मेरे अंग बेचकर कर्ज चुका देना
सुरेंद्र अग्रवाल
हर इंसान मां की कोख से बाहर आते ही कर्जदार हो जाता है।जी हां।सबसे पहले उस पर पितृ ऋण को अदा करने की जबाबदारी आ जाती है और फिर उम्र बढ़ने के साथ ही देव श्रृण व श्रृषि श्रृण का भार आ जाता है।शास्त्रों में ऐसा कहा जाता है कि जब तक मनुष्य इन श्रृणों से मुक्त नहीं हो जाता है उसे मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है और वह 84 लाख योनियों में भटकता रहता है।
आत्महत्या करने वाले मातगुवां के किसान मुनेंद्र राजपूत को संभवतः इस तथ्य का ज्ञान था कि मरने के बाद भी उसे मुक्ति नहीं मिलेगी इसलिए उसने अपने सोसाइट नोट में यह लिख कर दे दिया कि उसका पार्थिव शरीर सरकार को सौंप दिया जाए।जिससे सरकार उसके शरीर के अंगों को बेचकर अपना कर्जा वसूल करले।
सूदखोरों, साहूकारों ,सरकारों और वसूली माफियाओं से तंग आकर देशभर में रोजाना आत्महत्याओं की खबरें सामने आती हैं लेकिन यह मातगुवां का मामला थोड़ा हटकर है।मेरी नजर में संभवतः यह पहला मामला है जब आत्महत्या करने वाले व्यक्ति ने अपने शरीर के अंग बेचकर कर्ज मुक्त होने की ख्वाहिश जाहिर की है।छतरपुर में कथित साहूकारों की फौज इतनी ताकतवर है कि वह कर्जे की रकम का पचास गुना अधिक वसूलने के बावजूद कर्जदार को इतना प्रताड़ित करते हैं कि खुद्दार लोग मौत को ही गले लगा लेते हैं, वह भी इसलिए कि जब कर्जा देने वाला सीधे तौर पर यह धमकी देते हैं कि अपनी पत्नी और बहन को एक रात उनके पास छोड़ जाओ ।अथवा हम उठाकर ले जाएंगें।
पहला सवाल यह है कि एक ग्रामीण क्षेत्र में चक्की चलाने वाले पर इतना बिल कैसे बकाया हो गया।पन्द्रह बीस हजार रुपए के बकाए पर बिजली विभाग क्यों वसूली के लिए सक्रिय नहीं हुआ?इतनी भारी रकम क्यों चढने दी गई थी।उसकी दैनिक आमदनी कितनी थी।क्या विभाग के पास यह जानकारी थी।दूसरा आरोप है कि उसने पैंतीस हजार रुपए जमा किए थे लेकिन पावती मात्र पांच हजार रुपए की दी गई है?
मृतक मुनेन्द्र ने अपने सोसाइट नोट में जहां प्रधानमंत्री जी से एक साधारण किसान बनकर सरकारी दफ्तरों की हकीकत जानने की बात की है तो वहीं मीडिया को भी सबक सिखाया है।
बहरहाल मुनेंद्र तो इस दुनिया से फना हो गया है और अपने पीछे तीन बेटियों सहित चार बच्चों को अनाथ छोड़ गया है।उसकी पत्नी के सामने पहाड़ सा जीवन तथा चार बच्चों की परवरिश ,शिक्षा दीक्षा की जबाबदेही आ गई है।
जिला प्रशासन ने पच्चीस हजार रुपए की मरहम उसकी पत्नी के पास भेजी है।क्या उसकी मौत की यही कीमत है। धनराशि कितनी भी दे दी जाए।न तो उससे मुनेंद्र लौट कर आएगा और न ही बच्चों को दुलार करने वाला पिता लौटकर आएगा।मीडिया की एक दिन की सुर्खियों के साथ ही यह मामला जांच करने के रूप में हमेशा के लिए दफन हो जाएगा।मुझे नहीं लगता कि इस मामले में किसी को दंडित किया जाएगा।बिजली विभाग के आला अधिकारी पहले ही कह चुके हैं कि कुर्की,जप्ती और पंचनामा पर मृतक ने हस्ताक्षर किए हैं।
जिला प्रशासन और बिजली विभाग भविष्य में इस तरह की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को रोकने के लिए गरीब, मजबूर और कमजोर लोगों की एक सूची तैयार कर सकता है,जिन पर बडी़ राशि बकाया है और उनसे समझा बुझाकर किस्तों में वसूली की जा सकती है।
दुर्भाग्यपूर्ण तो यह भी है कि जब वोटों के चक्कर में सरकारें लोकलुभावन घोषणाएं करके सारा सिस्टम बिगाड़ देती हैं।किसानों से कहा जाता है कि अब उन्हें बिजली का बिल नहीं भरना होगा।पहले उन्हें भ्रमित किया जाता है और फिर जबरन वसूली की जाती है।
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