।।020।। बोध कथा। ।। स्वर्ग का अधिकार ।।

मरने के बाद एक,व्यक्ति की आत्मा को दूत धर्मराज के सामने ले पहुंचे। बताया यह एक बड़ा महात्मा है। युवावस्था में,अपने माता-पिता और स्त्री बच्चों को छोड़कर,यह जंगल में चला गया,और जीवन भर तप करता रहा। 

धर्मराज ने कहा- 'कर्तव्यों को त्याग कर,कोई व्यक्ति धर्मात्मा नहीं बन सकता । परिवार के लोगों के साथ विश्वासघात करके इसने,अधर्म ही कमाया । ऐसा भजन किस काम का जो कर्तव्यों को भुलाकर किया जाए? इसे पुनः धरती पर भेजो,और कर्तव्य पालन के साथ भजन करने का आदेश करो, तभी स्वर्ग में स्थान मिलेगा।'

यमदूतों ने दूसरे व्यक्ति की आत्मा उपस्थित की,और कहा- यह व्यक्ति बड़ा कर्तव्य परायण है। काम को ही सब कुछ समझता है। इसकी पत्नी बीमार पड़ी और मर गई, पर यह उसकी कुछ भी परवाह किए बिना अपने कर्तव्य में लगा रहा ।

धर्मराज ने कहा- 'ऐसे हृदय हीन का स्वर्ग में क्या काम ? भावना पूर्वक किया गया कर्तव्य प्रशंसनीय हो सकता है। जिसे अपने नैतिक कर्तव्यों का ज्ञान नहीं, उसकी शारीरिक दौड़-धूप, क्या महत्व रखेगी? इसे पृथ्वी पर भेजो और कहो,कि भावना पूर्वक जीवन जिए और दूसरों से प्रेम करना सीखें, तभी उसे स्वर्ग में स्थान मिलेगा।'

 तीसरे व्यक्ति की आत्मा के बारे में बताया, यह एक साधारण गृहस्थ है ।सदा आस्तिक रहा, पवित्र जीवन जिया, प्रेम पूर्वक परिवार का पालन किया,और दूसरों के उत्थान के लिए निरंतर प्रयत्न करता रहा । 

धर्मराज ने कहा-'स्वर्ग ऐसे ही लोगों के लिए बनाया गया है, इसे आदर पूर्वक ले जाओ और आनंद पूर्वक वहां रहने की व्यवस्था कर दो। पवित्र जीवन जीने वाला, प्रेमी स्वभाव का परमार्थ परायण,  कर्तव्यनिष्ठ साधक ही स्वर्गीय आनंद का अधिकारी है ।'

।।मनेन्दु पहारिया।।

 03/09/2022

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