पंजाब भारत की खड्गधारी भुजा है। पंजाबियों ने सर्वत्र अपनी योग्यता और पौरुष का लोहा मनवाया है; पर एक समय ऐसा भी आया, जब कुछ सिख समूह अलग खालिस्तान का राग गाने लगे। इस माहौल को संभालने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ‘राष्ट्रीय सिख संगत’ का गठन कर इसकी जिम्मेदारी वरिष्ठ प्रचारक श्री चिरंजीव सिंह को दी। चिरंजीव जी का जन्म एक अक्तूबर, 1930 (आश्विन शु. 9) को पटियाला में एक किसान श्री हरकरण दास (तरलोचन सिंह) तथा श्रीमती द्वारकी देवी (जोगेन्दर कौर) के घर में हुआ। मां सरकारी विद्यालय में पढ़ाती थीं। उनसे पहले दो भाई और भी थे; पर वे बचे नहीं। मंदिर और गुरुद्वारों में पूजा के बाद जन्मे इस बालक का नाम मां ने चिरंजीव रखा। 1952 में उन्होंने राजकीय विद्यालय, पटियाला से बी.ए. किया। वे बचपन से ही सब धर्म और पंथों के संतों के पास बैठते थे। 1944 में कक्षा सात में पढ़ते समय वे अपने मित्र रवि के साथ पहली बार शाखा गये। वहां के खेल, अनुशासन, प्रार्थना और नाम के साथ ‘जी’ लगाने से वे बहुत प्रभावित हुए। शाखा में वे अकेले सिख थे। 1946 में वे प्राथमिक वर्ग और फिर 1947, 50 और 52 में तीनों वर्ष के संघ शिक्षा वर
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