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।।012।। बोध कथा। 🌺 नास्तिक से आस्तिक कैसे बना! 🌺

मुंबई के करोड़पति सेठ धन गोपाल तन्ना। उनके माता पिता धार्मिक वैष्णव और पत्नी भी आस्तिक और परम श्रद्धालु थी, परंतु कॉलेज की शिक्षा के प्रभाव से सेठ धन गोपाल नास्तिक थे,और धर्म तथा ईश्वर को ढकोसला मानते थे। उनका विश्वास था कि पुरुषार्थ से सब हो सकता है। 

नास्तिक होते हुए किसी प्रकार का अवैधानिक कर्म भी वे नहीं करते थे। 

सेठानी के आग्रह पर एक दिन एक साधु घर पर पधारे। सभ्यता के नाते धन गोपाल जी ने आदर दिया,  पूछा गुरुजी कैसे हैं?

महात्मा जी ने उत्तर दिया- भगवान की दया है बेटा। 

सेठ ने का भगवान होते हैं? मुझे कभी मिले नहीं,अन्यथा में कुछ बातें करता।

 महात्मा जी ने कहा- बेटा भगवान दयालु है, उसकी कृपा सब के ऊपर होती है,यदि तुम्हारी भावना होगी, तो अवश्य मिलेंगे। वह तो सर्वत्र कई रूपों में विद्यमान है। 

तो क्या भगवान बहुरूपिया है?सेठ बोले।

बेटा तुझे तो हंसी सूझती है, पर मेरी बात सुन। भगवान तीन रूप में दर्शन देते हैं-सर्जक, पोषक,और संहारक। अर्थात ब्रह्मा, विष्णु, और रुद्र, यह तीन उनके रूप हैं। जो उनको सर्जन और पोषक रूप में देखने को तैयार नहीं होते, उनको वे संहारक के रूप में ही दर्शन देते हैं। दयालु परमात्मा सर्वत्र व्याप्त है,यदि तुझको नहीं दिखाई देते, तो उनका क्या दोष! आज तो नहीं मानता,पर जब संहारक रूप में दर्शन देंगे, तो  मुझे याद करेगा!

 कुछ दिनों पश्चात महात्मा चले गये। 

एक आवश्यक कार्य से सेठ को दिल्ली जाना था। संयोग से उस दिन अमावस्या थी। सेठानी ने मना किया, किंतु सेठ ने हँसी में उड़ा दिया और कहा- अमावस्या हो या और कोई तिथि, सब ढकोसला है। 

वे दिल्ली के लिए फ्रंटियर मेल से रवाना हुए।

प्रथम श्रेणी में सीट पर पहुंचते ही आराम से सो गए। नींद लगी, स्वप्न देखने लगे। स्वप्न में देखा, भगवान का दरबार लगा है। चित्रगुप्त बैठे हैं। चित्रगुप्त ने पुकारा-धन गोपाल राम, गोपाल तन्ना!

 देवदूत ने सेठ की ओर इशारा किया।

इसका इतिहास क्या है भगवान ने पूछा?

 महाराज! इसके खाते में कोई सत्कर्म नहीं है।

मैंने सत्कर्म नहीं किया, तो कोई दुष्कर्म भी नहीं किया, केवल आप के अस्तित्व से इनकार किया था। सेठ बीच में बोला। 

भगवान विचार में पड़ गए, इसे कहां जन्म दिया जाए? वे बोले, चित्रगुप्त! इसको कोरा ही जन्म दे दो। अर्थात केवल देह धारण करके पैसा ही पैदा करता रहे, भोजन, पानी, नींद, आराम, की इसको जरूरत ही नहीं रहे। इसके जीवन में आनंद, उल्लास भी ना हो। 

 पर महाराज यह खाएगा नहीं, पिएगा नहीं, केवल काम ही करता रहेगा, तो इसकी मृत्यु कैसे होगी? चित्रगुप्त ने पूछा ।

इसकी मृत्यु भी ऐसी ही शुष्क रीति से होगी। एक रेल यात्रा में, जंगल के बीच, दुर्घटना से इसकी मृत्यु हो जाएगी। 

स्वप्न मैं यह दृश्य देख सेठ बड़ा भयभीत हुआ। भगवान की अंतिम बात सुनकर तो वह कांपने लगा। नींद टूट गई।  देखा- गाड़ी धड़ धडा़ती हुई एक स्टेशन पर रुकी। खिड़की से बाहर देखा, तो बड़ौदा स्टेशन था। 

आधी रात के समय ऐसा सपना आया, यह सोच वह हंसने लगा। कहा-मन की शंका भी कैसे होती है। 

खिड़की बंद कर पुनः खर्राटे लेने लगा, कि एक घनघोर शब्द से उसकी निद्रा टूटी। लोगों के रोने चिल्लाने की आवाज के साथ ही, अपने ऊपर टूट टूट कर गिरती हुई सीट, सामान,  उसने अनुभव किए। हाथ, पैर, पसलियों, में कुछ घुसा हुआ जान पड़ा। पैर भी तखते के नीचे दबे थे, हाथ खून से तरबतर था। 


सेठ ने समझ लिया जरूर मृत्यु काल आ गया है, अतः परमात्मा को अभी याद ना किया जाए, तो कब किया जाए! उसके मुंह से निकला-" ईश्वर! सचमुच आपने संहारक के रूप में दर्शन दिया है।" और वह बेहोश हो गया। 

फ्रंटियर मेल का इंजन सहित कई बोगियां टूट फूट गई थी। घायलों को अस्पताल भेजा। जो पहचान में आया,उनके परिजनों को बुलवाया गया। जिनकी पहचान ना हो सके, उनकी अंत्येष्टि कर दी गई । 

बेहोशी में धन गोपाल को फिर भगवान का दरबार दिखा।

 चित्रगुप्त ने रोजनामचा उठाकर कहा- "भगवान! यह धन गोपाल सारा जीवन केवल पैसा कमा कर बिना कोई सत्कर्म या दुष्कर्म किए हाजिर हुआ है। अमावस्या के दिन रेल दुर्घटना में इसकी मृत्यु हुई है।"

क्यों धन गोपाल! तुमको कुछ कहना है?

"प्रभु! मैंने आपके संहारक रूप को देखा, अब मुझे दयामय रूप के दर्शन दीजिए, जिससे मेरे मन को शांति मिले। प्रभु! मेरे अपराधों को क्षमा करो।"

"तेरी संपत्ति का तू स्वामी नहीं, उसका व्यवस्थापक मात्र है। तू कल्याण के लिए उसका उपयोग करे,  तो तुझे मेरे दयालु रूप के भी दर्शन होंगे।"

अवश्य प्रभु! संपत्ति का मैं जगत के हितार्थ ही उपयोग करूंगा। सेठ ने रोते हुए कहा। 

इसके पश्चात वह दृश्य धुंधला पड़ गया और दूसरा दृश्य दिखलाई पड़ा। उसके आसपास दूधिया वस्त्र पहने देवदूत और देवियाँ फिर रहे थे, बीच में आपस में बातें भी कर रहे थे।

 'समलाया के आगे दुर्घटना भयंकर हुई है!'

 हां,इसमें बहुत से मनुष्य मर गये हैं,  मरने वालों में मुंबई का एक करोड़पति सेठ धन गोपाल राम गोपाल तन्ना भी था, आज ही अखबार में मैंने देखा है, एक ने कहा। 

यह सुनकर सेठ का दिल बैठने लगा। वह समझने लगा कि मैं जरूर मर गया हूं और भगवान के सहारे स्वर्ग के किसी अस्पताल में पड़ा हूं। पास ही मुंबई का अखबार पढ़ा था, देखा उसमें उसके मरने की खबर और फोटो छपी थी। 

उसका हृदय भर आया। उसने उन पुरुषों में से एक से पूछा- देव! मैं कहां हूं ? क्या भगवान के घर? 

उत्तर मिला भाई तुम अस्पताल में हो, ईश्वर की कृपा है।

 भगवान! मुझे क्षमा करो धन गोपाल ने कहा।

 डॉक्टर ने कहा- भगवान तो दयालु है भाई! वह सब अच्छा ही करेगा।

 डॉक्टर ने उसके सिर पर हाथ फेरा और कहा- तुम को जल्दी ही आराम हो जाएगा।

 सेठ ने संतोष से आंखें बंद कर ली, उसके मन का परिताप कम हो गया। वह बड़बडा़ने लगा, "प्रभु तू दयालु है।"

निश्चित मन से प्रगाढ़ निद्रा में भी वह प्रभु के रूप के दर्शन कर रहा हो ऐसा उसकी मुख की मुस्कुराहट से जान पड़ता था। 

लगभग 10 दिन में उसे आराम हो गया। घर आकर सबसे पहले सेठानी से नास्तिकता के लिए क्षमा मांगी और फिर जगत के हितार्थ अपनी संपत्ति को खर्च करने का विचार प्रकट किया। फिर उसने टाइम्स ऑफ इंडिया की पुरानी कापिया निकाल कर देखीं,  तो ज्ञात हुआ कि उसमें उसके मरने की खबर अवश्य छपी थी, पर दो दिन बाद उसका खंडन भी छपा था।  मदन गोपाल तन्ना नाम का एक दूसरा व्यापारी मर गया था और दोनों नामों में कुछ समानता होने से ऐसी गड़बड़ी हो गई थी।

 इस अनुभव के बाद धन गोपाल सेठ परम आस्तिक बन गया। जो मिलता है,उससे आप बीती सब कथा सुनाता है। जब से महात्मा से भेंट हुई, तब से अंत तक की घटनाएं कह देता है।

 "उसके समस्त विवरण का सार यही होता है कि मैं आस्तिक कैसे बना।"


।। मनेन्दु पहारिया।।

  27/08/2022

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