।।096।। बोधकथा। 🌺💐 भक्त के बस में है भगवान 💐🌺


एक नगर में दो वृद्ध स्त्रियाँ बिल्कुल पास-पास रहा करती थीं। उन दोनों में बहुत ज़्यादा घनिष्ठता थी। 


उन दोनो का ही संसार में कोई नहीं था इसलिए एक दूसरे का सदा साथ देतीं और अपने सुख-दुःख आपस में बाँट लेती थीं। 


एक स्त्री हिन्दू थी तथा दूसरी जैन धर्म को मानने वाली थी। 


हिन्दू वृद्धा ने अपने घर में लड्डू गोपाल को विराजमान किया हुआ था। 


वह प्रतिदिन बड़े प्रेम से लड्डू गोपाल की सेवा करा करती थी। प्रतिदिन उनको स्नान कराना, धुले वस्त्र पहनाना, दूध व फल आदि भोग अर्पित करना उसका नियम था। 


वह स्त्री लड्डू गोपाल के भोजन का भी विशेष ध्यान रखती थी। सर्दी, गर्मी, बरसात हर मौसम का ध्यान उसको रहता था। 


वह जब भी कभी बाहर जाती लड्डू गोपाल के लिए कोई ना कोई खाने की वस्तु, नए वस्त्र खिलोने आदि अवश्य लाती थी। 


लड्डू गोपाल के प्रति उसके मन में आपार प्रेम और श्रद्धा का भाव था। 


उधर जैन वृद्धा भी अपनी जैन परम्परा के अनुसार भगवान् के प्रति सेवा भाव में लगी रहती थी। 


उन दोनो स्त्रियों के मध्य परस्पर बहुत प्रेम भाव था। दोनो ही एक दूसरे के भक्ति भाव और धर्म की प्रति पूर्ण सम्मान की भावना रखती थी। 


जब किसी को कोई समस्या होती तो दूसरी उसका साथ देती, दोनो ही वृद्धाएँ स्वभाव से भी बहुत सरल और सज्जन थीं। 


भगवान की सेवा के अतिरिक्त उनका जो भी समय शेष होता था वह दोनो एक दूसरे के साथ ही व्यतीत करती थीं। 


एक बार हिन्दू वृद्धा को एक माह के लिए तीर्थ यात्रा का अवसर प्राप्त हुआ.. उसने दूसरी स्त्री से भी साथ चलने का आग्रह किया किन्तु वृद्धावस्था के कारण अधिक ना चल पाने के कारण उस स्त्री ने अपनी विवशता प्रकट कर दी। 


हिन्दु वृद्धा ने कहा कोई बात नहीं मैं जहाँ भी जाऊँगी भगवान् से तुम्हारे लिए प्रार्थना करुँगी.. 


फिर वह बोली मैं तो एक माह के लिए चली जाऊँगी तब तक मेरे पीछे मेरे लड्डू गोपाल का ध्यान रखना। 


उस जैन वृद्धा ने सहर्ष ही उसका यह अनुरोध स्वीकार कर लिया। 


हिन्दू वृद्धा ने उस जैन वृद्धा को लड्डू गोपाल की सेवा के सभी ज़रूरी नियम व आवश्यकताएँ बता दीं। उस जैन वृद्धा ने सहर्ष सब कुछ स्वीकार कर लिया। 


कुछ दिन बाद वह हिन्दू वृद्धा तीर्थ यात्रा के लिए निकल गई। उसके जाने के बाद लड्डू गोपाल की सेवा का कार्य जैन वृद्धा ने अपने हाथ में लिया। 


वह बहुत उत्त्साहित थी कि उसको लड्डू गोपाल की सेवा का अवसर प्राप्त हुआ। 


उस दिन उसने बड़े प्रेम से लड्डू गोपाल की सेवा की। भोजन कराने से लेकर रात्रि में उनके शयन तक के सभी कार्य पूर्ण श्रद्धा के साथ वैसे ही पूर्ण किए जैसे उसको बताए गए थे। 


लड्डू गोपाल के शयन का प्रबन्ध करके वह भी अपने घर शयन के लिए चली गई। 


अगले दिन प्रातः जब वह वृद्धा लड्डू गोपाल की सेवा के लिए हिन्दू स्त्री के घर पहुँची तो उसने सबसे पहले लड्डू गोपाल को स्नान कराने की तैयारी की। 


नियम के अनुरूप जब वह लड्डू गोपाल को स्नान कराने लगी तो उसने देखा की लड्डू गोपाल के पाँव पीछे की और मुड़े हुए हैं। 


उसने पहले कभी लड्डू गोपाल के पाँव नहीं देखे थे, जब भी उनको देखा वस्त्रों में ही देखा था। 


वह नहीं जानती थी कि लड्डू गोपाल के पाँव हैं ही ऐसे, घुटनों के बल बैठे हुए। 


लड्डू गोपाल के पाँव पीछे की ओर देख कर वह सोचने लगी अरे मेरे लड्डू गोपाल को यह क्या हो गया इसके तो पैर मुड़ गए है। 


उसने उस हिन्दू वृद्धा से सुन रखा था की लड्डू गोपाल जीवंत होते हैं। 


उसने मन में विचार किया कि मैं इनके पैरो की मालिश करुँगी हो सकता है इनके पाँव ठीक हो जायें। 


बस फिर क्या था भक्ति भाव में डूबी उस भोली भाली वृद्धा ने लड्डू गोपाल के पैरों की मालिश आरम्भ कर दी। 


उसके बाद वह नियम से प्रतिदिन पांच बार उनके पैरों की मालिश करने लगी। 


उस भोली वृद्धा की भक्ति और प्रेम देख कर ठाकुर जी का हृदय द्रवित हो उठा। भक्त वत्सल भगवान् अपनी करुणावश अपना प्रेम उस वृद्धा पर उड़ेल दिया। 


एक दिन प्रातः उस जैन वृद्धा ने देखा की लड्डू गोपाल के पाँव ठीक हो गए हैं और वह सीधे खड़े हो गए हैं, यह देख कर वह बहुत प्रसन्न हुई और दूसरी स्त्री के आने की प्रतीक्षा करने लगी। 


कुछ दिन पश्चात् दूसरी स्त्री वापस लौटी तो उसने घर आकर सबसे पहले अपने लड्डू गोपाल के दर्शन किये.. 


किन्तु जैसे ही वह लड्डू गोपाल के सम्मुख पहुँची तो देखा कि वह तो अपने पैरों पर सीधे खड़े हैं। 


यह देखकर वह अचंभित रह गई। वह तुरन्त उस दूसरी स्त्री के पास गई और उसको सारी बात बताई और पूछा कि मेरे लड्डू गोपाल कहां गए ? 


यह सुनकर उस जैन स्त्री ने सारी बात बता दी। 


उसकी बात सुनकर वह वृद्ध स्त्री सन्न रह गई और उसको लेकर अपने घर गई। 


वहाँ जाकर उसने देखा तो लड्डू गोपाल मुस्करा रहे थे। वह लड्डू गोपाल के चरणों में गिर पड़ी और बोली - हे गोपाल! आपकी लीला निराली है। 


मैंने इतने वर्षो तक आपकी सेवा की किन्तु आपको नहीं पहचान सकी। 


फिर उस जैन वृद्धा से बोली कि, तू धन्य है! तुझको नहीं मालूम कि हमारे लड्डू गोपाल के पाँव तो ऐसे ही हैं, पीछे की ओर किन्तु तेरी भक्ति और प्रेम ने तो लड्डू गोपाल के पाँव भी सीधे कर दिये। 


उस दिन के बाद उन दोनो स्त्रियों के मध्य प्रेम भाव और अधिक बढ़ गया। दोनों मिलकर लड्डू गोपाल की सेवा करने लगीं। 


वह दोनो स्त्रियां जब तक जीवित रहीं तब तक लड्डू गोपाल की नियमित सेवा करती रहीं..!

*जो प्राप्त है-पर्याप्त है!!*


।। मनेन्दु पहारिया।।

   07/12/2022

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