वन विहार के लिए आए हुए राजा का जहां पड़ाव था, उसी के पास एक कुएं पर, एक नेत्रहीन व्यक्ति यात्रियों को कुएं से निकालकर जल पिलाया करता था।
राजा को प्यास लगी। उसने सिपाही को पानी लाने भेजा।
सिपाही ने जाकर कहा- "ओ रे अंधे! एक लोटा जल शीघ्रता से भर दे।"
सूरदास ने कहा -"जा भाग जा! तुझ जैसे मूर्ख नौकर को पानी नहीं देता।"
सिपाही खींझकर वापस लौट गया।
अब प्रधान सेनापति स्वयं वहां पहुंचे और कहा- "अंधे भाई! एक लोटा जल शीघ्रता से दे दो।"
व्यक्ति ने उत्तर दिया- "कपटी मीठा बोलता है, लगता है पहले वाले का सरदार है।"
मेरे पास तेरे लिए जल नहीं।
दोनों ने राजा से शिकायत की- महाराज!बुड्ढा पानी नहीं देता।
राजा उन दोनों को साथ लेकर स्वयं वहां पहुंचा और नमस्कार कर कहा- "बाबाजी!प्यास से गला सूख रहा है, थोड़ा जल् दो, तो प्यास बुझाऊं!"
अंधे ने कहा- महाराज! बैठिए अभी जल पिलाता हूं।"
राजा ने पूछा- "महात्मन! आपने चक्षुहीन होकर भी, यह कैसे जाना कि एक नौकर, दूसरा सरदार, और मैं राजा हूं?"
बुड्ढे ने हंसकर कहा- "महाराज! व्यक्ति का वजन वाणी से पता चल जाता है, उसके लिए आंखों की कोई आवश्यकता नहीं है।"
आज के परिवेश में राजनीतिक, सामाजिक,वाणी स्तर निरंतर गिरता जा रहा है, जो चिंतनीय है। काश! हम सभी वाणी का मूल्य समझ पाते।
।। मनेन्दु पहारिया।।
31🌺10🌺 2022
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