।।089।। बोधकथा। 🌺💐🏵 *मैं का भ्रम* 🏵💐🌺

*एक बार कागज का एक टुकड़ा हवा के वेग से उड़ा और पर्वत के शिखर पर जा पहुँचा...पर्वत ने उसका आत्मीय स्वागत किया और कहा भाई...* 

*यहाँ कैसे पधारे...? कागज ने कहा-अपने दम पर...जैसे ही कागज ने अकड़ कर कहा अपने दम पर और तभी हवा का एक दूसरा झोंका आया और कागज को उड़ा ले गया*


*अगले ही पल वह कागज नाली में गिरकर गल-सड़ गया...जो दशा एक कागज की है वही दशा हमारी है*

*पुण्य की अनुकूल वायु का वेग आता है तो हमें शिखर पर पहुँचा देता है और पाप का झोंका आता है तो रसातल पर पहुँचा देता है...*


*किसका मान...? किसका गुमान...? सन्त कहते हैं कि जीवन की सच्चाई को समझो संसार के सारे संयोग हमारे अधीन नहीं हैं.*

*कर्म के अधीन हैं और कर्म कब कैसी करवट बदल ले...कोई भरोसा नहीं इसलिए कर्मों के अधीन परिस्थितियों का कैसा गुमान* 


*बीज की यात्रा वृक्ष तक है.* 

 *नदी की यात्रा सागर तक है* 

 *और*


*मनुष्य की यात्रा परमात्मा तक*


 *संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है* 

 *हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं*

 *इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि* 

*मै न होता तो क्या होता*


।। मनेन्दु पहारिया।।

   18/11/2022

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