लेख
" 7 "S " करे जीवन को सार्थक।
लेखिका निवेदिता मुकुल सक्सेना झाबुआ
मेने एक चाइल्ड ऐक्टिविस्ट के रुप मे कार्य करते हुये ये मेहसूस किया की बढता डिजिटलीकरण व बढते भोतिक संसाधन पारिवरिक रिश्तो की भावनाओं की ड़ोर की पकड को कमजोर कर रहे क्युकी माता पिता दोनो व्यस्त रहते हैं जिससे वह अपने बच्चो को वह समय नही दे पा रहे जिनकी उन्हे बेह्द आवश्यक्ता हैं खासकर विद्यार्थी वर्ग आज कयी जगह इन्ही कारणो से भटक कर एडिक्शन की गिरफ्त मे आता जा रहा। ओर एक् गुमराह सी अन्धकार गली मे बढ रहा जीसे रोकना , हमारी पीढी को बचाने के लिये एक बढा सम्वेदनशील मुद्दा बनता जा रहा है।
2019 फरवरी तक एक हल्की सी हवा चली जिसने बताया जीवन की धारा एक अलग रुख लेने वाली हैं। मार्च मे उस हवा ने तुफान का रुप लेकर सबकी जीन्दगी के खिडकी दरवाजे बंद कर दिए। उन दरवाजों की सन से भी कैसे कहा से वह विषाणु ( वायरस) अन्दर दस्तक दे गया यह यक्ष प्रश्न है। कई घरो मे सुना पन छा गया कई जिंदगिया अस्त व्यस्त हो गयी आर्थिक,समाजिक राजनैतिक या कार्यक्षेत्र सभी परिप्रेक्ष्य बदल गये।
बहरहाल एक असमंजस सा वातावरण सब जगह बन गया। तो कयी जगह सकारात्म्क पहलू भी जाहिर हुये जो रिश्तो को मजबुत भी बनाता गया , जहां दुरिया थी वही करीबियो मे बदल गयी। शहरो मे भोतिकवाद के चलते व्यक्ति अपनी दिनचर्या को प्राकृतिक रुप से नही निभा पा रहा। उस पर कोरोना कहर ने शारिरीक क्षमता को भी जीर्ण क्षीण किया हालाकि बढता तनाव , व्यसन ,खान पान की अनियमितता ने कई व्याधियाँ उत्पन्न कर दी।
उम्र के एक पड़ाव पर आज के समय मे सेहत के लिये सतर्क होना आवश्यक है। हालाकि विचारणीय है की वर्तमान मे इसकी व्य्ख्या की गयी ।क्युकी बढती उम्र मे कयी होर्मोनिकल बदलाव आते है चाहे पुरुष हो या स्त्री। वैसे मैडिकल साइंस भी यही कहता है की तीस की उम्र से ही व्यक्ति को अपने प्रति जागरुक हो जाना चाहिये फिर उस पर "कोरोना काल" । इस काल मे भी या तो व्यक्ति सेहत को लेकर अती जागरुक हैं या बिल्कुल ही लापरवाह।
मार्च मे पुर्ण भारत मे लॉक डाउन के चलते लाखो लोगो ने कयी काढे का सेवन किया,योगा को नियमित दिनचर्या मे लागू किया जिसके कारण पर्यावरण सुधार की तरह लोगो की सेहत मे भी सुधार देखने को मिला। लॉक डाउन एक ऐसा समय भी था जिसने परिवार के साथ साथ स्वयं को भी आत्मसात करने का मोका दिया या यूं कहे की खुद से खुद की पहचान बनाने में सर्थक रह । बहरहाल, हाल ही मे हमारी संस्था (स्कूल) मे हुई एक कर्मचारियो की बैठक में संस्था प्रमुख प्राचार्य इम्बानाथन ने अपने ने अपने कर्मचारीयो को हल्के फुल्के वातावरण को विकसित करते हुये व उनका उत्साहवर्धन के लिये सेवन "एस"" की जीवन मे विशेषता का मह्त्व बताया । जो कही न कही आज के कोरोना त्रासदी मे सरल सहज जीवन की ओर अग्रसर करता नजर आया । ये सेवन एस (7 s) पोषण,आध्यात्म,चिकित्सा परिवार व समाज को ओर अधिक विकसित करने मे सहायक होता हैं। या कहे व्यक्ति का समग्र विकास करने में सहायक सिद्ध होते है।
कहते है , जीवन मे दो चीजे सफेद जहर का काम करती हैं ।
* नमक (साल्ट) - जो कम या ज्यादा होने पर ह्रदय सम्बंधित बिमारी हाई ब्लड प्रेशर या लो ब्लड प्रेशर जैसी व्याधियाँ उत्पन्न कर ह्रदय के साथ किडनी व अन्य अंगो पर भी हानी पहुचाती है। ये सत्य हैं , नमक याने सोडियम क्लोराइड रक्त परिवहन को सुचारु बनाता है।
साल्ट मानव शरीर की मेटाबोलिक ऐक्टिविटी के लिये अती सक्रियता के साथ ही तंत्रिका तंत्र द्वारा शरीर की सभी चलित क्रियाओ को नियंत्रित करता हैं।
* शर्करा (शूगर) - जरुरत से ज्यादा मीठा या कम मीठा नमक की तरह शरीर मे शक्कर की बिमारी ( डाईब्टीज) उत्प्न्ं करती हैं। साथ ही लौ बी पी व डिहाईड्रेशन मे भी नमक व शक्कर का काफी मह्त्व है।
*स्ट्रेस ( तनाव)- आज की भौतिकवादी संसाधनों के विकास के दौर मे फिजिकल लेबर कम हुआ वही डिजिटल तकनीक का विकास जिसमे सम्वेदांग आंख - कान की भुमिका बढ़ती जा रही हैं , जिसके कारण स्क्रीन टाईम मे वृद्धि के साथ आँखो तनाव बढता जा रहा व नन्हे नन्हे को भी चशमा लग रहा। साथ ही कोरोना काल ऑन लाइन कार्यो की बढती संख्या मानसिक व शारिरीक दोनो पर हानिकारक प्रभाव डाल रही है।
* स्लीपिंग (सोना)- डिजिटलीकरण के बढते चरणो से तनाव के कारण नीन्द का दैनीक मे छ से साथ घन्टे अनिवार्यत होना आवश्यक है। एक अच्छी नींद से शरीर मे चुस्ती फुर्ती बनी रह्ती हैं व मेटाबोलिक ऐक्टिविटि मजबुत करती हैं। नींद का समय पर्याप्त होने से व्यक्ति खुद भी रिलैक्स मेहसूस करता साथ ही वातावरण मे हल्कापन आता जायेगा ।
*पसीना (स्वेट)- जब शरीर थकेगा नही तो नींद आयेगी केसे । एक किसान या श्रमिक वर्ग को कभी नींद की गोली नही खानी पड़ती क्युकी अथक श्रम उन्हे ये भी सोचने पर मजबुर नही करता की जमीन पर सोना या डनलप के गद्दे पर। वैसे भी श्रम का पसीना रोगो से दुरी बनाता है ओर रक्त परिसंचरण भी सुचारु बना देता हैं।
* जीरो स्मोक - (एडिक्शन -स्मोकिंग, ड्रिंकींग) किशोर व युवा वर्ग का एक बहुत बढा हिस्सा आज इस मार्ग पर चल रहा जो उनके शरीर के साथ उनके भविष्य को भी अंधकारमय बना रहा है। विधि के विरोध की बच्चो व किशोरवय की श्रंखला भी इन्ही कारणो से बढती जा रही।
*स्माइल-
एक मुस्कुरात चेहरा स्वयं के साथ कयी लोगो मे सार्थक उर्जा का निर्माण कर देता हैं। एक क्लासरुम मे शिक्षक की मुस्कुराहट से विद्यार्थी एक सरल सहज माहौल पाता हैं।
अब बात ये भी जरुर है की कुण्ठाग्रस्त मुस्कान या फिर दुखते दिल के बाद भी मुस्कुराना एक अलग बात है।
-जिम्मेदारी हमारी-
सेवन S हमारे जीवन के साथ कोरोना काल को भी आसानी से पार लगा सकते है क्युकी समय अभी सतर्कता व सावधानी का है। जिसमे नियमों का पलान हम स्वयं के लिये कर रहे। बिल्कुल वैसे ही जैसे एक संस्था प्रमुख अपने कर्मचरियो के प्रति जो स्नेह व सहानूभूति रखता हैं वही जीवन मे साल्ट व शुगर के साथ स्माइल देते हुये प्रगतिपथ पर अग्रसर करते हुये बेहतर परिणाम देता हैं।