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व्यक्ति कर्म करने में स्वतंत्र है, स्वच्छंद नहीं



        *वेदों के अनुसार व्यक्ति कर्म करने में स्वतंत्र है, स्वच्छंद नहीं। फिर भी वह अपनी मूर्खता और दुष्टता के कारण स्वच्छंद होकर अपराध करता रहता है, तथा दूसरों को दुख भी देता रहता है।*

        आपने ये दोनों शब्द सुने होंगे- *स्वतंत्रता और स्वच्छंदता*। दोनों में बहुत अंतर है। स्व का अर्थ होता है - स्वयं। और तंत्र का अर्थ होता है - शासन व्यवस्था नियम संविधान या कानून।  *इस प्रकार से स्वतंत्र  शब्द का अर्थ हुआ - स्वयं अपने ऊपर कानून लागू करना।* 

       कौन सा कानून? ईश्वर का बनाया हुआ कानून। क्यों लागू करना? क्योंकि वह सुखदायक है। 

        हम सब लोग सुखी जीवन जीना चाहते हैं। हम सामाजिक प्राणी हैं, क्योंकि हम सामाजिक जीवन जीते हैं, हम अकेले नहीं जी सकते। सुखी जीवन जीने के लिए हमें अन्य बहुत से लोगों की सहायता लेनी पड़ती है। जब हम दूसरों से सहायता लेते हैं, तो उन्हें भी हमारी सहायता की आवश्यकता पड़ती है, इसलिए हमें भी उनको सहायता देनी उचित है। *बस इसी प्रकार से एक दूसरे की सहायता करते हुए जीवन जीना, इसी का नाम सामाजिक जीवन है।*

      तो जब सुखी जीवन जीने के लिए, दो या दो से अधिक व्यक्ति मिलकर जीवन जीते हैं, तब वहां कुछ न कुछ कानून व्यवस्था नियम लागू होते हैं। यदि तब नियमों का पालन किया जाए, तो परस्पर सबको सुख होता है। यदि नियम कानून का पालन न किया जाए, और सब लोग अपनी मनमानी क्रियाएँ करें, तो सबका दुख बढ़ता है।

       अब प्रश्न यह है कि - वे नियम कैसे होने चाहिएँ, जो समाज पर लागू किए जाएंगे? उत्तर है - सबके लिए सुखदायक नियम होने चाहिएँ। प्रश्न - ऐसे सबके लिए सुखदायक नियम कौन बना सकता है? उत्तर - मनुष्य अल्पज्ञ व अल्पशक्तिमान होने के कारण गलतियाँ करता ही रहता है। इसलिये मनुष्य तो नहीं बना सकता। ईश्वर सर्वज्ञ सर्वशक्तिमान् दयालु तथा न्यायकारी होने से, गलतियां नहीं करता। तो ईश्वर ही ऐसे नियम कानून संविधान बना सकता है, जो निर्दोष हों। जिनमें गलतियां न हों, और वे नियम सबके लिए सुखदायक हों।

        तो सारी बात का सार यह हुआ कि -  *कानून या संविधान तो बनाएगा ईश्वर। हमें तो केवल उस कानून या संविधान को स्वयं अपने ऊपर लागू करना है। और सभी को स्वयं अपने ऊपर लागू करना है। जब हम ऐसा करते हैं, तो इसी का नाम स्वतंत्रता है। और जब ईश्वर के बनाए कानूनों के विरुद्ध आचरण करते हैं, अपनी मनमानी क्रियाएँ करते हैं, तो इसी का नाम स्वच्छंदता है।*

       वेदो में ईश्वर ने कहा है - *स्वतंत्रता से जीवन जीओ, वह सबके लिए सुखदायक है। परंतु स्वच्छंदता से व्यवहार मत करो। वह सबके लिए दुखदायक है।*

       आजकल देखा जाता है, कि ईश्वर के संविधान के अनुकूल आचरण तो बहुत कम लोग ही करते हैं अर्थात स्वतंत्रता से बहुत कम लोग अपना जीवन जीते हैं। अधिकांश लोग तो ईश्वर के बनाए संविधान के विरुद्ध ही आचरण करते हैं, और स्वच्छंदता से जीते हैं। इसका परिणाम यह होता है, कि - *अपनी स्वच्छंदता के कारण वे लोग, पहले दूसरों को दुख देते हैं और कुछ समय बाद अपनी गलतियों का दुखदाई परिणाम भोगकर, वे स्वयं भी दुखी होते हैं।*

        *इसलिए जो भी व्यक्ति स्वयं को बुद्धिमान मानता हो, उसे स्वतंत्रता से जीना चाहिए, स्वच्छंदता से नहीं। वास्तविक बुद्धिमत्ता यही है। स्वच्छंदता को स्वतंत्रता मानने की भूल, संसार में करोड़ों व्यक्ति करते हैं। वे वास्तव में बुद्धिमान नहीं हैं, वे भ्रांति में है।*

       अब आप परिवार में, समाज में, संसार में कैसे सुखपूर्वक जीएँगे? इसका समाधान वही है, कि दूसरों से अधिक आशा न रखें, कि वे आपको आपकी इच्छा के अनुसार सुख देंगे। क्योंकि दूसरों से अधिक आशाएँ रखना भी दुखदायक है। तो क्या करें? 

       आपके आसपास जो लोग हैं, हो सकता है, वे स्वच्छंदता करें, और आपके लिए दुखदायक हों। आप उन्हें वेदानुकूल आचरण वाला बनाने का प्रयत्न भी करें, तो भी इस बात की गारंटी नहीं है, कि आप उन्हें वेदानुकूल आचरण वाला बना ही लेंगे। क्योंकि अपने पूर्व जन्मों के संस्कार सबके अलग-अलग हैं। तथा अन्य भी स्वार्थ मूर्खता दुष्टता अभिमान आदि अनेक कारण हैं, जिनकी वजह से सब लोग वेदानुकूल आचरण नहीं करते।

     तो हमें क्या करना चाहिए? यह करना चाहिए, कि जो आपके आसपास लोग हैं, यदि वे, वेदानुकूल आचरण करते हैं, तब तो उनसे संबंध रखें, वे आपको सुख देंगे। यदि वे स्वच्छंदता करते हैं, अपनी मनमानी करते हैं, तो उनसे दूर होकर, वेदानुकूल आचरण वाले,बुद्धिमान ईमानदार परोपकारी लोगों को चुन कर अपने आसपास रखें। उनसे अपना संबंध रखें, जिससे आपका जीवन सुखमय रीति से चल सके।

       प्रश्न - *ये आस पास वाले लोग कौन हैं?* उत्तर - *आपके बच्चे =(बेटा बेटी) आपकी पत्नी आपका पति आपकी सास आपके ससुर आपकी बहू आपका दामाद आपके चाचा मामा बुआ मौसी रिश्तेदार आपके मित्र आपके पड़ोसी आप के ऑफिस के अधिकारी अथवा कर्मचारी कोई व्यापारी कोई ग्राहक कोई रेलयात्री कोई बस यात्री आदि, जिनके साथ आपका प्रायः संबंध लेनदेन आदि व्यवहार होता रहता है। वही आसपास के लोग हैं।* इन से सावधान रहें। क्योंकि यही लोग आपको सुख भी देते हैं, और यही लोग आपको दुख भी देते हैं।

- *स्वामी विवेकानंद परिव्राजक*

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