।।106।। बोध कथा। 🏵💐🌺 दो पैसे की सिद्धि 🌺💐🏵


बिना नाव की सहायता के योगी ने जल पर चलकर नदी को पार किया। उसे अपनी सिद्धि पर बहुत गर्व हुआ और संतोष भी। 


अहंकार से तने हुए उस योगी को एक बूढ़े मछुआरे ने देखा। उसने समीप जाकर साष्टांग प्रणाम करते हुए उनसे पूछा -भगवन! जल पर चलने की सिद्धि आपने कितने समय में प्राप्त की?


 योगी ने अपना गर्वोन्नत मस्तक और भी ऊंचा उठाते हुए कहा- पूरे 20 वर्ष कठोर तपस्या करके मैंने यह सिद्धि प्राप्त की है।


 बूढ़े ने खिन्न होकर कहा- "महाराज! आपका इतना लंबा समय व्यर्थ ही चला गया । जो काम नाँव वाले को दो पैसे देकर पूरा हो सकता था, उसके लिए इतना कष्ट उठाने की क्या जरूरत थी?"


 ईश्वर साधना के मार्ग में सिद्धियां व्यवधान पैदा करती हैं, और जो व्यक्ति सिद्धियों से संतुष्ट होकर उसका सार्वजनिक प्रदर्शन करने लगता है,संभवतः ईश्वर से उसकी दूरी और भी अधिक हो जाती है।


।। मनेन्दु पहारिया।।

  27/12/2022

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