दुनियादारी की बातों से परेशान होकर कुछ युवकों के मन में क्षणिक वैराग्य जागा और वे घर छोड़ जंगल को निकल चले।
चलते चलते बातों का क्रम चल पड़ा। एक ने पूछा -अच्छा भाई !यह बताओ कि जब हम तपस्या करेंगे और उससे प्रसन्न होकर भगवान आएंगे,तो हम क्या वरदान मांगेंगे?
दूसरा बोला "मैं तो भर पेट अन्न मांगूंगा। भूखे पेट कौन जीवित रह पाएगा?"
तीसरा बोला "मैं तो अपार बल मांगूंगा। शक्ति हो तो कोई भी राह खुल जाती है।"
चौथा बोला "मैं तो बुद्धि मांगूंगा,सुना है बुद्धि धनबल, जनबल से भी श्रेष्ठ है।"
पांचवा बोला "मैं तो स्वर्ग मांग लूंगा,वहां तो सब वैसे ही उपलब्ध है।"
उनकी बातें सुन रहा एक साधु बोला -"मूर्खो! तुमसे ना तपस्या होगी और ना तुम्हें कोई वरदान मिलेगा। तपस्या के लिए मनोबल और तितिक्षा की आवश्यकता होती है और यदि तुममें वह होता, तो तुम आज संसार से घबराकर भागने के बजाय,अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए आगे बढ़ते।"
मेरी मानो तो वापस लौटकर प्राणी मात्र की सेवा में लग जाओ,वही सच्ची साधना है।"
युवकों को अपनी भूल का भान हुआ और वे घर वापस लौटकर सेवा धर्म में निरत हो गए ।।
।। मनेंदु पहारिया।।
25-8-2022
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