शिव सबके गुरु
एक सन्यासी घूमते-फिरते एक दुकान पर आये।
दुकान में अनेक छोटे-बड़े डिब्बे थे। सन्यासी ने एक डिब्बे की ओर इशारा करते हुए दुकानदार से पूछा,
"इसमें क्या है?"
दुकानदार ने कहा,
"इसमें नमक है।"
सन्यासी ने फिर पूछा,
"इसके पास वाले डिब्बे में क्या है?"
दुकानदार ने कहा,
"इसमें हल्दी है।"
इसी प्रकार सन्यासी पूछ्ते गए और दुकानदार बतलाता रहा।
अंत मे पीछे रखे डिब्बे की बारी आयी, सन्यासी ने पूछा,
"उस अंतिम डिब्बे में क्या है?"
दुकानदार बोला,
"उसमें शिव हैं।"
सन्यासी ने हैरान होते हुये पूछा, "शिव ?
भला यह "शिव" किस वस्तु का नाम है भाई?
मैंने तो इस नाम के किसी सामान के बारे में कभी नहीं सुना !"
दुकानदार सन्यासी के भोलेपन पर हंस कर बोला,
"महात्मन ! अन्यान्य डिब्बों में तो भिन्न-भिन्न वस्तुएं हैं, पर यह डिब्बा खाली है। हम "खाली" को खाली नहीं कहकर "शिव" कहते हैं !"
संन्यासी की आंखें खुली की खुली रह गई। जिस ज्ञान के लिये मैं दर-दर भटक रहा था, वो तत्व ज्ञान मुझे आज एक व्यापारी से मिल रहा है। वो सन्यासी उस छोटे से किराने के दुकानदार के चरणों में गिर पड़ा,
"ओह, तो खाली में शिव रहते हैं"।
सत्य ही तो है !
भरे हुए में शिव को स्थान कहाँ?
काम, क्रोध, लोभ, मोह, लालच, अभिमान, ईर्ष्या, द्वेष और भली-बुरी, सुख-दुख की बातों से जब मन-मस्तिष्क भरा रहेगा तो उसमें "शिव" का वास कैसे होगा?
*ॐ नमः शिवाय*