूर्वज बंगाल में 24 परगना जिले के डायमंड हार्बर में जमींदार थे; पर उनके पिताजी वकालत के लिए धार आ गये। यहीं उनकी अधिकांश शिक्षा हुई और वे स्वयंसेवक बने।
मेधावी होने के नाते उन्हें दो बार बिना परीक्षा दिये ही एक कक्षा आगे बढ़ा दिया गया। उन्होंने अंग्रेजी सहित तीन विषयों में एम.ए. किया था। कानून की उपाधि उन्होंने प्रथम श्रेणी में भी प्रथम रहकर प्राप्त की। जबलपुर के मिशनरी कॉलिज में पढ़ते समय संघ के प्रचारक श्री एकनाथ रानाडे से उनकी घनिष्ठता हुई, जो आजीवन बनी रही। उन्हें उच्च शिक्षा के लिए विदेश में पढ़ने का अवसर मिला था; पर इसे ठुकरा कर वे प्रचारक बन गये।
अमल दा ने 1940 में नागपुर से प्रथम वर्ष संघ शिक्षा वर्ग का प्रशिक्षण लिया था। यहीं डा. हेडगेवार ने अपने जीवन का अंतिम भाषण दिया था। इसके बाद अमल दा ने अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य संघ कार्य को ही बना लिया। 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन तथा 1948 के प्रतिबंध काल में वे जेल गये। प्रतिबंध हटने के बाद श्री एकनाथ रानाडे के आग्रह पर श्री गुरुजी ने उन्हें बंगाल भेज दिया। इससे पूर्व वे म.प्र. के जबलपुर में विभाग प्रचारक थे। बंगाल में 1950 में वे सहप्रांत प्रचारक और फिर प्रांत प्रचारक बनाये गये।
1948 के प्रतिबंध काल में संघ की अर्थव्यवस्था बिगड़ गयी थी। अतः प्रचारकों को भी कुछ काम करने को कहा गया। अमल दा बी.एड. और फिर एम.एड. कर न्यू बैरकपुर के बी.टी.कॉलिज में पढ़ाने लगे। आगे चलकर वे यहीं प्राचार्य भी बने। 1961 में वे प्रांत कार्यवाह, 1979 में प्रांत संघचालक तथा 1985 में पूर्व क्षेत्र ‘विद्या भारती’ के अध्यक्ष बनाये गये। वे ‘स्वस्तिका प्रकाशन’ के न्यासी, ‘डा. हेडगेवार स्मारक समिति’ के बंगाल प्रांत के अध्यक्ष तथा 1971 में बनी ‘वास्तुहारा सहायता समिति’ के भी अध्यक्ष थे।
ज्ञान के भंडार अमल दा धीर-गंभीर और कर्म कठोर होते हुए भी भीतर से बहुत कोमल थे। 1964 में एक कार्यकर्ता शिविर में शारीरिक प्रदर्शन के बाद श्री गुरुजी का भाषण प्रारम्भ होते ही तेज वर्षा होने लगी। गुरुजी ने पूछा - क्यों अमल दा, भाषण बंद कर दूं ? अमल दा ने दृढ़ता से मना कर दिया। फिर तो 40 मिनट का भाषण वर्षा में ही हुआ। वर्षा से भोजनालय में सब सामान भीग गया। अतः रात में भोजन नहीं बना; पर सब स्वयंसेवक शांत रहे, चूंकि सबके साथ अमल दा भी भूखे रहे।
1969 में कोलकाता में संघ शिक्षा वर्ग के लिए जुगेर प्रतीक क्लब ने अपने मैदान की स्वीकृति दी थी; पर अंतिम समय में उन्होंने मना कर दिया। क्रोधित होकर अमल दा ने सिर पर अंगोछा बांधा और स्वयंसेवकों को लेकर मैदान की सफाई करने लगे। उनका रौद्र रूप देखकर क्लब वालों ने क्षमा मांगी और मैदान उपलब्ध करा दिया।
1975 के प्रतिबंध काल में वे ‘मीसा’ के अन्तर्गत जेल में रहे। उनकी सजा बढ़ाते समय राज्यपाल की ओर से एक औपचारिक पत्र आया कि आपकी सजा बढ़ाते हुए मुझे ‘प्रसन्नता’ हो रही है। इस पर अमल दा भड़क गये। उन्होंने जवाब दिया, ‘‘मैं स्वतन्त्र देश का नागरिक और एक बी.एड. कॉलिज का अध्यक्ष हूं। जो शिक्षक नयी पीढ़ी को पढ़ाकर देश के निर्माण में सहयोग देते हैं, मैं उन्हें पढ़ाता हूं। मैं अपराधी नहीं हूं, फिर भी आपने मुझे जेल में डाला है और इसकी अवधि बढ़ाते हुए आपको ‘प्रसन्नता’ हो रही है। आपका यह शब्द गलत है।’’ उसके बाद फिर उनके पास ऐसा पत्र नहीं आया।
स्वयं शिक्षक होने के कारण अमल दा ने बंगाल में ‘विद्या भारती’ के काम को बढ़ाने में खूब रुचि ली। अंत समय तक कोलकाता के संघ कार्यालय पर रहते हुए वे संघ विचार के सभी संगठनों के संरक्षक की भूमिका निभाते रहे। 10 सितम्बर, 2014 को 88 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ।
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