कंचनपुर नगर के राजा को बहुत तप तपस्या के पश्चात एक परम सुंदरी कन्या उत्पन्न हुई। जब वह विवाह योग्य हुई, तब राजा ने स्वयंवर रचाया। किंतु राजकुमारी ने किसी को भी स्वीकार नहीं किया।
एक दिन रानी ने राजा से कहा- राजन! राजकुमारी का विचार धर्म परायण, परोपकारी, योगी से विवाह करने का है। वह भोग, ऐश्वर्य की अपेक्षा, आत्मउन्नति में सहायता करने वाला साथी चाहती है। कष्ट और निर्धनता की उसे जरा भी परवाह नहीं। इसीलिए आप किसी योगी के साथ उसका विवाह कीजिए।
राजा को पहले तो यह प्रस्ताव पसंद ना आया, किंतु जब रानी ने प्राचीन इतिहास बताते हुए पार्वती, सावित्री, सुकन्या, आदि अनेक राजकुमारियों का विवाह योगियों के साथ होने के उदाहरण दिए, तो राजा सहमत हो गए और दूसरे दिन योगी की तलाश में जाने का निश्चय किया।
राजा और रानी में जिस समय यह वार्तालाप हो रहा था, उसी समय एक चोर शयन कक्ष के निकट चोरी के उद्देश्य छिपा हुआ यह सब बातें सुन रहा था। उसने सोचा मैं ही योगी का वेश बनाकर राजा के मार्ग में क्यों ना बैठ जाऊं, जिससे राजकुमारी का पाणिग्रहण तथा राज्य का उत्तराधिकार मुझे ही प्राप्त हो जाए ।
वह तुरंत ही वहां से घर गया और योगी का भेष बनाकर प्रभात होने से पूर्व राजा के जाने के मार्ग में जा बैठा।
प्रातः काल राजा, योगी वर की तलाश में निकला। कुछ दूर चलने पर एक स्वस्थ शरीर योगी युवक को ध्यान मग्न देखा। राजा वहीं ठहर गया और किसी प्रकार प्रार्थना, अनुरोध से उसे विवाह के लिए तैयार करके घर ले आया। विवाह की तिथि निश्चित हो गई। भावी जामाता का बहुत स्वागत सत्कार हुआ।
चोर मन ही मन विचार करने लगा कि जिस योग का आडंबर करने मात्र से इसका इतना लाभ हो रहा है, यदि सच्चे मन से उसकी साधना की जाए तो न जाने कितना लाभ होगा! बुद्धिमानों ने कहा है कि," बड़े लाभ के लिए छोटे लाभ का त्याग करना चाहिए।" इसलिए मुझे सच्चे योग की साधना करके अपार लाभ प्राप्त करना चाहिए।
चोर ने राजा से विवाह की अस्वीकृति प्रगट कर दी और सच्चे साधक के रूप में वह तप करने के लिए चला गया।
।। मनेन्दु पहारिया।।
30/08/2022
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