*एक बार कागज का एक टुकड़ा हवा के वेग से उड़ा और पर्वत के शिखर पर जा पहुँचा...पर्वत ने उसका आत्मीय स्वागत किया और कहा भाई...*
*यहाँ कैसे पधारे...? कागज ने कहा-अपने दम पर...जैसे ही कागज ने अकड़ कर कहा अपने दम पर और तभी हवा का एक दूसरा झोंका आया और कागज को उड़ा ले गया*
*अगले ही पल वह कागज नाली में गिरकर गल-सड़ गया...जो दशा एक कागज की है वही दशा हमारी है*
*पुण्य की अनुकूल वायु का वेग आता है तो हमें शिखर पर पहुँचा देता है और पाप का झोंका आता है तो रसातल पर पहुँचा देता है...*
*किसका मान...? किसका गुमान...? सन्त कहते हैं कि जीवन की सच्चाई को समझो संसार के सारे संयोग हमारे अधीन नहीं हैं.*
*कर्म के अधीन हैं और कर्म कब कैसी करवट बदल ले...कोई भरोसा नहीं इसलिए कर्मों के अधीन परिस्थितियों का कैसा गुमान*
*बीज की यात्रा वृक्ष तक है.*
*नदी की यात्रा सागर तक है*
*और*
*मनुष्य की यात्रा परमात्मा तक*
*संसार में जो कुछ भी हो रहा है वह सब ईश्वरीय विधान है*
*हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं*
*इसीलिये कभी भी ये भ्रम न पालें कि*
*मै न होता तो क्या होता*
।। मनेन्दु पहारिया।।
18/11/2022