।।107।। बोध कथा। 🏵💐🌺 त्यागा नहीं, पाया 🌺💐🏵


एक धार्मिक मुमुक्षु ने अपनी सारी धन-दौलत लोकोपयोगी कार्यों में लगाते हुए जीवन व्यतीत करना प्रारंभ कर दिया। उनके सदकार्यों की सर्वत्र चर्चा होने लगी। 

जनता के कुछ प्रतिनिधियों ने उस मुमुक्षु के पास उपस्थित होकर निवेदन किया-"आपका त्याग प्रशंसनीय है। आपकी सेवाओं से समाज ऋणी है, हम सब सार्वजनिक रूप से आपका अभिनंदन कर, दानवीर तथा मानवरत्न के अलंकरण से आपको विभूषित करना चाहते हैं। कृपया हम सब की इस प्रार्थना को स्वीकार कीजिए।"


 मुमुक्षु ने मुस्कुराते हुए कहा- "बंधु मैंने कोई त्याग नहीं किया है, वरन लाभ लिया है।  बैंक में रुपए जमा करना त्याग नहीं, वरन ब्याज का लाभ है। ग्राहक को वस्तु देकर दुकानदार किसी प्रकार के त्याग का परिचय नहीं देता, वह तो बदले में उसकी कीमत लेकर लाभ कमाता है। समुद्र के किनारे खड़े हुए व्यक्ति को जब मोती दिखाई दे, तो उन्हें समेट कर कौन झोली में नहीं भरना चाहेगा?  उस समय यदि उसकी झोली में शंख और सीपियां होंगी, तो उन्हें खाली कर मूल्यवान वस्तुएं भरना क्या त्याग की वृत्ति की परिचायक हैं ? उसी प्रकार क्रोध, लोभ, मोह, आदि को छोड़कर, अपने स्वभाव में अहिंसा, परोपकार, और क्षमा, जैसे सद्गुणों को स्थान देना त्याग नहीं, वरन एक प्रकार का लाभ है।"

 मैंने भी तो कोई त्याग नहीं किया है। वासनाओं से छुटकारा पाना कोई त्याग साहस नहीं हुआ।

 और लोग नतमस्तक होकर चले गए ।

।। मनेन्दु पहारिया।।

 31/12/2000

Post a Comment

और नया पुराने