सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

#29 अगस्त विशेष#बाल उपवन के सुमन द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी की पुण्यतिथि

अच्छे और कालजयी साहित्य की रचना एक कठिन कार्य है; पर इससे भी कठिन है, बाल साहित्य का सृजन। इसके लिए स्वयं बच्चों जैसा मन और मस्तिष्क बनाना होता है। श्री द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी ऐसे ही एक साहित्यकार थे, जिनके लिखे गीत एक समय हर बच्चे की जिह्ना पर रहते थे।

श्री माहेश्वरी का जन्म 1 दिसम्बर, 1916 को आगरा (उ.प्र.) के रौहता गाँव में हुआ था। बाल्यकाल से ही वे अत्यन्त मेधावी थे। अतः पढ़ने में सदा आगे ही रहते थे; पर बच्चों के लिए लिखे जाने वाले गद्य और पद्य साहित्य में कठिन शब्दों और भावों को देखकर उन्हें बहुत पीड़ा होती थी। इस कारण बच्चे उन गीतों को याद नहीं कर पाते थे। उनका मत था कि यदि बच्चों को अच्छे और सरल भावपूर्ण गीत दिये जायें, तो वे गन्दे फिल्मी गीत नहीं गायेंगे। अतः उन्होंने स्वयं ही इस क्षेत्र में उतरकर श्रेष्ठ साहित्य के सृजन को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया।

उन्हें पढ़ने और पढ़ाने का बड़ा चाव था। पढ़ने के लिए वे इंग्लैण्ड भी गये; पर आजीविका के लिए उन्होंने भारत में शिक्षा क्षेत्र को चुना। अनेक महत्वपूर्ण पदों पर काम करते हुए वे शिक्षा निदेशक और निदेशक साक्षरता निकेतन जैसे पदों पर पहुँचे। उनके कई कालजयी गीत आज भी हिन्दी के पाठ्यक्रम में हैं और बच्चे उन्हें बड़ी रुचि से पढ़ते हैं। 

उनके एक लोकप्रिय गीत ‘हम सब सुमन एक उपवन के’ से बाल समीक्षक कृष्ण विनायक फड़के बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने अपनी वसीयत में ही लिख दिया कि उनकी शवयात्रा में ‘राम नाम सत्य है’ के बदले बच्चे मिलकर यह गीत गायें, तो उनकी आत्मा को बहुत शान्ति मिलेगी।

उत्तर प्रदेश के सूचना विभाग ने अपने प्रचार पटों में इस गीत को लिखवाया और उर्दू में भी ‘हम सब फूल एक गुलशन के’ पुस्तक प्रकाशित की। श्री माहेश्वरी ने बच्चों के लिए 30 से भी अधिक पुस्तकें लिखीं। साक्षरता विभाग में काम करते समय उन्होंने नवसाक्षरों के लिए भी पाँच पुस्तकें लिखीं। इसके अतिरिक्त भी उन्होंने कई काव्य संग्रह और खण्ड काव्यों की रचना की।

उन दिनों बड़े लोगों के लिए देश के हर भाग में कवि सम्मेलन होते थे। यह देखकर माहेश्वरी जी ने बाल कवि सम्मेलन प्रारम्भ कराये। उत्तर प्रदेश में शिक्षा सचिव रहते हुए उन्होंने कई कवियों के जीवन पर वृत्त चित्र बनवाए। इनमें सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ पर बनवाया हुआ वृत्त चित्र अविस्मरणीय है। 

उन्हें साहित्य सृजन के लिए देश के सभी भागों से अनेक मान-सम्मान मिले; पर जब उनके गीतों को बच्चे सामूहिक रूप से या नाट्य रूपान्तर कर गाते थे, तो वे उसे अपना सबसे बड़ा सम्मान मानते थे। माहेश्वरी जी जहाँ वरिष्ठ कवियों का सम्मान करते थे, वहीं नये साहित्यकारों को भी भरपूर स्नेह देते थे। आगरा के केन्द्रीय हिन्दी संस्थान को वे एक तीर्थ मानते थे। इसमें जो विदेशी या भारत के अहिन्दीभाषी प्रान्तों के छात्र आते थे, उनके साथ माहेश्वरी जी स्वयं बड़ी रुचि से काम करते थे। 

हम सब सुमन एक उपवन के; वीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो; जिसने सूरज चाँद बनाया; इतने ऊँचे उठो कि जितना उठा गगन है...जैसे अमर गीतों के लेखक श्री द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी का 29 अगस्त, 1998 को देहावसान हुआ। उनकी आत्मकथा ‘सीधी राह चलता रहा’ उनके जीवन का दर्पण है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Global Impact Of Urbanization Threatening World's Biodiversity And Natural Resources

“As a species we have lived in wild nature for hundreds of thousands of years, and now suddenly most of us live in cities—the ultimate escape from nature,” says Peter Kareiva, chief scientist at The Nature Conservancy and co-author of the report. “If we do not learn to build, expand and design our cities with a respect for nature, we will have no nature left anywhere.” The study, “The implications of current and future urbanization for global protected areas and biodiversity conservation,” was published in the current issue of Biological Conservation and is the first-ever global analysis of how urbanization will affect rare species, natural resources and protected areas in proximity to cities. In 2007, the United Nations revealed that at least 50 percent of the world’s population is living in cities. By 2030, that number will jump to 60 percent, with nearly 2 billion new city residents, many migrating from rural areas. According to the report, humans are building the equivalent of a

।।113।।बोधकथा। (श्रीराम नवमी पर) ...........!! *श्रीराम: शरण मम*।। ........... ।।श्रीरामकिंकर वचनामृत।।

 °°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°     *देहाभिमान रूपी शरीर ही समुद्र है।*      *जब शरीर का समुद्र पार करें, तब*          *तो भगवान्‌ की शरण में जायँँ,*       *नहीं तो यह शरीर ही ऐसा केन्द्र है,*    *जो भगवान्‌ के पास जाने से रोकता है।*    °" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "" "° कृपया मेरे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब अवश्य करें। https://youtube.com/@janpathdarshannews      अपने आपको केवल शरीर मान करके शरीर के धर्म का ही पालन करना, यह तो अपूर्णता है। विभीषणजी के सामने यह समस्या है । इसका बड़ा व्यंग्यात्मक संकेत उस समय आता है, जब भगवान्‌ समुद्र के इस पार अपनी बानर सेना के साथ विराजमान हैं, रावण के द्वारा चरण प्रहार से अपमानित होकर वे भगवान्‌ की शरण में तो आ गये, पर अभी भी पूर्व संस्कारों से मुक्त न हो पाने के कारण उन्होंने संयोगवश अपना परिचय दशानन के भाई के रुप में दिया , विभीषण जी के इसी भूल को यदि सुग्रीव चाहते

।।112।। बोध कथा। 🌺💐 क्रोध पर करुणा की विजय 💐🌺

जुए में हारने पर शर्त के अनुसार पांडवों ने  12 वर्ष का वनवास तथा 1 वर्ष का अज्ञातवास पूरा किया। किंतु कौरवों ने उनका राज वापस करना तो दूर 5 गांव देना भी स्वीकार नहीं किया।  कृपया मेरे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब अवश्य करें। https://youtube.com/@janpathdarshannews युद्ध ना हो इसलिए भगवान श्री कृष्ण शांति हेतु संधि प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर जाना चाहते थे, पर द्रोपदी ने विरोध किया -'केशव!मेरे यह केस दु:शासन के रक्त से सिंचित होने पर ही बधेंगे। यदि मेरे पति सक्षम नहीं है, तो मेरे अपमान का प्रतिशोध अभिमन्यु सहित मेरे 5 महाबली पुत्र लेंगे। संधि तथा धर्म की बातें अब सहन नहीं होती कहते-कहते द्रोपदी फूट-फूट कर रोने लगी।"  श्री कृष्ण ने गंभीर स्वर में कहा- कृष्णे वही होगा जो तुम चाहती हो, मेरी बात मिथ्या नहीं होगी।  कृष्ण शांति दूत बनकर हस्तिनापुर पहुंचे परंतु संधि वार्ता निष्फल रही। युद्ध अनिवार्य हो गया। और महाभारत युद्ध हुआ।  युद्ध के अंतिम 18 वे दिन, भीमसेन ने गदा प्रहार से दुर्योधन की जंघा तोड़ दी। इस पर भी भीमसेन का क्रोध शांत नहीं हुआ और वे उसे कपटी कहकर बार-बार उसका सिर अपने पैर स