काशी विश्वनाथ मंदिर में,एक बार शिवरात्रि के दिन, आकाश से एक सोने का थाल उतरा। उसमें लिखा था- शंकर भगवान में जिस का सच्चा प्रेम होगा,उसी को यह थाल मिलेगा। काशीराज ने ढिंडोरा पिटवा कर,सच्चे प्रेमी का आव्हान किया ।
सर्वप्रथम एक शास्त्री जी आए,उन्होंने कहा- मैं नित्य रुद्राभिषेक करता हूं और दर्शन करने के बाद ही भोजन करता हूं। अतः थाल मेरे हाथ में दीजिए। थाल शास्त्री जी के हाथ में आते ही पीतल का हो गया।शास्त्री जी लजा गए।
इसके बाद काशीराज स्वयं आए और कहने लगे- मैंने विश्वनाथ जी पर सोने का कलश सच्चे प्रेम से चढा़या था और शिवरात्रि को दर्शन करने के लिए सच्चे भाव से आया हूं। राजा के हाथ में थाल, लोहे का हो गया। इससे वे भी शर्मा गए।
फिर एक बड़े सेठ जी आए,कहा-विश्वनाथ जी की जलधारी मैंने ही बनवाई है। फर्श पर रुपये मैंने ही जड़वाए हैं,और हजारों कोस की दूरी से प्रेम बस मैं यहां आया हूं । इसलिए थाल का वास्तविक अधिकारी मैं हूं। उसे देने पर,थाल का वही हाल हुआ। हजारों थाल के इच्छुक निराश हो गए।
उसी समय एक किसान,जो बहुत समय से विश्वनाथ जी के दर्शन का एक इच्छुक था, किंतु पैसा ना होने से प्रायः खेती में लगा रहता। लेकिन आज, बड़े परिश्रम से कुछ पैसे बचाकर,और खाने के लिए सत्तू बांधकर आ रहा था।
रास्ते में भूख प्यास से तरसता एक मानव पड़ा था। उसकी ओर किसी का ध्यान ही नहीं जा रहा था। इस किसान ने उस गरीब को लोटे से पानी पिलाकर, सत्तू खिलाया,और धर्मशाला में पहुंचा दिया।तत्पश्चात वह काशी विश्वनाथ के मंदिर में गया। पूजा करके जब वह बाहर निकल रहा था,तब किसी ने हंसकर कहा -महादेव जी का सच्चा भक्त आया है, इसलिए थाल इसी को दे दो। उसके ऐसा कहते ही, थाल पुजारी के हाथ से सरका और किसान के हाथ में पूर्ण स्वर्णिम आभा से चमकने लगा। सभी आश्चर्यचकित रह गए ।
"दरिद्र नारायण की सेवा ही सच्ची ईश्वर उपासना है"
।। मनेन्दु पहारिया।।
04/09/2022

